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भारत की खोज कक्षा 8वीं हिंदी BHARAT KI KHOJ

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1 – आखिर यह भारत है क्या ? अतीत में यह किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था ? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया ? क्या उसने इस शक्ति को पूरी तरह खो दिया है ? विशाल जनसंख्या का बसेरा होने के अलावा क्या आज उसके पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके ? “ये प्रश्न अध्याय दो के शुरुआती हिस्से से लिए गए हैं। अब तक आप पूरी पुस्तक पढ़ चुके होंगे। आपके विचार से इन प्रश्नों के क्या उत्तर हो सकते हैं ? जो कुछ आपने पढ़ा है उसके आधार और अपने अनुभवों के आधार पर बताइए।

उत्तर :- इंडस या सिंधु जिसके आधार पर हमारे इस देश का नाम पड़ा ‘ इंडिया’ और ‘हिन्दुस्तान’। भारत एक ऐसा देश है जहां सभी मिल-जुलकर, आदर भाव के साथ रहते हैं। भारत में यह विभिन्न धर्मों, जातियों, विचारों वाले लोग के बीच प्यार की विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था। भारत हम सबके खून में रचा हुआ है। पहले के समय से भारत अपने ज्ञान, सभ्यता, संस्कृति की विशेषताओं के कारण समस्त संसार में जाना जाता था। लेकिन अब सबने पाश्चातय संस्कृति को बढ़ावा दिया है। अपनी शक्तियों तथा भोग-विलास में डूबकर अपनी संस्कृति को भुला दिया। लेकिन आज भी लोगों के जीवन में अपने देश के प्रति, संस्कृति, परम्पराओं के प्रति लगाव है; जिसके कारण हम भारत को जानदार कह सकते हैं।

प्रश्न 2 – आपके अनुसार भारत यूरोप की तुलना में तकनीकी विकास की दौड़ में क्यों पिछड़ गया था ?

उत्तर :- भारत की शक्ति के स्त्रोतों और उसके पतन और नाश के कारणों की खोज लम्बी और उलझी हुई है पर उसके पतन के हाल के कारण पर्याप्त स्पष्ट है। भारत तकनीकी की दौड़ में पिछड़ गया जबकि यूरोप जो तमाम बातों में एक ज़माने से भारत से पिछड़ा हुआ था। तकनीकी प्रगति के मामले में आगे निकल गया। इस तकनीकी विकास के पीछे विज्ञान की चेतना थी तथा हौसलामंद जीवनी शक्ति और मानसिकता थी। नई तकनीकों ने पश्चिमी यूरोप के देशों भी सैनिक बल दिया। भारत में समाज पिछड़ा हुआ था, उन्हें तकनीकी चीज़ों का ज्ञान नहीं था क्योंकि उनके पास अधिक पढ़ने लिखने की सुविधाएं  नहीं थी। कोई बेरोजगारी की वजह से रह जाता या फिर शिक्षकों के सही से ना पढ़ाने की कमी में। स्त्रियां पुरुष प्रधानत्व समाज की वजह से पीछे रह जाती। जिसके कारण न तो किसी में नई चीज़ों को सीखने का उत्साह बढ़ता ना ही आत्मविश्वास रहता। इसलिए यूरोप की तुलना में भारत तकनीकी – विकास की दौड़ में पिछड़ गया था।

प्रश्न 3 – नेहरू जी ने कहा कि – “मेरे खयाल से, हम सब के मन में अपनी मातृभूमि की अलग – अलग तसवीरें हैं और कोई दो आदमी बिलकुल एक जैसा नहीं सोच सकते।“ अब आप बताइए कि:-

(क) आपके मन में अपनी मातृभूमि की कैसी तसवीर है ?

(ख) अपने साथियों से चर्चा करके पता करो कि उनकी मातृभूमि की तसवीर कैसी है और आपकी और उनकी तसवीर ( मातृभूमि की छवि ) में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं ?

उत्तर :- (क) हमारे मन में मातृभूमि की तसवीर माँ के समान है जहां पुरुष औरतों को भगवान की तरह पूजे, सब एक दूसरे का आदर करें। समाज सुख और भाईचारे का सहयोगी हो। सभी मिल-जुलकर कर रहते हैं। सभी सत्य के मार्ग पर चलते हैं। अपने कर्त्तव्यों का सभी पालन करते हो। कोई बेरोज़गारी का सामना न करता हो। बच्चों में कोई हीन भावना न हो। गरीबी का नामों–निशान न हो। सबको हर प्रकार की सुविधाएं प्राप्त हो।

(ख) मेरे साथ भी मेरी तरह ही कल्पना करते हैं क्योंकि हर कोई यही चाहेगा कि वह जहां भी रहे उन्हे पूर्ण रूप से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त हो।

प्रश्न 4 – जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “यह बात दिलचस्प है कि भारत अपनी कहानी की इस भोर – बेला में ही हमें एक नन्हें बच्चे की तरह नहीं, बल्कि अनेक रूपों में विकसित सयाने रूप में दिखाई पड़ता है।“ उन्होंने भारत के विषय में ऐसा क्यों और किस संदर्भ में कहा है ?

उत्तर :- जवाहर लाल नेहरू ने कहा है कि भारत इस भोर – वेला में एक नन्हें बच्चे की तरह नहीं है बल्कि एक सयाने रूप में विकसित होते दिखाई पड़ता है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में हमें सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषता मिली है जो विशेष रूप से उत्तर भारत में दूर–दूर तक फैली थी। यह गंगा की घाटी से फैली हुई थी। यह केवल सिंधु घाटी सभ्यता भर नहीं थी बल्कि उससे बहुत अधिक थी। सिंधु घाटी की सभ्यता के फारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के साथ संबंध थे। उनके साथ व्यापार करते समय व्यापारी वर्ग संपन्न था। दुकानों की कतारें बन रही थी। लोगों के पहनावे, परम्पराओं, पुरानी मूर्तियों का रंग रूप सबको देखकर भारत का विकसित सयाना रूप दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 5 – सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के बारे में अनेक विद्वानों के कई मत हैं। आपके अनुसार इस सभ्यता का अंत कैसे हुआ होगा, तर्क सहित लिखिए।

उत्तर :- भारत के अतीत की सबसे पहली तस्वीर उस सिंधु घाटी की सभ्यता में मिलती है जिसके आवशेष सिंध में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा में मिले है। यह सभ्यता विशेष रूप से उत्तर भारत में दूर- दूर तक फैली थी। इस सभ्यता के अवशेष पश्चिम में काठियावाड़ में और पंजाब के अम्बाला जिले में मिले है। इसलिए यह विश्वाश किया जाता है कि यह सभ्यता गंगा की घाटी तक फैली थी। सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के बारे में अनेक विद्वानों के कई मत हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि उसका अंत अकस्मात किसी ऐसी दुर्घटना से हो गया, जिसकी कोई व्याख्या नहीं मलती। सिंधु नदी अपनी भयंकर बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध है जो नगरों और गाँवों को बहा ले जाती है। यह भी संभव है कि मौसम के परिवर्तन से धीरे–धीरे जमीन सूख गई हो और खेतों पर रेगिस्तान छा गया हो। 

प्रश्न 6 – उपनिषदों में बार-बार कहा गया है कि – “शरीर स्वस्थ हो, मन स्वच्छ हो और तन-मन दोनों अनुशासन में रहें।“ आप अपने दैनिक क्रिया-कलापों में इसे कितना लागू कर पाते हैं ? लिखिए।

उत्तर :- उपनिषदों में बार-बार कहना कि शरीर स्वस्थ हो, मन स्वच्छ और और तन – मन अनुशासन में रहे सार्थक रूप से सही है। हमें यह नियम अपने जीवन में ज़रूर लागू करना चाहिए। हम एक बार तो सब समझ जाते है। चीज़ों का पालन करना शुरु भी कर देते हैं। लेकिन यह निरंतरता टूट जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि हम अपने मन को काबू नहीं कर पाते। हमारा मन चंचलता से भरा हुआ है जो स्थिर नहीं रहता। हम बाहर के स्वादिष्ट खाने को देखकर सब भूल जाते हैं। हम इधर-उधर की तली हुई सभी चीज़े खाते रहते हैं। न तो हम कभी निश्चित किए समय और उठते और न ही सोते हैं। इन सब बातों की वजह से हमें अनेक बीमारियां घेर लेती है। इसलिए हमें अपने दैनिक क्रियाकलापों को समझना चाहिए उन्हें निश्चित समय पर लागू करना चाहिए ताकि हम अच्छे से सुख से भरा जीवन व्य्तीत कर सके।

प्रश्न 7 – नेहरू जी ने कहा कि – “इतिहास की उपेक्षा के परिणाम अच्छे नहीं हुए।“ आपके अनुसार इतिहास लेखन में क्या – क्या शामिल किया जाना चाहिए है? एक सूची बनाइए और उस पर कक्षा में अपने साथियों और अध्यापकों से चर्चा कीजिए।

उत्तर :- इतिहास हमारे लिए ज़रूरी और एक सबक के बराबर होता है क्योंकि हम अपने इतिहास से ही सीखते हैं, समझते है कि हम आगे वह काम करें या ना करें। हमें समझ आता है कि लड़ाई से बचना चाहिए, आदर भाव और सत्य का मार्ग अपनाए रखना चाहिए। नेहरू जी ने ठीक ही कहा है इतिहास की उपेक्षा के परिणाम अच्छे नहीं हुए। इतिहास – लेखन में मानव सभ्यता के अतीत और उस के विकास से संबंधित सभी विषय ग्रहण किए जाने चाहिए। हमारा वर्तमान भूतकाल भी सीढ़ियों पर चढ़ कर ही भविष्य की ओर कदम बढ़ाता है। यदि हमें अपने इतिहास का ज्ञान होगा तो हम उससे शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को अच्छी दिशा दे सकेंगे।

प्रश्न 8 – “हमें आरंभ में ही एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति की शुरुआत दिखाई पड़ती है जो तमाम परिवर्तनों के बावजूद आज भी बनी हुई है।“ आज की भारतीय संस्कृति की ऐसी कौन – कौन सी  बातें/चीज़ें है जो हज़ारों साल पहले से चली आ रही हैं ? आपस में चर्चा करके पता लगाइए।

उत्तर :- हम जन्म से ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति की झलक देखते आए है और जीवन में भी अपनाते आए है। बचपन से बड़ो का आदर करना, सेवा करना,  सत्य का आचरण रखना, एक बड़े परिवार में मिल-जुलकर रहना हमें अपनी संस्कृति से ही प्राप्त हुआ है। ये सब हम पीढ़ी दर पीढ़ी सीखते आए है। ये हमारे गुण और हमारी संस्कृति ही है जो हजारों सालो से चली आ रही है।  

प्रश्न 9 – आपने पिछले साल (सातवीं कक्षा में) बाल महाभारत कथा पढ़ी। भारत की खोज में भी महाभारत के सार को सूत्रबद्ध करने का प्रयास किया गया है- “दूसरों के साथ ऐसा आचरण नहीं करो जो तुम्हें खुद अपने लिए स्वीकार्य न हो।“ आप अपने साथियों से कैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं और स्वयं उनके प्रति कैसा व्यवहार करते हैं? चर्चा कीजिए।

उत्तर:- महाभारत के सार में दिया गया सूत्रबद्ध – “दूसरों के साथ ऐसा आचरण नहीं करो जो तुम्हें खुद अपने लिए स्वीकार्य न हो” जीवन की सच्चाई को बता देता है। आज के जीवन में हर व्यक्ति यही कामना करता है कि उसे सबसे आदर–सम्मान मिले। उसके बारे में पूंछे, सभी बतों में उसे आगे रखे। खुद चाहे सबको ओंछी नज़रों से देखता हो। वह यह नहीं सोचता कि पुराने समय से यही चलता आ रहा है कि जो जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा। हम जिसके साथ जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही सामने वाला भी हमारे साथ यही बर्ताव रखेगा। हम अगर किसी के लिए कुछ अच्छा भी करते हैं तो उसमें भी अपना मतलब ढूंढ़ते हैं। हर जगह बस यही रीत चली हुई है। अपने मतलब के अलावा कोई किसी को नहीं पूँछता। हमें अपने साथियों के साथ कोई हीन-भावना नहीं रखनी चाहिए। मीठा और पवित्रता का व्यवहार रखना चाहिए। क्योंकि हमें अपने जीवन में वही मिलेगा जो हम दूसरों को दे रहे हैं।

प्रश्न 10 – प्राचीन काल से लेकर आज तक राजा या सरकार द्वारा जमीन और उत्पादन पर ‘कर’ (tax) लगाया जाता रहा है। आजकल हम किन-किन वस्तुओं और सेवाओं पर कर देते हैं, सूची बनाइए।

उत्तर :- आय कर, सर्विस कर, शिक्षा कर, मनोरंजन कर, परिवहन कर आदि।

प्रश्न 11 – (क) प्राचीन समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रभाव के दो उदाहरण बताइए।

(ख) वर्तमान समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के कौन-कौन से प्रभाव देखे जा सकते हैं ? अपने साथियों के साथ मिलकर एक सूची बनाइए।

(संकेत खान-पान, पहनावा, फिल्में, हिंदी, कंप्यूटर, टेलीमार्केटिंग आदि।)

उत्तर:-  (क) सिंधु घाटी सभ्यता के समय फारस , मेसोपोटामिया और मिस्र जैसी सभ्यताओं ने हमारे साथ व्यापारिक संबंधों को भारतीय संस्कृति के गुणों के आधार पर स्थापित किया था।

(ख) सम्राट अशोक के द्वारा फैलाए जाने वाले बौद्ध धर्म को दूर–दूर के देशों ने ग्रहण कर भारतीय संस्कृति के प्रभाव को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था। जैसे संगीत, सिनेमा, फैशन, योग, हिंदी भाषा, खान-पान, नृत्य इत्यादि।

प्रश्न 12 – पृष्ठ संख्या 34 पर कहा गया है कि जातकों में सौदागरों की समुद्री यात्राओं / यातायात के हवाले भरे हुए हैं। विश्व / भारत के मानचित्र में उन स्थानों / रास्तों को खोजिए जिनकी चर्चा इस पृष्ठ पर की गई है।

उत्तर :- हमें मानचित्र में स्थानों, रास्तों, की हुई यात्राओं की जगहों को ढूंढ़ने का प्रयास करना है।

प्रश्न 13 – कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अनेक विषयों की चर्चा है, जैसे, “व्यापार और वाणिज्य, कानून और न्यायालय, नगर व्यवस्था सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह और तलाक, स्त्रियों के अधिकार, कर और लगान, कृषि, खानों और कारखानों को चलाना, दस्तकारी, मड़ियाँ, बागवानी उद्योग धंधे, सिंचाई और जलमार्ग जहाज़ और जहाजरानी, निगमें, जन-गणना, मत्स्य उद्योग, कसाई खाने, पासपोर्ट शामिल हैं। इसमें विधवा विवाह को मान्यता दी गई है और विशेष तलाक को भी” वर्तमान में इन विषयों की क्या स्थिति है ? अपनी पसंद के किन्हीं दो-तीन विषयों पर लिखिए।

उत्तर :- वर्तमान में विवाह और तलाक की स्थितियाँ तो बनी ही हुई है। पहले किसी भी स्त्री को विधवा होने के बाद विवाह या किसी प्रकार का झगड़ा होने के बाद तलाक लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन अभी लोगों की विचारधारा में बदलाव आया है। अभी अगर कोई स्त्री पति कि मृत्यु के बाद विवाह या किसी बात से परेशान तलाक लेना चाहती है व अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहती है तो वे हर अधिकार के लिए सक्षम है। 

प्रश्न 14 – आजादी से पहले किसानों की समस्याएँ निम्नलिखित थी – “ गरीबी, कर्ज, स्वार्थ, ज़मींदार, महाजन, भारी लगान और कर, पुलिस के अत्याचार……..आपके विचार से आजकल किसानों की समस्याएँ कौन-कौन सी है ?

