फीचर समाचारों के प्रस्तुतिकरण की ही एक विधा है लेकिन समाचार की तुलना में फीचर में गहन अध्ययन, चित्रों, शोध और साक्षात्कार आदिके जरिए विषय की व्याख्या होती है। उसका विस्तृत प्रस्तुतिकरण होताहै और यह सब कुछ इतने सहज और रोचक ढंग से होता है कि पाठक उसके बहाव में बंधता चला जाता है। पत्रकारिता और साहित्य के विद्वानों ने रूपक की अलग-अलग परिभाषाएं गढ़ी हैं।
विशेष
फीचर लेखन एक कलात्मक काम है और किसी भी पत्रकार को अच्छा फीचर लेखक बनने के लिए –
(१) विषय का गम्भीरता से अध्ययन करना चाहिए।
(२) इस बात का प्रयास करना चाहिए कि फीचर सामयिक हो।
(३) उसमें सूक्ति, मुहावरों, उदाहरणों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
(४) उसमे रोचकता होनी चाहिए। मनोरंजक होने के साथ ही उसे शिक्षाप्रद भी होना चाहिए।
(५) उसकी विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए छायाचित्रों, रेखाचित्रों आदि का भी उसमें पर्यापत इस्तेमाल होना चाहिए।
दिए गए विषयों पर फीचर लेखन कीजिए
चुनाव प्रचार का एक दिन पर एक फीचर लिखिए।
चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण विषय पर एक फीचर लिखिए।
जंक फूड की समस्या पर एक फीचर लिखिए
चुनाव प्रचार का एक दिनचुनाव लोकतंत्