उत्तर:- आजादी से पहले किसानों की समस्याएँ निम्नलिखित थी – “ गरीबी, कर्ज, स्वार्थ, ज़मींदार, महाजन, भारी लगान और कर, पुलिस के अत्याचार इत्यादि। ऐसा नहीं है कि अब ये समस्याएं खत्म हो गई है। कहीं ना कहीं किसानों को अभी भी सभी प्रकार की परेशानियों ने घेरा हुआ है। जहां कई सुविधाएं मिली है वहां परेशानियां बढ़ी भी है। आज कल किसानों को खेती से जुड़ें कामों के लिए ऋण देने की सुविधा उपलब्ध है लेकिन कहीं ना कहीं उन्हें ब्याज़ भी अधिक देना पड़ जाता है। कई बार ऋण न मिलने की वजह से जो गरीब होते है वो कर्ज़ो के नीचे भी दब जाते हैं। 

प्रश्न 15 – “सार्वजनिक काम राजा की मर्जी के मोहताज नहीं होते, उसे खुद हमेशा इनके लिए तैयार रहना चाहिए। “ऐसे कौन – कौन से सार्वजनिक कार्य हैं जिन्हें आप बिना किसी हिचकिचाहट के करने को तैयार हो जाते हैं ?

उत्तर :- ऐसा कहना बिल्कुल सत्य है कि हमारे जीवन से कई ऐसे काम जुड़ें हुए है जिनके लिए हमें किसी सरकार या राजा के मोहताज़ नहीं होते। हमें किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती। जैसे:- पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सबको जागरूक करना कि कहीं भी कैसे भी किसी को स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानी न हो। इधर-उधर कोई गंदगी न फैली हो। कई जगह ऐसी होती है जहां गरीब लोग तम्बू डालकर बैठे हो, उनके पास समय से खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने के लिए समय पर सभी चीज़ें उपलब्ध नहीं हो पाती। हम उनकी भी मदद कर सकते है। जहां शौचालय की व्यवस्था न हो,  वहां शौचालय बनवा सकते है जिन्हें कराने में हमें किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होती।

प्रश्न 16 – महान सम्राट अशोक ने घोषणा की कि वह प्रजा के कार्य और हित के लिए ‘हर स्थान पर और हर समय’ हमेशा उपलब्ध हैं। हमारे समय के शासक / लोक – सेवक इस कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं? तर्क सहित लिखिए।

उत्तर:- सम्राट अशोक प्रजा के कार्य और हित के लिए हर स्थान पर और हर समय उपलब्ध रहते थे लेकिन हमारे समय के शासक/लोक – सेवक ऐसा बिल्कुल नहीं करते हैं। वे अपना पद हासिल करने के बाद पूर्णत: बदल जाते हैं। वे अनेकों वादे करते है कि गरीबों को रहने के लिए जगहें, सस्ते में खाना, बेरोज़गार को रोज़गार, दवाइयां उपलब्ध कराएगें। एक बार के लिए वे दिखावा करते हैं। जहां उन्होंने कही छोटे काम में सहयोग किया हो वहाँ इतने सारे नेता इकट्ठे होकर फोटों खिंचवाने लगते हैं। जबकि उनका गरीबी जनता से कोई मतलब नहीं होता। लोक सेवा में चींटी जितना सहयोग देने से भी कतराते हैं। वे लोक सेवक कसौटी पर बिल्कुल भी खरा नहीं उतरते।

प्रश्न 17 –  ‘औरतों के परदे में अलग – थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में रुकावट आई।‘ कैसे?  

उत्तर :- औरतों के परदे में अलग-थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में अनेक रुकावटें एवं समस्याएँ आई जो निम्नलिखित है :-  

(क) परदे में रहने के कारण स्त्रियां पढ़ नहीं पाई।

(ख) उन्हें कही बाहर नहीं जाने दिया बस घर का गुलाम बना कर रखा जिसकी वजह से बाहर से उन्हें ना तो नए लोगों से मिलने को मिला ना ही किसी प्रकार की जानकारी।

(ग) बाल विवाह होने लगे जिसकी वजह से सामाजिक विकास तो नहीं बल्कि देश निम्नता की ओर चला गया।

(घ) न ही स्त्रियां बाहर के किसी सामाजिक काम में अपना योगदान दे सकी।

प्रश्न 18 – मध्यकाल के इन संत रचनाकारों की अनेक रचनाएँ अब तक आप पढ़ चुके होंगे। इन रचनाकारों की एक एक रचना अपनी पसंद से लिखिए:-

(क) अमीर खुसरो

(ख) कबीर

(ग) गुरु नानक

(घ) रहीम

उत्तर:-

(क) अमीर खुसरो :- खुसरो की पहेलियां।

(ख) कबीर :- साखी।

(ग) गुरु नानक :- अकाल मूर्ति।

(घ) रहीम :- रहीम विलास।

प्रश्न 19 – “अक्सर कहा जाता है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है”। आपके विचार से भारत में किस – किस तरह के अंतर्विरोध है ?  कक्षा में समूह बनाकर चर्चा कीजिए।

(संकेत अमीरीगरीबी, आधुनिकता-मध्ययुगीनता, सुविधा-संपन्नसुविधा विहीन आदि )

उत्तर :- ऐसा माना जाता है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है। कुछ लोग बहुत धनवान है और बहुत से लोग निर्धन है। यहां आधुनिकता भी है और मध्ययुगीनता भी। कहीं सर्दी है तो कहीं गर्मी। सभी लोगों का रहन–सहन, खाना–पीना, संस्कृति एक–दूसरे से अलग–अलग है। कोई मांसाहारी भोजन करता है तो कोई शाकाहारी भोजन। यहां अलग – अलग जातियों,  धर्मों,  संप्रदाय और वर्गो के लोग निवास करते हैं। कुछ लोगों को सभी प्रकार की सुविधाएं प्राप्त है तो किसी को एक रोटी तक समय से नहीं मिलती।

प्रश्न 20– पृष्ठ संख्या 122 पर नेहरू जी ने कहा है कि – “हम भविष्य गई उस ‘एक दुनिया’ की तरफ़ बढ़ रहे हैं  जहाँ राष्ट्रीय संस्कृतियाँ मानव जाति की अंतरराष्ट्रीय संस्कृति में घुलमिल जाएँगी”। आपके अनुसार उस ‘एक दुनिया’ में क्या-क्या अच्छा है और कैसे-कैसे खतरे हो सकते हैं ?

उत्तर :- भविष्य की तरफ बढ़ती हुई दुनिया में हम सब मिलकर, खुशहाल रूप से रहेंगे। एक दूसरे का सहयोग अर्थात् सहायता करते हुए जीवन में प्रगति की तरफ बढ़ेंगे जहां समझदारी और ज्ञान का आदान-प्रदान होगा। लेकिन इस दुनिया में सबसे बड़ा खतरा यह होगा कि जब राष्ट्रीय संस्कृतियां मानव जाति की अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति में घुलमिल जाएंगी। इससे हमारे रीति-रिवाज, पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली संस्कृतियां नष्ट हो जाएगी। इससे हम सब भटक जाएंगे, हमारा अस्तित्व विलीन हो जाएंगा और हम बस इंसान, एक साधारण–सा समूह बनके रह जाएंगे।

दो पृष्ठभूमियाँ (भारत की खोज) do prishthbhumiyan (bhart ki khoj)

प्रश्न 1. 1942 का आंदोलन क्या था?
उत्तर: अगस्त, 1942 में भारत में जो कुछ हुआ, वह आकस्मिक नहीं था। वह पहले से चली आ रही असंतोष की परिणति थी। पूरे भारत में 1942 में युवा पीढ़ी ने विशेष विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने हिंसक और शांतिपूर्ण-दोनों तरह की कार्यवाहियों से बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया। 1942 के दंगों में पुलिस और सेना की गोलाबारी में हजारों लोग मारे गए तथा घायल हुए।

प्रश्न 3. अकाल के दौरान क्या अंतर्विरोध दिखाई पड़ रहे थे?
उत्तर: अकाल के दौरान कलकत्ता की सड़कों पर लाशें बिछी पड़ी थी तो दूसरी ओर अमीर तबके के लोग नाच-गाने, राग-रंग में मस्त थे। उनके सामाजिक जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया था। दावतों तथा विलासिता का प्रदर्शन हो रहा था। उनका जीवन उल्लास से भरा था।

प्रश्न 4. टैगोर ने मृत्यु-शैय्या पर पड़े हुए क्या कहा था?
उत्तर: टैगोर ने मृत्यु-शैय्या पर पड़े हुए कहा था कि ये अंग्रेज कैसा भारत छोड़ेंगे? कितनी नग्न दुर्गति है? अंत में उनकी सदियों पुरानी प्रशासन की धारा सूख जाएगी तो वे अपने पीछे कितनी कीचड़ और कचरा छोड़ जाएंगे।

प्रश्न 5. अकाल युद्ध के बाद प्रकृति क्या करती है?
उत्तर: अकाल युद्ध के बाद प्रकृति अपना कायाकल्प करती है। नए प्रकार से सृजन- कार्य होता है। लड़ाई के मैदान फूलों और हरी घास से भर जाते हैं।

दो पृष्ठभूमियाँ पाठ-9 (भारत की खोज)

भारत में अगस्त, 1942 में जो कुछ हुआ, वह आकस्मिक नहीं था। वह पहले से जो कुछ होता आ रहा था, उसकी परिणति थी।

व्यापक उथल-पुथल और उसका दमन- जनता की ओर से अकस्मात् संगठित प्रदर्शन और विस्फोट जिसका अंत हिंसात्मक संघर्ष और तोड़-फोड़ होता था। इससे जनता की तीव्रता का पता चलता था। 1942 में पूरी युवा पीढ़ी ने विशेष रूप से विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने हिंसक और शांतिपूर्ण दोनों की तरह की कार्यवाहियों में महत्त्वपूर्ण काम किया। 1942 के दंगों में पुलिस और सेना की गोलीबारी से मारे गए और घायलों की संख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1028 लोग मरे और 3200 लोग घायल हुए। जनता के अनुसार मृतकों की संख्या 25000 थी। संभवतः यह संख्या कुछ ज्यादा रही हो, पर 10000 की संख्या ठीक होगी।

भारत की बीमारी : अकाल- भारत तन और मन दोनों से बीमार था। उन दिनों अकाल पड़ा। इसका व्यापक असर बंगाल और दक्षिणी भारत पर पड़ा। पिछले 170 सालों में यह सबसे बड़ा और विनाशकारी था। इसकी तुलना 1766 ई. से 1770 ई. के दौरान बिहार और बंगाल के उन भयंकर अकालों से की जा सकती है जो ब्रिटिश शासन की स्थापना के आरंभिक परिणाम थे। इसके बाद महामारी फैली, विशेषकर हैजा और मलेरिया।

हजारों की संख्या में लोग काल का ग्रास बन गए। कोलकाता की सड़कों पर लाशें बिछी थीं। ऊपरी तबके के लोगों में विलासिता जारी थी। उनका जीवन उल्लास से भरा था। सन् 1943 के उत्तरार्द्ध में अकाल के उन भयंकर दिनों में जैसा अंतर्विरोध कोलकाता में दिखाई दिया, वैसा पहले कभी नहीं था। भारत गरीबी और भुखमरी के कगार पर था। भारत में ब्रिटिश शासन पर बंगाल की भयंकर बरबादी ने और उड़ीसा मालाबार और दूसरे स्थानों पर पड़ने वाले अकाल ने आखिरी फैसला दे दिया कि जब अंग्रेज जाएँगे तो क्या छोड़ेंगे। वे अपने पीछे कचरा और कीचड़ ही छोड़ेंगे।

भारत का सजीव सामर्थ्य- अकाल और युद्ध के बावजूद प्रकृति अपना कायाकल्प करती है और कल के लड़ाई के मैदान को आज फूल और हरी घास से ढक देती है। मनुष्य के पास स्मृति का विलक्षण गुण होता है। आज जो बीते हुए कल की संतान हैं, खुद अपनी जगह अपनी संतान आने वाले कल को दे जाते हैं। कमजोर आत्मा वाले लोग समर्पण कर देते हैं, लेकिन बाकी लोग मशाल को आगे ले जाते हैं और आने वाले मार्गदर्शकों को सौंप देते हैं।

अंतिम दौर दो (भारत की खोज) antim daur do (bharat ki khoj) प्रश्नोत्तर व सारांश

प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर देश में राहत और प्रगति के बजाय दमनकारी कानून और पंजाब में मार्शल लॉ लागू हुआ। जनता में अपमान की कड़वाहट और क्रोध फैल गया। शोषण का बाजार गर्म था।

प्रश्न 2. गाँधी जी का आगमन कैसा था?
उत्तर: गाँधी जी का आगमन एक ताजा हवा के झोंके की तरह था। उन्होंने हमें गहरी सांस लेने योग्य बनाया। गाँधी जी की शिक्षा का सार था निर्भयता और सत्य और इनसे जुड़ा कर्म। गाँधी जी ने भारत के करोड़ों लोगों को प्रभावित किया।

प्रश्न 3. गाँधी जी के नेतृत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: जब गाँधी जी ने पहली बार कांग्रेस संगठन में प्रवेश किया, तब तत्काल इसके संविधान में परिवर्तन ला दिया। उनका तरीका शांतिपूर्ण था। उनमें मुकाबला करने की भरपूर शक्ति थी। उनकी कांग्रेस का मुख्य आधार था-राष्ट्रीय एकता। इनमें अल्पसंख्यकों की समस्याओं को हल करना और दलित जातियों को ऊपर उठाने के साथ छुआछूत के अभिशाप को खत्म करना। गाँधी जी ने अंग्रेजी शासन की बुनियाद पर चोट किया। गाँधी जी निवृत्ति मार्ग के विरोधी थे। आर्थिक, सामाजिक और दूसरे मामलों में गाँधी जी के विचार सख्त थे।

प्रश्न 4. गाँधी जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: गाँधी जी मूलतः धर्म-परायण व्यक्ति थे। कर्म संबंधी अवधारणा का किसी सिद्धांत, परंपरा या कर्मकांड से संबंध नहीं था। वे सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों में विश्वास करते थे। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता था। वे गरीबों और स्त्रियों के लिए कार्य करते थे।

प्रश्न 5. गाँधी जी ने भारतीय संस्कृति के बारे में क्या कहा?
उत्तर: गाँधी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति न हिंदू है न इस्लाम, न पूरी तरह से कुछ और है। यह सबका मिला-जुला रूप है।

प्रश्न 6. लेखक ने किसे अद्भुत तेजस्वी व्यक्ति कहा है?
उत्तर: लेखक ने गाँधी जी को अद्भुत तेजस्वी व्यक्ति कहा है जिसका पैमाना सबसे गरीब व्यक्ति है। उन्होंने भारत की जनता को सम्मोहित कर लिया और उन्हें चुंबक की तरह सम्मोहित किया।

प्रश्न 7. मोहम्मद अली जिन्ना के क्या विचार थे?
उत्तर: मोहम्मद अली जिन्ना की माँग का आधार एक नया सिद्धांत था-भारत में दो राष्ट्र हैं-हिंदू और मुसलमान। इनके दो राष्ट्रों के सिद्धांत से पाकिस्तान या भारत के विभाजन की अवधारणा का विकास हुआ, लेकिन इससे दो राष्ट्रों की समस्या का हल नहीं हुआ।

प्रश्न 8. कांग्रेस किन प्रश्नों पर अडिग रही?
उत्तर: कांग्रेस दो प्रश्नों पर अडिग रही- (1) राष्ट्रीय एकता, (2) लोकतंत्र।

प्रश्न 9. अगस्त, 1940 में कांग्रेस ने क्या घोषणा की?
उत्तर: कांग्रेस ने कहा कि भारत में ब्रिटिश सरकार की नीति जनजीवन में संघर्ष और फूट को प्रत्यक्ष रूप से उकसाती और भड़काती है।

प्रश्न 10. अंग्रेजों ने किसके मतभेदों को प्रोत्साहित किया?
उत्तर: अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के मतभेदों को प्रोत्साहित किया।

तनाव पाठ-7 सारांश (भारत की खोज)

राष्ट्रपिता बनाम साम्राज्यवाद-
मध्यवर्ग की बेवसी : गाँधी का आगमन- पहला विश्वयुद्ध आरंभ हुआ। राजनीति उतार पर थी। यह युद्ध समाप्त हुआ और भारत में दमनकारी कानून और पंजाब में मार्शल लॉ लागू हुआ। शोषण लगातार बढ़ रहा था, तभी गाँधी जी का आगमन हुआ। गाँधी जी ने भारत में करोड़ों लोगों को प्रभावित किया। गाँधी जी ने पहली बार कांग्रेस के संगठन में प्रवेश किया। इस संगठन का लक्ष्य और आधार था-सक्रियता। इसका आधार शांतिप्रियता थी। गाँधी जी ने अंग्रेजी शासन की बुनियाद पर चोट की। कांग्रेस के पुराने नेता, जो एक अलग निष्क्रिय परंपरा में पले थे, इन नए तौर-तरीकों को आसानी से नहीं पचा पाए। ऐसा कहा जाता है कि भारतीय मूलतः निवृत्ति मार्गी है, पर गाँधी जी इस निवृत्त मार्ग के विपरीत थे। उन्होंने भारतीय जनता की निष्क्रियता के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्होंने लोगों को गाँव की ओर भेजा। देहात में हलचल मच गई। गाँधी जी मूलतः धर्मप्राण व्यक्ति थे। वे भारत को अपनी इच्छाओं तथा आदर्शों के अनुसार ढाल रहे थे। वे सभी को समान अधिकार देने के पक्षपाती थे। इस अद्भुत तेजस्वी आदमी का पैमाना सबसे गरीब आदमी था। कांग्रेस पर गाँधी जी का प्रभुत्व था। सन् 1920 में नेशनल कांग्रेस ने काफी हद तक देश में एक नए रास्ते को अपना लिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ और उसके कारण बहुत कष्ट उठाने पड़े, लेकिन उससे ताकत ही प्राप्त हुई।

अल्पसंख्यकों की समस्या : मुस्लिम लीग-मोहम्मद अली जिन्ना- राजनीतिक मामलों में धर्म का स्थान साम्प्रदायिकता ने लिया था। कांग्रेस सांप्रदायिक हल निकालने के लिए उत्सुक और चिंतित थी। कांग्रेस की सदस्य संख्या में मुख्य रूप से हिंदू थे। कांग्रेस दो बुनियादी प्रश्नों पर अडिग रही-राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र। 1940 में कांग्रेस ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश सरकार की नीति जनजीवन में संघर्ष और फूट को प्रत्यक्ष रूप से उकसाती और भड़काती है।

बीते दिनों में अंग्रेजों की नीति मुस्लिम लीग और हिंदू सभा के मतभेदों को प्रोत्साहित करके उन पर बल देने की और साम्प्रदायिक संगठनों को कांग्रेस के विरुद्ध महत्त्व देने की रही।

मिस्टर जिन्ना की माँग का आधार एक नया सिद्धांत था-भारत में दो राष्ट्र हैं-हिंदू और मुसलमान। यदि राष्ट्रीयता का आधार धर्म है तो भारत में बहुत से राष्ट्र हैं। मिस्टर जिन्ना के दो राष्ट्रों के सिद्धांत से पाकिस्तान या भारत के विभाजन की अवधारणा का विकास हुआ। लेकिन उससे दो राष्ट्रों की समस्या का हल नहीं हुआ, क्योंकि वे तो पूरे देश में थे।

अंतिम दौर एक प्रश्नोत्तर (भारत की खोज)

प्रश्न 1.अंग्रेजों ने अपनी व्यवस्था चलाने के लिए क्या किया?
उत्तर:अंग्रेजों ने भारत में अपने नमूने के बड़े जमींदार पैदा किए। उनका लक्ष्य था- लगान की शक्ल में अधिक से अधिक रुपया इकट्ठा करना। ब्रिटिश शासन ने इस प्रकार अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर लिया।

प्रश्न 2.भारत का इस्तेमाल किस प्रकार किया था?
उत्तर:इंग्लैंड ने भारत को साम्राज्यवादी उद्देश्यों के लिए बिना कुछ भुगतान किए अड्डे की तरह इस्तेमाल किया। इसके अलावा उसे इंग्लैंड में ब्रिटिश सेना के एक हिस्से के प्रशिक्षण का खर्च भी उठाना पड़ा। इसे ‘कैपिटेशन चार्ज’ कहा जाता था।

प्रश्न 3.18वीं शताब्दी में बंगाल में किस व्यक्तित्व का उदय हुआ?
उत्तर:यह प्रभावशाली व्यक्तित्व था-राजा राममोहन राय। वे एक नए ढंग के व्यक्ति थे। उन्हें भारतीय विचारधारा और दर्शन की गहरी समझ थी। उन्होंने अनेक भाषाएँ सीखी थीं। वे समाज-सुधारक थे। उन्हीं के आंदोलन के कारण सती-प्रथा पर रोक लगी।

प्रश्न 4.सन् 1857 में भारत में क्या हुआ?
उत्तर:सन् 1857 में मेरठ की भारतीय सेना ने बगावत कर दी। विद्रोह की योजना गुप्त थी पर समय से पूर्व विस्फोट ने नेताओं की योजना बिगाड़ दी। हिंदू, मुसलमान दोनों ने विद्रोह में भाग लिया। यह विद्रोह दबा दिया गया।

प्रश्न 5.1857 के विद्रोह से क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:इस विद्रोह से ये नेता उभरे-1. तात्या टोपे, 2. रानी लक्ष्मीबाई।

प्रश्न 6.विद्रोह की ब्रिटेन में क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को झकझोर कर रख दिया। सरकार ने प्रशासन का पुनर्गठन किया। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी से देश का शासन अपने हाथों में ले लिया।

प्रश्न 7.श्री रामकृष्ण परमहंस कौन थे?
उत्तर:श्री रामकृष्ण परमहंस बंगाल के थे। उनका नए पढ़े-लिखे लोगों पर बहुत प्रभाव था। वे सीधे चैतन्य और भारत के अन्य संतों की परंपरा में आते थे। वे मुख्यतः धार्मिक थे, पर साथ ही बहुत उदार थे। वे कलकत्ता के निकट दक्षिणेश्वर में रहते थे।

प्रश्न 8.विवेकानंद के बारे में बताइए।
उत्तर:विवेकानंद ने अपने गुरु-भाइयों के सहयोग से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। वे बांग्ला और अंग्रेजी के ओजस्वी वक्ता थे। 1893 ई. में उन्होंने शिकागो के अंतर्राष्ट्रीय धर्म-सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने वेदांत के अद्वैत दर्शन के एकेश्वरवाद का उपदेश दिया। 1902 ई. में 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 9.रवींद्र नाथ ठाकुर कौन थे?
उत्तर:रवींद्र नाथ ठाकुर विवेकानंद के समकालीन थे। वे श्रेष्ठ लेखक और कलाकार थे। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने जलियाँवाला बाग कांड का विरोध करते हुए ‘सर’ की उपाधि लौटा दी। शांति निकेतन की स्थापना की। घोर व्यक्तिवादी होने के बावजूद वे रूसी क्रांति की उपलब्धियों के प्रशंसक थे। टैगोर भारत के सबसे बड़े मानवतावादी थे।

प्रश्न 10.टैगोर और गाँधी जी में क्या अंतर था?
उत्तर:टैगोर सम्भ्रांत कलाकार थे; जबकि गाँधी जी विशेष रूप से आम जनता के आदमी थे। टैगोर मूलतः विचारक थे; जबकि गाँधी जी अनवरत् 

नई समस्याएं (भारत की खोज) पाठ-5 NAYI SAMSYAYEN (BHARAT KI KHOJ) CHAPTER-5

प्रश्नोत्तर PRASHNOTTAR (बहुविकल्पीय)

प्रश्न 1. बाबर कौन था?
(i) मुगल शासन का संस्थापक
(ii) मुगल शासन का सेनापति
(iii) इस्लाम धर्म का संस्थापक
(iv) एक विदेशी आक्रमणकारी
उत्तर:(i) मुगल शासन का संस्थापक

प्रश्न 2.बाबर ने भारतीय सत्ता की नींव कब रखी?
(i) 1770
(ii) 1530
(iii) 1526 में
(iv) 1600
उत्तर:(iii) 1526 में

प्रश्न 3.अकबर ने किस धर्म को चलाया?
(i) दीन.ए.एलाही
(ii) मुस्लिम धर्म
(iii) इसाई धर्म
(iv) फ़ारसी धर्म
उत्तर:(i) दीन.ए.एलाही

प्रश्न 4.महमूद गज़नवी ने भारत पर आक्रमण की शुरुआत कब की?
(i) 1000 ई. में
(ii) 1100 ई. में
(ii) 1200 ई. में
(iv) 800 ई. में
उत्तर:(i) 1000 ई. में

प्रश्न 5.मुगल काल की वास्तुकला का सुंदर नमूना कौन-सा है?
(i) फतेहपुर सीकरी
(ii) कुतुबमीनार
(iii) ताजमहल
(iv) लालकिला
उत्तर:(iii) ताजमहल

प्रश्न 6.‘पद्मावत’ ग्रंथ की रचना किसने की?
(i) रहीम
(ii) जायसी
(iii) तुलसी
(iv) कबीर
उत्तर:(ii) जायसी

प्रश्न 7.मराठों के सेना नायक कौन थे?
(i) छत्रपति शिवाजी
(ii) रणजीत सिंह
(iii) टीपू सुल्तान
(iv) दारा
उत्तर:(i) छत्रपति शिवाजी

प्रश्न 8.मुगलकाल के पतन के बाद शक्तिशाली शासक के रूप में कौन उभरे?
(i) टीपू सुल्तान
(ii) हैदर अली
(iii) मराठे
(iv) अंग्रेज़
उत्तर:(iii) मराठे

प्रश्न 9.नादिरशाह कहाँ का शासक था?
(i) ईरान
(ii) इराक
(iii) अफगानिस्तान
(iv) चीन
उत्तर:(i) ईरान

प्रश्न 10.जयसिंह ने किस राज्य का निर्माण कराया?
(i) आगरा
(ii) जयपुर
(iii) बनारस
(iv) इलाहाबाद
उत्तर:(ii) जयपुर

प्रश्न 11.भारत में ईस्ट इंडिया की स्थापना कब हुई?
(i) 1700
(ii) 1800
(ii) 1600
(iv) 1500
उत्तर:(ii) 1600

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.भारत में कौन-कौन सी विदेशी जातियों का आगमन हुआ?
उत्तर:हर्षवर्धन के शासन में अरबी, तुर्की व अफगानी जातियों ने भारत में आगमन किया।

प्रश्न 2.कई इलाकों को जीतने के बाद अरब भारत में सिंध से आगे क्यों न बढ़ सके?
उत्तर:अरब आक्रमणकारियों ने दूर-दूर तक अपने इलाके का प्रसार किया। लेकिन वे सिंध प्रांत के आगे न बढ़ पाए क्योंकि भारत तब आक्रमणकारियों को रोकने में समर्थ था। इसके अन्य कारण अरबों में होने वाले आंतरिक झगड़े भी हो सकते हैं।

प्रश्न 3.महमूद गज़नवी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:महमूद गज़नवी की मृत्यु 1030 में हुई थी।

प्रश्न 4.महमूद गज़नवी के बाद भारत पर किसका आक्रमण हुआ?
उत्तर:महमूद गज़नवी के बाद 160 वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गौरी नामक अफगान ने पृथ्वीराज चौहान के समय आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गया लेकिन वर्ष 1192 में फिर दोबारा दिल्ली पर आक्रमण करके यहाँ के सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 5.तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली की क्या दशा हुई?
उत्तर:तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली बुरी तरह से तहस-नहस हो गई। इसका ढाँचा बिलकुल बिगड़ गया। इसे अपनी वास्तविक स्थिति में आने में लंबा समय लग गया। उसकी स्थिति बिलकुल सिमटकर रह गई। तैमूर के हमले का प्रभाव दिल्ली पर पूरी तरह देखा जा सकता है।

प्रश्न 6.दिल्ली की तबाही के समय भारत की क्या स्थिति थी?
उत्तर:14वीं शताब्दी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर भारत की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। उस समय दक्षिण भारत की दशा अच्छी थी। दक्षिण के राज्यों में विजय नगर सबसे अधिक शक्तिशाली रियासत थी, विजयनगर ने उत्तर भारत के अनेक शरणार्थियों को अपने ओर आकर्षित किया। उस समय दक्षिण भारत की प्रगति चरम सीमा पर थी।

प्रश्न 7.अफ़गान शासक और उसके साथ आए लोग भारतीय ढाँचे में कैसे समा गए?
उत्तर:अफ़गान शासक एवं उसके साथ आए लोग विदेशी होते हुए भी वे भारतीय ढाँचे में समा गए क्योंकि जो अफ़गान उनके साथ आए उनके परिवारों का भारतीयकरण हो गया। यानी वे भारतीय संस्कृति और विचारधारा में ढल गए। वे भारत को अपना देश व भारत के बाहर के देशों को विदेशी समझने लगे।

प्रश्न 8.राणा प्रताप कौन थे? उन्होंने जंगलों में रहना क्यों पसंद किया?
उत्तर:राणा प्रताप मेवाड़ के राजपूत शासक थे। वे अत्यंत साहसी, वीर स्वाभिमानी देशभक्त थे। वे हमेशा से ही मुगलों के विरोधी रहे। वे मुगलों को सदैव विदेशी आक्रमणकारी समझते थे। उन्होंने अकबर से भी कभी भी औपचारिक संबंध नहीं रखा और न तो उनकी अधीनता स्वीकार की। अतः उनकी पराजय होने के बाद उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के बजाय जंगलों में स्वतंत्र होकर रहना पसंद किया।

प्रश्न 9.हिंदू-मुसलमानों के आपसी समन्वय से भारत की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:अकबर के सामने प्रमुख समस्या इस्लाम के साथ अन्य धर्म के लोगों के रीति रिवाजों के मेल से राष्ट्रीय एकता कायम करने की समस्या थी, इसलिए सामाजिक स्थिति में हिंदू मुसलमानों के आपसी समन्वय से दोनों की आदतें, रहन-सहन का ढंग, रुचियाँ एक सी हो गईं। व्यापार उद्योग भी एक से हो गए। हिंदू-मुसलमानों को भारत का ही अंग समझने लगे। वे आपसी धार्मिक आयोजनों व जलसों में भी शामिल होने लगे। बोलचाल की भाषा में हिंदी एवं उर्दू आपस में मिल-जुल गए थे। हिंदू एवं मुसलमानों दोनों की आर्थिक समस्याएँ एक जैसी ही थीं।

प्रश्न 10.औरंगजेब कौन था? उसकी नीतियाँ राष्ट्रवाद के विकास में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुईं?
उत्तर:औरंगजेब मुगलवंश का शासक था और वह अकबर का प्रपौत्र था। उसकी नीतियों के कारण देश के दूर-दूर प्रांतों में आतंक फैल गया। उसकी हिंदू विरोधी नीतियों के कारण सिख और मराठे उसके विरुद्ध हो गए। इससे लोगों में असंतोष की भावना का प्रादुर्भाव हुआ और पुनर्जागरणवादी विचारों का उदय हुआ जिसके परिणामस्वरूप धर्मवाद और राष्ट्रवाद का उत्थान हुआ।

प्रश्न 11.जयसिंह ने किस राज्य का निर्माण करवाया? उस नगर योजना को आदर्श क्यों समझा जाता था?
उत्तर:जयसिंह ने जयपुर राज्य का निर्माण करवाया इस नगर की विशेषता थी कि इसका निर्माण विदेशी नक्शों के आधार पर किया गया था। नक्शे के आधार पर सुव्यवस्थित ढंग से बसाने के कारण नगर योजना को आदर्श समझा जाता है।

प्रश्न 12.यदि भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना न होती तो भारत की दशा कैसी होती?
उत्तर:यदि भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना नहीं हुई होती तो भारत अधिक स्वतंत्र, समृद्ध व प्रत्येक क्षेत्र में विकास करने वाला होता। वह अभी काफ़ी शक्तिशाली राष्ट्र होता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.भारत और अरब के बीच संबंध किस प्रकार मज़बूत हुए?
उत्तर:भारत और अरब के बीच एक दूसरे के यहाँ आने जाने का कार्यक्रम चलता रहा। राजदूतों के आवासों की अदला-बदली हुई। भारत से गणित और खगोलशास्त्र की पुस्तकें बगदाद पहुँची। इन पुस्तकों का अनुवाद अरबी भाषा में किया गया। कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। यह संबंध उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के साथ भी रहा। व्यापार की शुरुआत भी आपस में हुई।

प्रश्न 2.महमूद गज़नवी कौन था? उसके आक्रमण से हिंदुओं के मन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:महमूद गज़नवी अफ़गानिस्तान का तुर्क आक्रमणकारी था। उसने भारत के उत्तरी भारत पर क्रूरता के साथ आक्रमण किया। उसने भारत से बहुत बड़ा खजाना लूटा और उसे ले गया। महमूद ने पंजाब और सिंध को अपने राज्य में मिला लिया। उसने भारत में खून खराबा का तांडव मचाया। हिंदू उसके इस हरकत से काफ़ी इधर-उधर बिखर गए। बचे हुए हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति गहरी नफ़रत पैदा हो गई।

प्रश्न 3.अमीर खुसरो कौन थे? उसके प्रसिद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:अमीर खुसरो, फ़ारसी के उच्च कोटि के कवि थे। उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था और वे महान संगीतकार भी थे। उनकी प्रसिद्धि का कारण तंत्री वाद्य सितार के आविष्कारक होना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने धर्म दर्शन, तर्कशास्त्र, भाषा और व्याकरण आदि विषयों की रचना की। उन्होंने लोकगीतों एवं पहेलियों की रचना की। इन लोकगीतों और पहेलियों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया।

प्रश्न 4.अकबर कौन था? उसने देश की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए उसने क्या-क्या प्रयास किया?
उत्तर:अकबर मुगल खानदान का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। उसने भारत की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए स्वाभिमानी राजपतों को अपनी ओर मिलाया। उसने अपनी और अपने बेटों की शादी राजपूत घराने में की। इसके अलावे उसने विद्वान हिंदुओं को अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। हिंदू और मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक एक नया सर्वमान्य धर्म चलाया।

प्रश्न 5.मुगल शासन काल में साहित्य को बढ़ावा मिला स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:मुगलकाल में भारतीय साहित्य को काफ़ी बढ़ावा मिला। अनेक हिंदू कवि एवं लेखकों ने दरबारी भाषा में पुस्तकों की रचना की। अकबर के दरबार में हिंदू और मुस्लिम विद्वानों को काफ़ी प्रश्रय दिया गया, जिनमें फैज़ी, अबुल फ़जल, बीरबल, राजा मान सिंह, अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख थे। मुगलकाल में हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत लिखा था तथा अब्दुल रहीम खाना ने अनेक नीति भरे दोहों की रचना की। इसी काल में विद्वान मुसलमानों ने संस्कृत पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया।

प्रश्न 6.नादिरशाह कौन था? उसने दिल्ली पर आक्रमण क्यों किया? इसका मुख्य क्या परिणाम निकला?
उत्तर:नादिरशाह ईरान का शासक था। उसने दिल्ली पर आक्रमण दिल्ली को लूटने के लिए किया। उसने दिल्ली की बेशुमार धन-दौलत लूटकर दिल्ली के शासकों को अत्यधिक कमज़ोर बना दिया।

प्रश्न 7.शिवाजी कौन थे? उनका नाम भारतीय इतिहास में क्यों लोकप्रिय है?
उत्तर:शिवाजी मराठों के सेनानायक थे। उनका जन्म सन् 1627 ई. में हुआ था। वे एक कुशल छापामार थे। उनकी सेना के घुड़सवार दूर-दूर छापा मारकर शत्रुओं का मुकाबला करते थे। उन्होंने सूरत में अंग्रेजों की कोठियों को लूटा और मुगल साम्राज्य के क्षेत्र में चौथ नामक एक टैक्स लगाया। उन्होंने मराठों को एकत्रित कर दुर्जेय शक्ति का रूप दिया।

CBSE Worksheet 01नयी समस्याएँ

  1. महमूद गज़नवी की मृत्यु कब हुई?
  2. जय सिंह ने किस राज्य का निर्माण करवाया उसकी क्या विशेषता थी?
  3. विद्वान एडम स्मिथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए क्या लिखा?
  4. मुगल शासनकाल में साहित्य को भी बढ़ावा मिला था ,स्पष्ट कीजिए । 
  5. भारत की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए अकबर ने क्या-क्या प्रयास किए ?
  6. बाबर कौन था, उसके व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए ?
  7.  हिंदू-मुसलमानों के आपसी समन्वय से भारत की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
  8. शेरशाह ने किसकी नींव डाली तथा शाहबुद्दीन गौरी कौन था? नयी समस्याएँ पाठ के आधार पर बताइये।

CBSE Worksheet 01
नयी समस्याएँ


Solution

  1. महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ई. में हुई।
  2. जय सिंह ने जयपुर राज्य का निर्माण करवाया। इस राज्य की यह विशेषता थी कि इसका निर्माण विदेशी नक्शों के आधार पर किया गया था।
  3. विद्वान एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘द वैल्थ ऑफ नेशंस’ में लिखा-‘एकमात्र व्यापारियों की कंपनी की सरकार किसी भी देश के लिए सबसे बुरी सरकार है।’
  4. मुगलकाल में साहित्य को भी खूब बढ़ावा मिला। अनेक हिंदू साहित्यकारों ने दरबारी भाषा में पुस्तकें लिखीं। इसी समय विद्वान मुसलमानों ने संस्कृत की पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया। हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ लिखा तथा अब्दुल रहीम खानखाना ने अनेक नीति भरे दोहों की रचना की।
  5. भारत की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए अकबर ने निम्नलिखित कार्य किए: (i) उसने स्वाभिमानी राजपूत सरदारों को अपनी ओर मिलाया। (ii) उसने अपनी तथा अपने बेटे की शादी राजपूत घराने में की। (iii) उसने विद्वान हिंदुओं को अपने दरबार में विशेष नौरत्नों में स्थान प्रदान किया। (ii) उसने ‘दीन-ए-इलाही’ नामक नया एवं सर्वमान्य धर्म चलाने का प्रयास किया।
  6. बाबर भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। उसने 1526 ई० में दिल्ली की सल्तनत को जीता।वह आकर्षक व्यक्तित्व वाला एवं कला और साहित्य का शौकीन था। अपने चार साल के शासनकाल में उसने कई युद्ध किए तथा आगरा को अपनी राजधानी बनाया।
  7. हिन्-मुसलमानों के आपसी समन्वय से दोनों को आदतें, रहन-सहन का ढंग, कलात्मक रुचियाँ एक सी हो गई। व्यापार प्रयोग भी एक से ही हो गए। हिन्दू मुसलमानों को भारत का ही अंग समझने लगे। एक-दूसरे के त्योहारों य जलसों में भी शरीक होते थे। एक ही भाषा बोलते थे क्योंकि इस समय बोलचाल की भाषा में हिंदी व फारसी के शब्द मिले-जुले हो गए थे। दोनों की आर्थिक समस्याएँ भी समान थीं। इतना सब होने पर भी आपसी वैवाहिक सबंध बहुत कम थे। खान-पान भी अलग-अलग तरह से था।
  8. शेरशाह ने मालगुजारी व्यवस्था की नींव डाली। शाहबुद्दीन गौरी एक अफगानी था। इसने महमूद गजनवी के गजनी पर आक्रमण किया और उसे हराकर वहाँ अपना शासन कायम किया। उसने गजनवी साम्राज्य का अंत कर दिया। आरंभ में शाहबुद्दीन गौरी ने लाहौर पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया। इसके बाद उसने दिल्ली पर आक्रमण किया और उसकी सल्तनत को भी हथिया लिया। उसने पृथ्वीराज चौहान को 1192 ई. में पराजित किया। इसके बाद वह स्वयं दिल्ली का शासक बन बैठा। 

CLASS – 8 hindiपाठ – 5 नयी समस्याएँअरब और मंगोल CBSE, NCERT, KVS, NVS

जब हर्ष उत्तर-भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य के शासक थे और विद्वान चीनी यात्री हुआन त्सांग नालंदा में अध्ययन कर रहे थे, उसी समय अरब में इस्लाम अपना रूप ग्रहण कर रहा था। भारत के मध्य भाग तक पहुँचने में इसे लगभग 600 वर्ष लग गए और जब उसने राजनीतिक विजय के साथ भारत में प्रवेश किया, तब वह बहुत बदल चुका था और उसके नेता दूसरे लोग थे। अरब वाले भारत के उत्तर-पश्चिमी छोर तक पहुँचकर वहीं रुक गए। अरब सभ्यता का क्रमशः पतन हुआ और मध्य तथा पश्चिमी एशिया में तुर्की जातियाँ आगे आई। भारत के सीमावर्ती प्रदेश से यही तुर्क और अफ़गान इस्लाम को राजनीतिक शक्ति के रूप में भारत लाए।

अरबों ने बड़ी आसानी से दूर-दूर तक फैलकर तमाम इलाके फ़तह किए। पर भारत में वे तब भी और बाद में भी सिंध से आगे नहीं बढ़े। शायद भारत तब भी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए काफ़ी मज़बूत था। किसी हद तक इसका कारण अरबों के आंतरिक झगड़े भी हो सकते हैं। सिंध बगदाद की केंद्रीय सत्ता से अलग होकर एक छोटा-सा स्वतंत्र राज्य हो गया। हालाँकि आक्रमण नहीं हुआ, पर भारत और अरब के बीच संपर्क बढ़ने लगा। दोनों ओर से यात्रियों का आना-जाना हुआ, राजदूतावासों की अदला-बदली हुई। भारतीय पुस्तकें, विशेषकर गणित और खगोलशास्त्र पर, बगदाद पहुँचीं और वहाँ अरबी में उनके अनुवाद हुए। बहुत से भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। यह व्यापार और सांस्कृतिक संबंध उत्तर भारत तक सीमित नहीं थे। भारत के दक्षिणी राज्यों ने भी उसमें हिस्सा लिया, विशेषकर राष्ट्रकूटों ने जो भारत के पश्चिमी तट से व्यापार किया करते थे।

इस लगातार संपर्क के कारण भारतीयों को अनिवार्य रूप से इस नए धर्म इस्लाम की जानकारी हो गई। इस नए धर्म को फैलाने के लिए प्रचारक भी आए और उनका स्वागत हुआ। मसजिदें बनीं। न शासन ने इसका विरोध किया न जनता ने। न कोई धार्मिक झगड़े हुए। सब धर्मों का आदर और पूजा के सभी तरीकों के प्रति सहनशीलता का व्यवहार करना भारत की प्राचीन परंपरा थी। अतः राजनीतिक ताकत के रूप में आने से कई शताब्दी पहले इस्लाम भारत में एक धर्म के रूप में आ गया था।

लगभग तीन सौ वर्ष तक भारत पर कोई और आक्रमण नहीं हुआ। 1000 ई. के आसपास अफ़गानिस्तान के सुलतान महमूद गज़नवी ने भारत पर आक्रमण करने आरंभ किए। महमूद गज़नवी तुर्क था जिसने मध्य एशिया में अपनी ताकत बढ़ा ली थी। उसने बड़ी निर्ममता से कई आक्रमण किए जिनमें बहुत खून-खराबा हुआ। हर बार महमूद अपने साथ बहुत बड़ा खजाना ले गया। हिंदू धूलकणों की तरह चारों तरफ़ बिखर गए और उनकी याद भर लोगों के मुँह में पुराने किस्से की तरह बाकी रह गई। जो तितर-बितर होकर बचे रहे उनके मन में सभी मुसलमानों के प्रति गहरी नफ़रत पैदा हो गई।

अनुमान लगाया जा सकता है कि महमूद ने कितनी तबाही की थी। पर महमूद ने उत्तरी भारत के सिर्फ़ एक टुकड़े को छुआ और लूटा था जो उसके धावे के रास्ते में पड़ा था। पूरा मध्य पूर्वी और दक्षिणी भारत उससे पूरी तरह बच गया था।

महमूद ने पंजाब और सिंधु को अपने राज्य में मिला लिया। वह हर धावे के बाद गज़नी लौट जाता था। वह कश्मीर पर विजय नहीं पा सका। यह पहाड़ी देश उसे रोकने और मार भगाने में सफल हो गया। काठियावाड़ में सोमनाथ से लौटते हुए राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में भी उसे भारी हार खानी पड़ी। इस आखिरी धावे के बाद वह फिर नहीं लौटा।

महमूद की मृत्यु 1030 ई. में हुई। उसकी मृत्यु के बाद 160 वर्षों से अधिक समय तक न तो भारत पर कोई आक्रमण हुआ और न ही पंजाब के आगे तुर्की शासन का विस्तार हुआ। इसके बाद शाहबुद्दीन गौरी नाम के एक अफ़गान ने गज़नी पर कब्ज़ा कर लिया और गज़नवी साम्राज्य का अंत हों गया। उसने पहले लाहौर पर धावा किया और फिर दिल्ली पर। दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने उसे पूरी तरह पराजित कर दिया। शाहबुद्दीन अफ़गानिस्तान लौट गया और अगले साल एक और फौज़ लेकर लौटा। इस बार उसकी जीत हुई और 1192 ई. में वह दिल्ली के तख़्त पर बैठा।

दिल्ली फ़तह करने का मतलब यह नहीं था कि बाकी भारत भी फ़तह हो गया। दक्षिण में चोल शासक अभी तक बहुत शक्तिशाली थे और उनके अलावा दूसरे स्वतंत्र राज्य भी थे। अफ़गानों को दक्षिण भारत के बड़े हिस्से तक अपने शासन का विस्तार करने में डेढ़ शताब्दी और लगी। लेकिन इस नयी व्यवस्था में दिल्ली का स्थान महत्त्वपूर्ण भी था और प्रतीकात्मक भी। भारत पर महमूद गज़नवी के आक्रमण का परिणाम यह हुआ कि कुछ समय के लिए पंजाब बाकी भारत से अलग हो गया। बारहवीं शताब्दी के अंत में आने वाले अफ़गानों की बात कुछ और थी। वे हिंद-आर्य जाति के लोग थे और भारत की जनता से उनका निकट का संबंध था। लंबे समय तक अफ़गानिस्तान भारत का हिस्सा होकर रहा है और ऐसा होना उसकी नियति थी।

चौदहवीं शताब्दी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत की ध्वस्त कर दिया। वह कुछ ही महीने भारत में रहा। वह दिल्ली आया और लौट गया, पर जिस रास्ते से वह आया उसी खोपड़ियों के मीनारों से वह रास्ते को सजाता चला गया। दिल्ली खुद मुर्दों का शहर बन गई। सौभाग्य से वह बहुत आगे नहीं बढ़ा और पंजाब के कुछ हिस्सों और दिल्ली को ही यह भयानक विपत्ति झेलनी पड़ी।

दिल्ली की मौत की नींद से उठने में कई वर्ष लगे। जागने पर वह इस विशाल साम्राज्य की राजधानी नहीं रह गई थी। तैमूर के हमले ने साम्राज्य को तोड़ दिया था और उसके खंडहरों पर दक्षिण में कई राज्य उठ खड़े हुए थे। इससे बहुत पहले, चौदहवीं शताब्दी के आरंभ में, दो बड़े राज्य कायम हुए थे-गुलबर्ग जो बहमनी राज्य के नाम से प्रसिद्ध है और विजयनगर का हिंदू राज्य।

दिल्ली की तबाही के बाद उत्तरी भारत कमज़ोर पड़कर टुकड़ों में बँट गया। दक्षिण भारत की स्थिति बेहतर थी और वहाँ के राज्यों में सबरों बड़ी और शक्तिशाली रियासत विजयनगर थी। इस रियासत और नगर ने उत्तर के बहुत से हिंदू शरणार्थियों को आकर्षित किया। उपलब्ध वृत्तांतो से पता चलता है कि शहर बहुत समृद्ध और सुंदर था।

जब दक्षिण में विजयनगर तरक्की कर रहा था, उस समय उत्तर की पहाड़ियों से होकर एक और हमलावर दिल्ली के पास, पानीपत के प्रसिद्ध मैदान में आया। उसने 1526 ई. में दिल्ली के सिंहासन को जीत लिया। मध्य एशिया के तैमूर वंश का यह तुर्क-मंगोल बाबर था। भारत में मुगल साम्राज्य की नींव उसी ने डाली।

समन्वय और मिली-जुली संस्कृति का विकास

कबीर, गुरु नानक और अमीर खुसरो

भारत पर मुस्लिम आक्रमण की या भारत में मुस्लिम युग की बात करना गलत और भ्रामक हैं। इस्लाम ने भारत पर आक्रमण नहीं किया, वह भारत में कुछ सदियों के बाद आया। आक्रमण तुर्कों (महमूद) ने किया था, अफ़गानों ने किया था और उसके बाद तुर्क-मंगोल या मुगल आक्रमण हुआ। इनमें से बाद के दो आक्रमण महत्त्वपूर्ण थे। अफ़गानों को हम भारत का सीमावर्ती समुदाय कह सकते हैं, जो भारत के लिए पूरी तरह अजनबी भी नहीं माने जा सकते। उनके राजनीतिक शासन के काल को हिंद-अफ़गान युग कहना चाहिए। मुगल भारत के लिए बाहर के और अजनबी लोग थे, फिर भी वे भारतीय ढाँचे में बड़ी तेज़ी से समा गए और उन्होंने हिंदू-मुगल युग की शुरुआत की।

अफ़गान शासक और जो लोग उनके साथ आए थे वे भी भारत में समा गए। उनके परिवारों का पूरी तरह भारतीयकरण हो गया। भारत को वे अपना घर और बाकी साड़ी दुनिया को विदेशी मानने लगे। राजनीतिक झगड़ों के बावजूद उन्हें सामान्यतः इसी रूप में स्वीकार कर लिया गया और राजपूत राजाओं में से भी बहुतों ने उन्हें अपना अधिराज मान लिया। पर कुछ ऐसे राजपूत सरदार थे जिन्होंने उनकी अधीनता अस्वीकार कर दी और भयंकर इगड़े हुए। दिल्ली के प्रसिद्ध सुल्तान फ़िरोजशाह की माँ हिंदू थी। यही स्थिति गयासुद्दीन तुगलक की थी। अफ़गानी, तुर्की और हिंदू सामंतों के बीच विवाह होते तो थे पर आमतौर पर नहीं। दक्षिण में गुलबर्ग के मुस्लिम शासक ने विजयनगर की हिंदू राजकुमारी से बहुत धूमधाम से विवाह किया था।

इस दौर में कुशल प्रशासन का विकास हुआ और यातायात के साधनों में विशेष रूप से सुधार हुआ मुख्यतः सैनिक कारणों से। सरकार अब और अधिक केंद्रीकृत हो गई गोंकि उसने इस बात का ध्यान रखा कि स्थानीय रीति-रिवाज़ों में हस्तक्षेप न करें। शेरशाह (जिसने मुगल काल के आरंभ में हस्तक्षेप किया था) अफ़गान शासकों में सबसे योग्य था। उसने ऐसी मालगुज़ारी व्यवस्था की नींव डाली जिसका आगे चलकर अकबर ने विकास किया। अकबर के प्रसिद्ध राजस्व मंत्री टोडरमल की नियुक्ति पहले शेरशाह ने ही की थी। हिंदुओं की क्षमता का अफ़गान शासन्न अधिकाधिक उपयोग करते गए।

भारत और हिंदू धर्म पर आफ़गानों की विजय का दोहरा असर पड़ा। तत्काल प्रभाव यह पड़ा कि लोग अफ़गान शासन में पड़ने वालें क्षेत्रों से दूर भागकर दक्षिण की अीर चले गए। जी बचे रहें उन्होंने विर्दशी तौर तरीकों और प्रभावों से अपने की पचाने के लिए वर्ण व्यवस्था को और कठोर बना दिया। दूसरी ओर विचारों और जीवन दोनों में इस विदेशी ढंग की ओर धीरे-धीरे लोगों का रुझान पैदा होने लगा। परिणामतः समन्वय अपने आप रूप लेने लगा। वास्तुकला की नयी शैलियाँ उपजीं, खाना-पहनना बदल गया और जीवन अनेक रूपों में प्रभावित हुआ। यह समन्वय संगीत में विशेष रूप से दिखाई पड़ा। भारत की प्राचीन शास्त्रीय पद्धति का अनुसरण करतें हुए, उसने कई दिशाओं गं विकास किया।

फ़ारसी भाषा दरबार की सरकारी भाषा बन गई और फ़ारसी के बहुत से शब्द बोलचाल की भाषा में प्रवेश कर गए। इसके साथ ही जन-भाषाओं का भी विकास किया गया।

भारत में जिन दुर्भाग्यपूर्ण बातों में वृद्धि हुई उनमें एक परदा प्रथा थी। ऐसा क्यों हुआ, यह स्पष्ट नहीं हैं। पर भारत में परदा प्रथा का विकास मुगल-काल में तब हुआ जब यह हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में पद और आदर की निशानी समझा जाने लगा। औरतों को अलग परदे में रखने की यह प्रथा उन इलाकों में ऊँचें वर्गों में विशेष रूप से फैली जहाँ मुसलमानों का प्रभाव सबसे अधिक था-यानी उस मध्य और विशाल पूर्वी प्रदेश में जिसमें दिल्ली, संयुक्त प्रांत, राजपुताना, बिहारी और बंगाल आते हैं। लेकिन अजीब बात है कि पंजाब और सरहदी सूबे में जो मुख्यतः मुस्लिम इलाके थे परदे की प्रथा उतनी कड़ी नहीं थी।

दिल्ली में अफ़गानों के प्रतिष्ठित होने के साथ, पुराने और नए के बीच एक समन्वय रूप ले रहा था। इनमें से अधिकतर परिवर्तन उच्च वगों में, अमीर उमरावों में हुए। इनका असर विशाल जन समूह पर, विशेषकर देहाती जनता पर नहीं पड़ा। उनकी शुरुआत दरबारी समाज में होती थी और वे शहरों और कस्बों में फैल जाते थे। इस तरह उत्तरी भारत में दिल्ली और संयुक्त प्रांत इसके केंद्र बने, ठीक उसी तरह जैसे ये पुरानी आर्य संस्कृति का केंद्र रहे हैं। पर इस आर्य संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण की ओर खिसक गया, जो हिंदू रूढ़िवादिता का गढ़ बन गया।

जब तैमूर के हमले से दिल्ली की सल्तनत कमज़ोर हो गई, तो जौनपुर (संयुक्त प्रांत) में एक छोटी-सी मुस्लिम रियासत खड़ी हुई। पूरी पंद्रहवीं शताब्दी के दौरान यह रियासत कला, संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र रहीं।

विकसित होती हुई आम भाषा हिंदी को यहाँ प्रोत्साहित किया गया और हिंदुओं और मुसलमानों के धर्मों के बीच समन्वय करने का प्रयास भी किया गया। लगभग इसी समय उत्तर में सुदूर कश्मीर में एक स्वतंत्र मुस्लिम शासक ज़ैनुआबदीन कोउसकी सहिष्णुता और संस्कृति के अध्ययन और प्राचीन संस्कृति को प्रोत्साहित करने के कारण बहुत यश मिला।

पूरे भारत में यह नयी उत्तेजना सक्रिय थी और नए विचार लोगों को परेशान कर रहें थे। भारत विदेशी तत्वों की आत्मसात करने का प्रयास कर रहा था और इस प्रक्रिया में थोड़ा-बहुत खुद भी बदल रहा था। इसी बीच कुछ नए ढंग के सुधारक खड़े हुए जिन्होंने इस समन्वय का जानबूझ कर समर्थन किया और अक्सर वर्ण व्यवस्था की निंदा या उपेक्षा की। पंद्रहवीं शताब्दी में दक्षिण में रामानंद और उनके उनसे भी अधिक प्रसिद्ध शिष्य में गुरु नानक हुए जो सिख धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। पूरे हिंदू धर्म पर इन सुधारकों के नए विचारों का प्रभाव पड़ा और भारत में इस्लाम का स्वरूप भी दूसरे स्थानों पर उसके स्वरूप से किसी हद तक भिन्न हो गया। इस्लाम के एकेश्वरवाद ने हिंदू धर्म को प्रभावित किया और हिंदुओं के अस्पष्ट बहुदेववाद का प्रभाव भारतीय मुसलमानों पर पड़ा। इनमें से अधिकतर भारतीय मुसलमान ऐसे थे जिन्होंने धर्म-परिवर्तन किया था और उनका पालन-पोषण प्राचीन परंपराओं में हुआ था और वे अब भी उन्हीं से घिरे थे। उनमें बाहर से आने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी।

विदेशी तत्चों के भारत में अधिकाधिक आत्मसात होने का सबसे महत्त्वपूर्ण संकेत, उनके द्वारा देश की आम भाषा का प्रयोग था, गरचे दरबार की भाषा फ़ारसी बनी रही। आरंभ के लेखकों में सबसे प्रसिद्ध अमीर खुसरो थे। वे तुर्क थे और उनका परिवार दो या तीन पीढ़ियों से संयुक्त राज्य में बसा हुआ था। वे चौदहवीं शताब्दी के दौरान कई अफ़गान सुल्तानों के शासन काल में रहे। वे फ़ारसी के चोटी के कवि थे और उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था। वे महान संगीतकार थे और उन्होंने भारतीय संगीत में कई मौलिक उद्भावनाएँ की थीं। कहा जाता है कि भारत के लोकप्रिय तंत्री वाद्य सितार का आविष्कार उन्होंने ही किया था। उन्होंने ऐसे कई विषयों पर रचना की, जिनमें भारत ने विशेष प्रगति की थी। इनमें धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र, भाषा और व्याकरण (संस्कृत) के अतिरिक्त संगीत, गणित, विज्ञान और आम का फल हैं।

उनकी प्रसिद्धि का आधार उनके लोकप्रचलित गीत हैं जिन्हें उन्होंने बोलचाल की सामान्य हिंदी में लिखा था। उन्होंने ग्रामीण जनता से केवल उसकी भाषा ही नहीं लीं बल्कि उनके रीति-रिवाज़ और रहन-सहन के ढंग का भी वर्णन किया। उन्होंने विभिन्न ऋतुओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गीत लिखे। वे गीत अब भी उत्तर और मध्य भारत के किसी भी गाँव या नगर में सुनाई पड़ सकते हैं।

अमीर खुसरो ने अनगिनत पहेलियाँ भी लिखीं। अपने लंबे जीवन-काल में ही खुसरो अपने गीतों और पहेलियों के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गए थे। ऐसी कोई और मिसाल नहीं मिलती जहाँ छह सौ साल पहले लिखे गए गीतों की लोकप्रियता आम जनता के बीच बराबर बनी रही हो और बोलों में बिना परिवर्तन किए वे अब भी उसी तरह गाए जाते हों।

बाबर और अकबर – भारतीयकरण की प्रक्रिया

अकबर भारत में मुगल खानदान का तीसरा शासक था, फिर भी साम्राज्य की बुनियाद उसी ने पक्की की। उसके बाबा ने दिल्ली के सिंहासन पर 1526 ई. में विजय प्राप्त कर ली थी। भारत में आने के चार वर्ष के भीतर ही बाबर की मृत्यु हो गई। उसका अधिकतर समय युद्ध में और आगरा में एक भव्य राजधानी बनाने में बीता। यह काम उसने कुस्तुतुनिया के एक प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी को बुलाकर कराया।

बाबर का व्यक्तित्व आकर्षक हैं, वह नयी जागृति का शहजादा हैं, बहादुर और साहसी, जो कला और साहित्य तथा अच्छे रहन-सहन का शौकीन हैं। उसका पौत्र अकबर उससे भी अधिक आकर्षक और गुणवान हैं। वह बहादुर और दुस्साहसी हैं, योग्य सेनानायक हैं और इस सबके अलावा विनम्र और दयालु है, आदर्शवादी और स्वप्नदर्शी हैं। साथ ही वह लोगों का ऐसा नेता हैं जो अपने अनुयायियों में तीव्र स्वामिभक्ति उत्पन्न कर सके। वह लोगों के दिल और दिमाग पर विजय हासिल करना चाहता था। अखंड भारत का पुराना सपना उसमें फिर आकार लेने लगा-ऐसा भारत जो केवल राजनीतिक दृष्टि से एक राज्य न ही बल्कि जिसकी जनता परस्पर सहज संबद्ध हो।

1556 ई. से आरंभ होने वाले अपने लंबे शासन के लगभग पचास वर्ष के दौरान वह बराबर इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए कोशिश करता रहा। बहुत से स्वाभिमानी राजपूत सरदारों को उसने अपनी ओर मिला लिया। उसने एक राजपूत राजकुमारी से शादी की। उसका बेटा और वारिस जहाँगीर इस तरह आधा मुगल और आधा हिंदू राजपूत था। जहाँगीर का बेटा शाहजहाँ भी राजपूत माँ का बेटा था। इसलिए यह तुर्क-मंगोल वंश, तुर्क या मंगोल होने की अपेक्षा कहीं अधिक भारतीय था।

राजपूत राजघरानों से संबंध बनाने से उसका साम्राज्य बहुत मज़बूत हुआ। इस मुगल-राजपूत सहयोग ने, जो बाद के शासकों के शासन में भी इसी तरह चलता रहा, केवल सरकार, प्रशासन और सेना को ही नहीं, कला, संस्कृति और रहन-सहन को भी प्रभावित किया। पर अकबर को राजपूताना में मेवाड़ के राणा प्रताप की अभिमानी और अदम्य आत्मा का दमन करने में सफलता नहीं मिली। राणा प्रताप ने एक ऐसे व्यक्ति से जिसे वह विदेशी विजेता समझता था औपचारिक संबंध जोड़ने की बजाय जंगलों में मारे-मारें फिरना बेहतर समझा।

अकबर ने अपने चारों ओर अत्यंत प्रतिभाशाली लोगों का समुदाय इकट्ठा किया था जो उसके आदशों के प्रति समर्पित थे। इन लोगों में फ़ैजी और अबुलफ़जल नाम के दो मशहूर भाई, बीरबल, राजा मानसिंह और अब्दुल रहीम खानखाना शामिल थे। उसने एक ऐसे नए समन्वित धर्म की शुरुआत करने का प्रयत्न किया जो सबकों मान्य हों। स्वय अकवर निश्चित रूप से हिंदुओं में उतना ही लोकप्रिय था जितना मुसलमानों में। मुगल वंश भारत में इस तरह स्थापित हुआ जैसे वह भारत का अपना वंश हो।

यांत्रिक उन्नति और रचनात्मक शक्ति में एशिया और यूरोप के बीच अंतर

अकबर के दरबार के पुर्तगाली जेसुइट बताते हैं कि उसकी दिलचस्पी बहुत सी बातों में थी और वह उन सबके बारे में जानकारी हासिल करना चाहता था। उसे सैनिक और राजनीतिक मामलों का पूरा ज्ञान तो था ही, साथ ही बहुत सी यांत्रिक कलाओं का भी। फिर भी यह अजीब बात है कि उसकी जिज्ञासा एक बिंदु पर जाकर रुक गई।

यदि अकबर ने इस तरफ़ ध्यान दिया होता और पता लगाया होता कि संसार के दूसरे हिस्सों में क्या हो रहा है तो उसने सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद रख दी होतीं। बड़ी समस्या यह थी कि वह इस्लाम के साथ राष्ट्रीय धर्म और लोगों के रीती-रिवाज़ों का मेल कराके राष्ट्रीय एकता कैसे कायम करें।

इस तरह भारत की सामाजिक स्थिति में अकबर भी कोई बुनियादी अंतर पैदा नहीं कर सका और उसके बाद भारत ने फिर अपना गतिहीन और अपरिवर्तनशील जीवन अपना लिया।

अकबर ने जो इमारत खड़ी की थी वह इतनी मज़बूत थी कि दुर्बल उत्तराधिकारियों के बावजूद वह सौ साल तक कायम रही। सिंहासन के लिए शहज़ादों में लगातार युद्ध होते रहे और केंद्रीय शक्ति कमज़ोर पड़ती गई। पर दरबार का प्रताप बना रहा और सारे एशिया और यूरोप में आलीशान मुगल बादशाहों का यश फैल गया। वास्तुकला की दृष्टि से दिल्ली और आगरा में सुंदर इमारतें तैयार हुई। यह भारतीय-मुगल कला दक्षिण और उत्तर में मंदिरों और दूसरी इमारतों की सजाबट और अलंकरण की शैली से एकदम भिन्न थी। प्रेरित वास्तुकारों और निर्माताओं ने आगरा में ताजमहल को मुहब्बत भरे हाथों से खड़ा किया।

उत्तर-पश्चिम से आने वाले आक्रमणकारियों और इस्लाम का भारत पर बहुत प्रभाव पड़ा। इस टकराहट ने उन बुराइयों को खोलकर रख दिया जो हिंदू समाज में घर कर गई थीं। जात-पाँत की सडाँध, अछूत प्रथा और अलग-अलग रहने की बेढ़ब प्रवृत्ति। इस्लाम के भाईचारे और अपना मानने वालों के बीच

बराबरी के सिद्धांत का विशेषकर उन लोगों पर गहरा असर पड़ा जिन्हें हिंदू समाज में बराबरी का दर्जा देने से इंकार कर दिया गया था। इस विचारधारात्मक टकराहट से कई आंदोलन उठ खड़े हुए जिनका उद्देश्य धार्मिक समन्वय करना था।

यह बात ध्यान देने लायक है कि वर्गों का प्रभाव इस हद तक था कि नियमतः लोगों ने इस्लाम में धर्म परिवर्तन सामूहिक रूप से किया। ऊँची जाति के लोगों में व्यक्ति कभी-कभार अकेले धर्म परिवर्तन कर लेता था पर निम्न श्रेणी के लोगों में मुहल्ले में एक जाति के लोग, या फिर लगभग सारा गाँव ही धर्म बदल लेता था। इसलिए उनका सामूहिक जीवन और काम-काज पहले की ही तरह चलते रहे। केवल पूजा के तरीकों आदि में छोटे-मोटे अंतर अवश्य आ गए। इस कारण आज हम देखते हैं कि कुछ विशेष पेशे और शिल्प ऐसे हैं जिन पर मुसलमानों का एकाधिकार है। इस तरह कपड़ा बुनने का काम मुख्यतः और ज़्यादातर हिस्सों में पूरी तरह मुसलमान करते हैं।

भारत में रहने वाले अधिकतर मुसलमानों ने हिंदू धर्म से धर्म-परिवर्तन किया था। कुछ लवे संपर्क के कारण भारत के हिंदुओं और मुसलमानों ने बहुत-सी समान विशेषताएँ, आदतें, रहने-सहने के ढंग और कलात्मक रुचियाँ विकसित कीं। वे शांतिपूर्वक एक कौम के लोगों की तरह साथ-साथ रहा करते थे। एक-दूसरे के त्योहारों और जलसों में शरीक होते थे, एक ही भाषा बोलते थे तथा बहुत कुछ एक ही तरह से रहते थे और एकदम एक जैसी आर्थिक समस्याओं का सामना करते थे।

यह तमाम आपसदारी और एक साथ रहना सहना उस वर्ण व्यवस्था के बावजूद हुआ जो ऐसे मेल-मिलाप में बाधक थी। एकाध उदाहरणों को छोड़कर आपस में शादी-व्याह नहीं होते थे और जब ऐसा होता था तो दोनों पक्ष मिलकर एक नहीं होते थे, आपसी खान-पान भी नहीं होता था, पर इस मामले में बहुत कड़ाई नहीं बरती जाती थी। औरतों के परदे में अलग-थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में रुकावट आई।

गाँव की आम जनता में अर्थात् आबादी के बड़े हिस्से में जीवन मिला-जुला था और उनमें सामूहिकता कहीं अधिक थी। गाँव के सीमित घेरे के भीतर हिंदू और मुसलमानों के बीच गहरे संबंध थे। वर्ण-व्यवस्था से कोई बाधा नहीं होती थी और हिंदुओं ने मुसलमानों को भी एक जात मान लिया था। वे एक दूसरे के त्योहारों में शरीक होते थे और कुछ अर्द्ध-धार्मिक से त्योहार दोनों के बीच समान रूप से मनाए जाते थे। उनके लोक-गीत भी एक ही थे। इनमें से ज़्यादातर लोग किसान, दस्तकार और शिल्पी थे।

मुगल शासन-काल के दौरान बहुत से हिंदुओं ने दरबार की भाषा फ़ारसी में पुस्तकें लिखीं। इनमें से कुछ पुस्तकें कालजयी रचनाएँ मानी जाती हैं। इसी समय मुसलमान विद्वानों ने फ़ारसी में संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद किया और हिंदी में लिखा। हिंदी के सबसे प्रसिद्ध कवियों में दो हैं मलिक मोहम्मद जायसी, जिन्होंने पद्मावत लिखा और अब्दुल रहीम खानखाना, जो अकबर दरबार के अमीरों में थे और उनके संरक्षक के पुत्र थे। खानखाना अरबी, फ़ारसी और संस्कृत तीनों भाषाओं के विद्वान थे और उनकी हिंदी कविता का स्तर बहुत ऊँचा था। कुछ समय तक वे शाही सेना के सिपहसालार रहे, फिर भी उन्होंने मेवाड़ के उन राणा प्रताप की प्रशंसा में लिखा जो बराबर अकबर से युद्ध करते रहे और उनके सामने कभी हथियार नहीं डाले।

औरंगज़ेब ने उल्टी गंगा बहाई – हिंदू राष्ट्रवाद का उभार – शिवाजी

औरगंज़ेब समय के विपरीत चलने वाला शासक था। अपनी सारी योग्यता और उत्साह के बावजूद उसने अपने पूर्वजो के द्वारा किए गए कामों पर पानी फेरने का प्रयास किया। वह धर्माध और कठोर नैतिकतावादी था। उसे कला या साहित्य से कोई प्रेम नहीं था। हिंदुओं पर पुराना, घृणित जज़िया-कर लगाकर और उनके बहुत से मंदिरों को तुड़वाकर उसने अपनी प्रजा के बहुत बड़े हिस्से को नाराज़ कर दिया। उसने उन अभिमानी राजपूतों को भी नाराज़ कर दिया जो मुगल साम्राज्य के अवलंब और स्तंभ थे। उत्तर में सिख उठ खड़े हुए। वे हिंदू और मुस्लिम विचारों का किसी हद तक समन्वय करने वाले शांतिप्रिय समुदाय के प्रतिनिधि थे जो दमन और अत्याचार के विरुद्ध एक सैनिक बिरादरी के रूप में संगठित हो गए। भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर उसने प्राचीन राष्ट्रकूटों के वंशज लड़ाकू मराठों को क्रुद्ध कर दिया, ठीक ऐसे समय जब उनके बीच एक अद्भुत सेनानायक उठ खड़ा हुआ था।

मुगल साम्राज्य के दूर-दूर तक फैले क्षेत्रों में उत्तेजना फैल गई और पुनर्जागरणवादी विचार पनपने लगा जिसमें धर्म और राष्ट्रवाद का मेल था। वह आधुनिक युग जैसा धर्मनिरपेक्ष ढंग का राष्ट्रवाद नहीं था, न ही इसकी व्याप्ति पूरे भारत में थी।

धर्म और राष्ट्रीयता के मेल ने दोनों ही तत्वों से शक्ति और संबद्धता हासिल की, लेकिन उसकी कमज़ोरी भी इसी मेल से पैदा हुई थी। यह केवल खास किस्म की और आंशिक राष्ट्रीयता थी जिसमें धर्म के क्षेत्र से बाहर पड़ने वाले तमाम भारतीय तत्वों का समावेश नहीं था। हिंदू राष्ट्रवाद उस व्यापक राष्ट्रीयतावाद के मार्ग में बाधक था जो धर्म और जाति के भेदभाव से ऊपर उठ जाती है। विशेषकर मराठों की अवधारणा व्यापक थी और जैसे-जैसे उनकी शक्ति बढ़ी उनके साथ इस अवधारणा का भी विकास हुआ। 1784 ई. में वारेन हेस्टिंग ने लिखा था, “हिंदोस्तान और दक्खिन के तमाम लोगों में से केवल मराठों के मन में राष्ट्र प्रेम की भावना है, जिसकी गहरी छाप राष्ट्र के हर व्यक्ति के मन पर है।” मराठे अपनी राजनीतिक और सैनिक व्यवस्था और आदतों में उदार थे और उनके भीतर लोकतांत्रिक भावना थी। इससे उन्हें शक्ति मिलती थी। शिवाजी औरंगज़ेब से लड़ा ज़रूर पर उसने मुसलमानों को खुलकर नौकरियाँ दीं।

मुगल साम्राज्य के खंडित होने का महत्त्वपूर्ण कारण आर्थिक ढाँचे का चरमराना था। किसान बार-बार विद्रोह करते थे, इनमें से कुछ आदोलन बड़े पैमाने पर हुए थे। 1669 ई. के बाद जाट किसान जो राजधानी से बहुत दूर नहीं थे बार-बार दिल्ली सरकार के खिलाफ़ खड़े होते रहे। गरीब लोगों का एक अन्य विद्रोह सतनामियों का था।

उस समय जब साम्राज्य में फूट और बगावत फैली हुई थी, पश्चिमी भारत में नयी मराठा शक्ति विकास कर रही थी और अपने को मज़बूत कर रही थी। शिवाजी, जिनका जन्म 1627 ई. में हुआ था, पहाड़ी इलाकों के सख्तजान लोगों के आदर्श छापामार नेता थे। उनके घुड़सवार दूर-दूर तक छापे मारते थे। उन्होंने सूरत को, जहाँ अंग्रजों की कोठियाँ थीं, लूटा और मुगल साम्राज्य के दूर-दूर तक फैले क्षेत्रों पर चौथ-कर लगाया। उन्होंने राष्ट्रीयतावादी पृष्ठभूमि प्रदान की और दुर्जय शक्ति का रूप दिया। 1680 ई. में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन मराठा शक्ति तब तक बढ़ती गई जब तक भारत पर उसका प्रभुत्व नहीं हो गया।

प्रभुत्व के लिए मराठों और अंग्रेज़ों के बीच संघर्ष

अंग्रेज़ों की विजय

सन् 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद 100 वर्ष तक भारत पर अधिकार करने के लिए विविध रूपों में संघर्ष चलता रहा। अद्वरहवीं शताब्दी में भारत पर अधिकार के चार दावेदार थे-इनमें से भारतीय थे मराठे और दक्षिण में हैदरअली और उसका बेटा टीपू सुलतान, विदेशी थे फ्रांसीसी और अंग्रेज़। सदी के पूर्वार्द्ध में यह लगभग निश्चित जान पड़ता था कि मराठे पूरे भारतवर्ष पर अपनी हुकूमत कायम कर लेंगे और मुगल शासन के उत्तराधिकारी होंगे। कोई शक्ति इतनी मज़बूत नहीं रह गई थी कि उनका सामना कर सके।

ठीक उसी समय (1739) उत्तर-पश्चिम में एक नया बवंडर उठ खड़ा हुआ और ईरान का नादिरशाह दिल्ली पर टूट पड़ा। उसने बड़ी मार-काट और लूटपाट मचाई और अपने साथ बेशुमार दौलत ले गया जिसमें प्रसिद्ध तख्तेताऊस भी था। दिल्ली के शासक कमज़ोर और नपुंसक हो चुके थे और मराठों से नादिरशाह की टकराहट नहीं हुई। उसके हमले से मराठों का काम आसान हो गया। वे बाद के वर्षों में पंजाब में भी फैल गए। एक बार फिर ऐसा लगा कि भारत मराठों के अधीन हो जाएगा।

नादिरशाह के आक्रमण से दिल्ली के मुगल शासकों का अधिकार और राज्य का रहा सहा दावा भी खत्म हो गया। जिस किसी के पास उन्हें नियंत्रित करने की शक्ति होती, वे उसी के हाथ की कठपुतली भर रह जाते। नादिरशाह के आने से पहले ही उनकी यह हालत हो चुकी थी। उसने इस प्रक्रिया को पूरा कर दिया। फिर भी चले आते रिवाजों के दबाव के कारण अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कंपनी और दूसरे लोग भी उनके पास प्लासी की लड़ाई से पहले तक उपहार और कर भेजते रहे, बाद में भी लंबे समय तक कंपनी दिल्ली के उस बादशाह के एजेंट के रूप में काम करती रही, जिसके नाम के सिक्के 1835 ई. तक चलते रहे।

नादिरशाह के हमले का दूसरा परिणाम यह हुआ कि अफ़गानिस्तान भारत से अलग हो गया। अफ़गानिस्तान जो बहुत लंबे समय से भारत का हिस्सा था, उससे कटकर अब नादिरशाह के राज्य का हिस्सा बन गया।

बंगाल में, जालसाज़ी और बगावत को बढ़ावा देकर, क्लाइव ने थोड़े से प्रयास से सन् 1757 में प्लासी का युद्ध जीत लिया। इस तारीख से कभी-कभी भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्य की शुरुआत मानी जाती है। जल्दी ही पूरा बंगाल और बिहार अंग्रेज़ों के हाथ आ गया। इनके शासन की शुरुआत के साथ ही 1770 ई. में इन दोनों सूबों में भयंकर अकाल पड़ा जिससे इस घनी आबादी वाले इलाके की एक तिहाई से अधिक आबादी नष्ट हो गई।

दक्षिण में, अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष, जो विश्व-व्यापी युद्ध का ही एक हिस्सा था, अंग्रेज़ों की विजय में समाप्त हुआ और भारत से फ्रांसीसियों का लगभग नामोनिशान मिट गया।

फ्रांसीसियों के भारत से हट जाने के बाद तीन ताकतें बाकी रह गई जो अधिकार के लिए संघर्ष कर रही थीं-मराठा संगठन, दक्षिण में हैदरअली और अंग्रेज़। प्लासी में उनकी जीत और बंगाल और बिहार में फैलने के बावजूद भारत में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम थी जो अंग्रेज़ों को ऐसी शक्ति के रूप में देखते हों जिसकी नियति में पूरे भारत पर राज्य करना हो। अब भी सवसे पहला स्थान मराठों को ही दिया जाता था। वे सारे पश्चिम और मध्य भारत में यहाँ तक कि दिल्ली तक फैले हुए थे और उनका साहस और युद्ध करने की योग्यता प्रसिद्ध थी। हैदरअली और टीपू सुल्तान भी विकट विरोधी थे जिन्होंने अंग्रेज़ों को बुरी तरह हराया था और ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्ति को लगभग ख़त्म कर दिया था। पर वे दक्षिण तक सीमित रहे और पूरे भारत पर उनका कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा। हैदरअली एक अद्भुत व्यक्ति और भारतीय इतिहास का उल्लेखनीय व्यक्तित्व था। उसका आदर्श किसी हद ता राष्ट्रीय था और उसमें कल्पनाशील नेता के गुण थे।

मैसूर के टीपू सुल्तान को अंग्रेज़ों ने अंततः 1799 ई. में पराजित कर दिया और इस तरह मराठों और अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच आखिरी मुकाबले के लिए मैदान साफ़ हो गया।

लेकिन मराठा सरदारों के बीच आपसी वैर था और अंग्रेज़ों ने उनसे अलग-अलग युद्ध करके उन्हें पराजित किया। उन्होंने 1804 ई. में आगरा के पास अग्रेज़ों की बुरी तरह हराया, लेकिन 1818 ई. तक आते-आते मराठा शक्ति अंतिम रूप से कुचल दी गई और उन बड़े सरदारों ने जो मध्य भारत में उनका प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ईस्ट इंडिया कंपनी की अधीनता स्वीकार कर ली। अंग्रेज़ इसके बाद भारत के अधिकांश भाग के शासक हो गए और वे देश पर सीधे या फिर अपने अधीनस्थ राजाओं के माध्यम से शासन करने लगे।

हमें बार-बार दिलाया जाता है कि अंग्रेज़ों ने भारत को अव्यवस्था और अराजकता से बचाया। यह बात इस हद तक सही हैं कि उन्होंने उस युग के बाद जिसे मराठों ने ‘आतंक का युग’ कहा है, सुव्यवस्थित शासन कायम किया। लेकिन यह अव्यवस्था और अराजकता कुछ दूर तक ईस्ट इंडिया कंपनी और भारत में उनके प्रतिनिधियों की नीति के कारण ही फैली थी। यह कल्पना भी की जा सकती हैं कि अंग्रेज़ों की सहायता के बिना भी संघर्ष की समाप्ति के बाद शांति और व्यवस्थित शासन की स्थापना हो ही सकती थी।

रणजीत सिंह और जय सिंह

आतंक के इस दौर में जनता सामान्यतः त्रस्त और पस्त ज़रूर थी पर अनेक व्यक्ति ऐसे अवश्य रहे होंगे, जो उस समय सक्रिय नयी शक्तियों को समझना चाहते होंगे लेकिन घटनाओं की बाढ़ ने उन्हें दबा दिया और उनका कोई प्रभाव न पड़ सका।

ऐसे व्यक्तियों में जिनमें जिज्ञासा भरी हुई थी महाराजा रणजीत सिंह थे। वे जाट सिख थे जिन्होंने पंजाब में अपना साम्राज्य कायम किया था। बाद में यह साम्राज्य कश्मीर और सरहदी सूबे तक फैल गया। अपनी कमज़ोरियों के बावजूद वह एक अद्भुत व्यक्ति था। वह अत्यंत मानवीय था। उसने एक राज्य और शक्तिशाली सेना का निर्माण किया, फिर भी वह खून-खराबा पसंद नहीं करता था। जब इंग्लैंड में छोटे-मोटे चोर उचक्कों को भी मौत की सज़ा भोगनी पड़ती थी, उसने मौत की सज़ा बंद कर दी, चाहें जुर्म कितना ही बड़ा हो। युद्ध के सिवाय, उसने कभी किसी की जान नहीं ली, गरचे उसकी जान लेने की कोशिश एकाधिकार बार की गई। उसका शासन निर्दयता और दमन से मुक्त था।

एक दूसरा पर कुछ और ही ढंग का भारतीय राजनेता, राजपूताने में जयपुर का सवाई जय सिंह था। उसका समय कुछ और पहले था और उसकी मृत्यु 1743 ई. में हुई थी। वह औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद होने वाली उथल-पुथल के समय हुआ था। वह इतना चतुर और अवसरवादी था कि एक के बाद एक लगने वाले धक्कों और परिवर्तनों के बावजूद बचा रहा।

वह बहादुर योद्धा और कुशल राजयनिक तो था ही, इससे बढ़कर वह गणितज्ञ, खगोल-विज्ञानी और नगर-निर्माण करने वाला था और उसकी दिलचस्पी इतिहास के अध्ययन में थी।

जय सिंह ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बड़ी-बड़ी वेधशालाएँ बनाईं। उसने जयपुर नगर बसाया। उसने उस समय के कई यूरोपीय नगरों के नक्शे इकट्ठे किए और फिर अपना नक्शा खुद बनाया। इन पुराने यूरोपीय नगरों के कई नक्शे जयपुर के अजायबघर में सुरक्षित हैं। जयपुर नगर की योजना को अब भी नगर-निर्माण का आदर्श समझा जाता हैं।

लगातार युद्धों और दरबारी षड्यंत्रों के बीच अक्सर खुद उलझे रहने पर भी जय सिंह ने बहुत कुछ  किया। जय सिंह की मृत्यु के केवल चार वर्ष पहले नादिरशाह का आक्रमण हुआ। भारतीय इतिहास के सबसे अधिक अंधकारमय युग में जब उथल-पुथल, युद्ध और उपद्रवों से माहौल भरा था राजपूताना के ठेठ सामंती वातावरण में जय सिंह ने वैज्ञानिक की तरह उठकर काम किया, यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है।

भारत की आर्थिक पृष्ठभूमि – इंग्लैंड के दो रूप

अपने आरंभिक दिनों में ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्य काम था भारतीय माल लेकर यूरोप में व्यापार करना। कंपनी को इससे बहुत लाभ हुआ। भारतीय कारीगरों और शिल्पियों की कारीगरी इस स्तर की थी कि वे इंग्लैंड में उत्पादन के उच्चतर तकनीकों का बड़ी सफलता से मुकाबला कर सकते थे। जब इग्लैंड में मशीनों का युग शुरू हुआ, उस समय भी भारतीय वस्तुएँ इतनी बहुतायत से वहाँ भरी रहती थीं कि भारी चुंगी लगाकर और कुछ चीज़ों का तो आना बंद करके रोकना पड़ा। पर यह बात स्पष्ट है कि भारत का अर्थ-तंत्र चाहे जितना विकसित रहा हो वह बहुत दिनों तक उन देशों के माल से मुकाबला नहीं कर सकता था जिनका औद्योगीकरण हो चुका था। आवश्यक हो गया कि या तो वह अपने यहाँ कल कारखाने लगाए या विदेशी आर्थिक घुस-पैठ के सामने समर्पण करे, जिसका आगे परिणाम होता राजनीतिक हस्तक्षेप। हुआ यह कि विदेशी राजनीतिक हुकूमत ने यहाँ पहले आकर बड़ी तेज़ी से उस अर्थ तंत्र को नष्ट कर दिया, जिसे भारत ने खड़ा किया था और उसकी जगह कोई निश्चित और रचनात्मक चीज़ सामने नहीं आई। ईस्ट इंडिया कंपनी सर्वशक्तिमान थी। व्यापारियों की कंपनी होने के कारण वह धन कमाने पर तुली हुई थी। ठीक उस समय जब वह तेज़ी से अपार धन कमा रही थी एडम स्मिथ ने सन् 1776 में द वैल्थ ऑफ नेशंस में लिखा “एकमात्र व्यापारियों की कंपनी की सरकार किसी भी देश के लिए सबसे बुरी सरकार है।”

इंग्लैंड का भारत में आगमन तब हुआ जब 1600 ई. में रानी एलिज़ाबेथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को परवाना दिया। उस सम्स्य शेक्सपीयर जीवित था, और लिख रहा था। 1608 ई. में मिल्टन का जन्म हुआ। उसके बाद हैंपडेन और कॉमवेल सामने आए और राजनीतिक क्रांति हुई। 1660 ई. में इंग्लैंड की रायल सोसाइटी की स्थापना हुई, जिसने विज्ञान की प्रगति में बहुत हिस्सा लिया। सौ साल बाद कपड़ा बुनने की तेज़ ढरकी का आविष्कार हुआ और उसके बाद तेज़ी से एक-एक करके कातने की कला, इंजन और मशीन के करघे निकले।

इन दो में से भारत कौन-सा इंग्लैंड आया? शेक्सपीयर और मिल्टन वाला, शालीन बातों, लेखन और बहादुरी के कारनामों वाला, राजनीतिक क्रांति और स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाला, विज्ञान और तकनीक में प्रगति करने वाला इंग्लैंड या फिर बर्बर दंड संहिता और नृशंस व्यवहार वाला, वह इंग्लैंड जो सामंतवाद और प्रतिक्रियावाद से घिरा हुआ था?

ये इंग्लैंड एक दूसरे को प्रभावित करते हुए साथ-साथ चल रहे हैं और इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। फिर भी यह हो जाता है कि गलत इंग्लैंड गलत भारत के संपर्क में आकर उसे बढ़ावा दे।

संयुक्त राज्य अमरीका के स्वतंत्र होने का समय लगभग वही है जो भारत के स्वतंत्रता खोने का समय है। यह सच है कि अमरीकियों में बहुत से गुण हैं और हममें बहुत सी कमज़ोरियाँ हैं। यह भी सच है कि अमरीका में नयी शुरुआत के लिए बिलकुल अनछुआ और साफ़ मैदान था जबकि हम प्राचीन स्मृतियों और परंपराओं से जकड़े हुए थे। फिर भी इस बात की कल्पना करना कठिन नहीं है कि यदि ब्रिटेन ने भारत में यह बहुत भारी बोझ नहीं उठाया होता (जैसा कि उन्होंने हमने बताया है) और लंबे समय तक हमें स्वराज्य करने की वह कठिन कला नहीं सिखाई होती, जिससे हम इतने अनजान थे, तो भारत न केवल अधिक स्वतंत्र और अधिक समृद्ध होता, बल्कि विज्ञान और कला के क्षेत्र में और उन सभी बातों में जो जीवन को जीने योग्य बनाती हैं, उनसे कहीं अधिक प्रगति की होती।

बाज और साँप CBSE Worksheet 01

CBSE Worksheet 01
बाज और साँप


  1. बाज़ के सामने साँप होते हुए भी साँप निर्भीक क्यों था?
  2. साँप एक कोने में  क्यों सिकुड़ गया? (बाज और साँप)
  3. सांप का निवास स्थान कहाँ और केसा था? (बाज और साँप)
  4. बाज की मृत्यु और उसके आकाश के लिए प्रेम को देखकर साँप क्या सोचने पर विवश हुआ?
  5. साँप की गुफ़ा कहाँ थी? वह गुफ़ा में बैठा क्या करता था?
  6. नदी कहाँ बहती थी? यह कहाँ भागी जा रही थी?
  7. बाज और साँप पाठ में लहरों ने अपने गीत में क्या गाया?
  8. निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए:-
    “सो उड़ने का यही आनंद है-भर पाया मैं तो! पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज़ तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए जमीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?”
    1. साँप ने आकाश से गिर जाने पर पक्षियों को मूर्ख क्यों कहा?
    2. साँप ने आकाश के प्रति किस घटना को व्यक्त किया है?
    3. क्या साँप का यह सब सोचना सही है?
    4. सांप को अपनी खोखल क्यों अच्छी लगी?
    5. साँप आकाश की ऊंचाइयों को न पा सका तो उसने कैसे संतोष किया?

CBSE Worksheet 01
बाज और साँप


Solution

  1. बाज़ की साँप से स्वाभिविक शत्रुता होने के बावजूद सांप जान गया था की बाज़ अत्याधिक घायल है और वह उसे किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाने की स्थिति में नहीं है इसलिए साँप सांप अधिक निर्भीक था।
  2. साँप अपने सामने बाज़ को देखते ही डर गया। बाज़ की साँप  से स्वाभाविक शत्रुता है। अतः इसी कारण साँप डरकर एक कोने में सिकुड़ गया।
  3. सांप का निवास स्थान समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में था, जहाँ चारो और सीलन एंव अँधेरा व्याप्त था। वहां सब ओर भयानक दुर्गन्ध फैली  हुई थी।  
  4. बाज की मृत्यु और उसके आकाश के लिए प्रेम के विषय में साँप सोचने लगा कि आखिर आकाश में ऐसा क्या आकर्षण है, जिसके लिए बाज ने अपने प्राण गँवाकर उसका चैन छीन लिया। पता नहीं वहाँ कौन-सा खजाना है एक बार तो वह भी वहाँ लाकर इस रहस्य का पता लगाएगा और कुछ देर के लिए ही सही, उड़ने का स्वाद भी चखेगा।
  5. साँप की गुफ़ा समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत में थी। वह अपनी गुफ़ा में बैठा सागर की लहरों का गर्जन, बलखाती नदी की गुस्से-भरी आवाजें सुना करता तथा आकाश में छिपती हुई टेढ़ी-मेढ़ी पहाड़ियाँ को देखा करता था |
  6. नदी पर्वत की अँधेरी घाटियों में बहती थी। नदी टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलकर सागर की ओर भागी जा रही थी।
  7. समुद्र की लहरों ने अपने गीत में बहादुर बाज की प्रशंसा की। लहरों ने अपने गीत में गाया- हे निडर बाज! तमने जिस बहादुरी से अपने शत्रुओं से संघर्ष किया है और अपना कीमती रक्त बहाया है, वह सभी के द्वारा हमेशा याद रखा जाएगा।
    तुम्हारे रक्त की एक-एक बूंद लोगों की जिंदगी में व्याप्त अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी तथा साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता एवं प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी। तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले बलिदान को लोग हमेशा याद रखेंगे और तुम अमर हो गए। हो। हे निडर बाज! तुम्हारा नाम सदैव गर्व एवं श्रद्धा से लिया जाएगा तथा तुम्हारी वीरता के गीत सदा गाए जाएँगे।
    1. साँप आकाश में उड़ने का प्रयत्न करने पर जब असफल रहता है तो वह पक्षियों को मूर्ख कहता है। जो धरती के सुखों से अंजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापते हैं जबकि वहाँ न तो छत है, न दीवारें, न रेंगने हेतु ज़मीन। ऐसी स्वच्छंदता का क्या लाभ।
    2. आकाश के प्रति उसकी यही धारणा व्यक्त होती है कि वहाँ केवल ढेर-सी रोशनी है, शरीर को संभालने का कोई स्थान नहीं।
    3. साँप का यह सोचना सही नहीं था क्योंकि वह बंद गुफा में रहकर कायरों की भाँति अपनी ही सीमाबद्ध की हुई परतंत्रता की बेड़ियों में जीवन बिता रहा था। उसके मन में स्वतंत्र आकाश में घूमने की कोई चाह ही नहीं थी। वास्तव में उसे आरामदायक जीवन बिताने की आदत हो चुकी थी।
    4. क्योंकि वहाँ वह इच्छा से रेंग सकता था, उसका जीवन भी सुरक्षित था।
    5. मुझे आकाश की स्वछंदता से क्या लेना-देना?  न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए ज़मीन है।

बाज और साँप Baj aur sanp #CBSE #NCERT #KVS #NVS Class-8th hindi

लेखक-निर्मल वर्मा

लेखक-निर्मल वर्मा जीवन परिचय

बाज और साँप वर्कशीट

पाठ के सारांश- इस पाठ में दो प्राणियों के जीवन एवं उनके जीने और सोचने के ढंग का वर्णन हैं। पहला प्राणी बाज, जो साहस का प्रतीक है, अपनी जान की परवाह किए बिना आसमान की ऊँचाइयाँ नापता है। वह स्वतंत्रता को अपनी जान से भी बढ़कर चाहता है। दूसरा प्राणी साँप अपनी नम एवं अँधेरी खोखल तक ही सीमित रहता है। बाज का साहस उस कायर प्राणी में भी साहस भर देता है।

समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफ़ा में एक साँप ने अपना वास बना रखा था। समुद्र की लहरें चमकतीं, झिलमिलातीं और चट्टानों से टकराया करती थीं। पर्वत की अँधेरी घाटियों में एक नदी बहती थी, जो पूरे वेग के साथ समुद्र की ओर जाती थी। नदी और समुद्र के मिलन-स्थल पर लहरें दूध-सी सफ़ेद दिखाई पड़ती थीं।

अपनी गुफ़ा में बैठा साँप लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती पहाड़ियाँ नदी की गुस्से-भरी आवाज़ सबकुछ देखा-सुना करता था। वह इनके गर्जन-तर्जन से स्वयं को सुखी समझता था। और वह अपने आपको सबसे दूर, सुखी तथा अपनी गुफ़ा का मालिक समझता था। यही उसका सबसे बड़ा सुख था।

एक दिन एक बाज खून से लथपथ दशा में गुफ़ा में आ गिरा। उसके सीने पर जख्म थे तथा पंख खून से सने थे। ज़मीन पर गिरते ही उसने ज़ोर की चीख मारी और धरती पर लोटने लगा। डरे साँप ने सोचा कि अब जब बाज अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है तो उससे डरना बेकार है। साँप घायल बाज के पास पहुँचा और मन-ही-मन खुश होकर बोला, ‘क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?’ बाज ने कराह भरते हुए कहा, ‘लगता है कि मेरी आखिरी घड़ी आ गई है, परंतु मैंने अपनी ज़िंदगी को जी भरकर भोगा है। शरीर में ताकत रहते मैंने हर सुख को भोग लिया है। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊँचाइयों को नापा है, पर तुम्हारा दुर्भाग्य है कि तुम ज़िंदगीभर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।’ साँप ने उससे कहा, ‘आकाश को लेकर उसे चाटना है क्या? आकाश में आखिर है क्या? तुम्हारा आकाश तुम्हें ही मुबारक हो। मेरे लिए यह गुफ़ा ही भली है। यही मेरे लिए सर्वाधिक सुरक्षित तथा आरामदेह है।’ साँप को बाज की मूर्खता पर हँसी आ रही थी। वह सोच रहा था कि आखिर उड़ने और रेंगने में क्या फ़र्क है। अंत में सभी को मरना ही है। मिट्टी का शरीर मिट्टी में मिल जाना है। अचानक बाज ने अपना सिर उठाया और चट्टान की दरारों से गुफ़ा में टपकता पानी, वहाँ फैली सीलन, अंधकार और कुछ सड़ने जैसी गंध महसूस की। उसने चीख भरकर कहा, ‘काश! मैं एक बार आकाश में उड़ पाता।’

बाज की यह करुण चीख सुनकर साँप के मन में आकाश के प्रति इच्छा जाग उठी, क्योंकि बाज उसके लिए व्याकुल था। उसने बाज से कहा, “यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी ही प्यारी है तो इस चट्टान के किनारे से उड़ क्यों नहीं जाते!” शायद तुम्हारे पैरों में इतनी ताकत बाकी हो कि तुम उड़ सको।” साँप की बातें सुनकर बाज में नई आशा जाग उठी। वह दूने उत्साह से घायल शरीर को चट्टान के किनारे तक ले आया। खुले आकाश को देखकर उसने अपने पंख फैलाए और हवा में कूद पड़ा। उसके टूटे पंख शक्तिहीन हो चुके थे। उसका शरीर पत्थर-सा लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर उसे अपनी गोद में समेटे सागर की ओर ले चली।

बाज की मृत्यु ने साँप को चिंता में डाल दिया। वह सोचने लगा कि “आकाश की शून्यता में ऐसा कौन-सा आकर्षण छिपा है, जिसके लिए बाज ने अपने प्राण त्याग दिए। आकाश में ऐसा कौन-सा खजाना छिपा है? मुझे भी जाकर पता लगाना चाहिए। इसी बहाने कम से कम उस आकाश का स्वाद भी चख पाऊँगा।” यह सोचकर उसने अपने शरीर को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। साँप का शरीर क्षणभर के लिए आकाश में चमक उठा। जीवनभर रेंगने वाला साँप छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से जा गिरा। ईश्वर की कृपा से उसकी जान बच गई। साँप सोचने लगा, “यदि उड़ने का यही आनंद है तो मैं भर पाया। मूर्ख पक्षी धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाई नापते रहते हैं। मैंने तो जान लिया कि आकाश में खूब सारी रोशनी के सिवा कुछ भी नहीं है। वहाँ शरीर को सँभालने या सहारा देने के लिए कोई स्थान नहीं है। फिर पक्षी धरती के प्राणियों को छोटा क्यों समझते हैं। अब मैं कभी धोखा न खाऊँगा। मैं तो बाज की बातों में आकर ही आकाश में कूदा था। मरते-मरते बचकर मैंने यही जाना कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं। आकाश की स्वच्छंदता से मुझे क्या लेना-देना। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है।” साँप सोचने लगा कि आकाश की आज़ादी प्राप्त करने के लिए बाज ने अपनी जान गाँवा दी।

थोड़ी देर बाद साँप ने चट्टान से धीमा संगीत सुना। संगीत के स्वर साफ़-साफ़ सुनने के लिए उसने चट्टान के नीचे झाँका। चट्टानों को भिगोती लहरें मधुर स्वर में गा रही थीं। उनका गीत साहसी तथा मृत्यु से न डरनेवालों के लिए है। “ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। तुम्हारे रक्त की एक-एक बूंद ज़िंदगी को प्रकाशित करेगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता तथा प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी। साहस और वीरता के गीत जब भी गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम श्रद्धा और गर्व से लिया जाएगा। उनका गीत मौत से न डरनेवालों के लिए है।”

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा, ”मुझे कोई शिकायत नहीं है। विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर: घायल होने के बाद भी बाज ने यह कहा कि – “मुझे कोई शिकायत नहीं है।” उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह किसी भी कीमत पर समझौतावादी जीवन शैली पसंद नहीं करता था। वह अपने अधिकारों के लिए लड़ने में विश्वास रखता था। उसने अपनी ज़िंदगी को भरपूर भोगा। वह असीम आकाश में जी भरकर उड़ान भर चुका था। जब तक उसके शरीर में ताकत रही तब तक ऐसा कोई सुख नहीं बचा जिसे उसने न भोगा हो। वह अपने जीवन से पूर्णतः संतुष्ट था।

प्रश्न 2. बाज ज़िंदगी भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था?
उत्तर: बाज ज़िंदगी भर आकाश में उड़ता रहा, उसने आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा। बाज साहसी था। वह किसी भी कीमत पर समझौतावादी जीवन शैली पसंद नहीं करता था। अतः कायर की मौत नहीं मरना चाहता था। वह अंतिम क्षण तक जीवन की आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना चाहता था।

प्रश्न 3. साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था। फिर उसने उड़ने की कोशिश क्यों की?
उत्तर: साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था क्योंकि वह मानता था कि वह उड़ने में सक्षम नहीं है। पर जब उसने बाज के मन में आकाश में उड़ने के लिए तड़प देखी तब साँप के मन में भी उत्सुकता जागी कि आकाश का मुक्त जीवन कैसा होता है ? इस रहस्य का पता लगाना ही चाहिए। तब उसने भी आकाश में एक बार उड़ने की कोशिश करने का निश्चय किया।

प्रश्न 4. बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया था?
उत्तर: बाज की बहादुरी पर प्रसन्न होकर लहरों ने गीत गाया था। उसने अपने प्राण गँवा दिए परन्तु ज़िंदगी के खतरे का सामना करने से पीछे नहीं हटा।

प्रश्न 5. घायल बाज को देखकर साँप खुश क्यों हुआ होगा?
उत्तर: साँप का शत्रु बाज है चूँकि वो उसका आहार होता है। घायल बाज उसे किसी प्रकार का आघात नहीं पहुँचा सकता था इसलिए घायल बाज को देखकर साँप के लिए खुश होना स्वाभाविक था।

प्रश्न 6. कहानी में से वे पंक्तियाँ चुनकर लिखिए जिनसे स्वतंत्रता की प्रेरणा मिलती हो।
उत्तर: कहानी की स्वतंत्रता से संबंधित पंक्तियाँ –

1-जब तक शरीर में ताकत रही, कोई सुख ऐसा नहीं बचा जिसे न भोगा हो। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊंचाइयों को अपने पंखों से नाप आया हूँ।

2-“आह! काश, मैं सिर्फ एक बार आकाश में उड़ पाता।”

3-पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूँद ज़िन्दगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी।

प्रश्न 7. मानव ने भी हमेशा पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा की है। आज मनुष्य उड़ने की इच्छा किन साधनों से पूरी करता है।
उत्तर: मानव ने आदिकाल से ही पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा मन में रखी है। किन्तु शारीरिक असमर्थता की वजह से उड़ नहीं पा रहा था जिसका परिणाम यह हुआ कि मनुष्य हवाई जहाज का आविष्कार कर दिखाया। आज मनुष्य अपने उड़ने की इच्छा की पूर्ति हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, गैस-बैलून आदि से करता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1. कहानी में से अपनी पसंद के पाँच मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:

  1. भाँप लेना – बच्चों का मुँह देखकर माता जी ने परीक्षा का क्या नतीजा आया होगा यह भाँप लिया।
  2. हिम्मत बाँधना – मित्र के आने पर ही परीक्षा के लिए राहुल की हिम्मत बँधी।
  3. अंतिम साँस गिनना – दादाजी की गिरती साँसें देखकर माता जी ने स्थिति भाँप ली कि वे उनकी अंतिम साँस गिन रहे हैं।
  4. मन में आशा जागना – शिक्षिका की कहानी ने मेरे मन में आशा जगा दी।
  5. प्राण हथेली में रखना – सिपाही ने देशवासियों की जान बचाने के लिए अपने प्राणों को हथेली में रख दिया।

प्रश्न 2. ‘आरामदेह’ शब्द में ‘देह’ प्रत्यय है। यहाँ ‘देह’ ‘देनेवाला’ के अर्थ में प्रयुक्त है। देनेवाला के अर्थ में ‘द’, ‘प्रद’, ‘दाता’, ‘दाई’ आदि का प्रयोग भी होता है, जैसे – सुखद, सुखदाता, सुखदाई, सुखप्रद। उपर्युक्त समानार्थी प्रत्ययों को लेकर दो-दो शब्द बनाइए।
उत्तर:
प्रत्यय       शब्द
द – सुखद, दुखद
दाता – परामर्शदाता, सुखदाता
दाई – सुखदाई, दुखदाई
देह – विश्रामदेह, लाभदेह, आरामदेह
प्रद – लाभप्रद, हानिप्रद, शिक्षाप्रद

डॉ. रामचन्द्र तिवारी Ramchandra Tivari पानी की कहानी के लेखक

डॉ. रामचन्द्र तिवारी

जन्म : सन् 1924; बनारस ज़िले के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में।
शिक्षा : हाईस्कूल, हरिश्चन्द्र हाईस्कूल बनारस से; इंटर लखनऊ के कान्यकुब्ज कॉलेज से; बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. लखनऊ विश्वविद्यालय से।
अध्यापन : सन् 1952 में गोरखपुर में महाराणा प्रताप कॉलेज में नियुक्त। 1958 ई. में गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में नियुक्त। अब सेवानिवृत्त।

कृतियाँ : ‘कविवर लेखराज’; ‘गंगाभरण तथा अन्य कृतियाँ’, ‘शिवनारायणी सम्प्रदाय और उसका साहित्य’ (शोध-प्रबन्ध, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत), ‘रीतिकालीन हिन्दी कविता और सेनापति’ (उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत), ‘हिन्दी का गद्य-साहित्य’ (उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत), ‘मध्ययुगीन काव्य-साधना’, ‘साहित्य का मूल्यांकन’ (जजमेंट इन लिटरेचर का अनुवाद), ‘नाथ-योग एक परिचय’ (‘ऐन् इंट्रोडक्शन टू नाथ योग’, का अनुवाद) ‘आधुनिक कवि और काव्य’ (सम्पादित), ‘काव्यधारा’ (सम्पादित), ‘निबन्ध नीहारिका’  (सम्पादित), ‘तजीकरा-ए-शुअरा-ए हिन्दी’ (मौलवी करीमुद्दीन द्वारा लिखित हिन्दी और उर्दू के इतिहास का सम्पादित रूप) ‘आलोचक का दायित्व’, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’, ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना कोश’।
निधन : 4 जनवरी, 2009

रामचन्द्र तिवारी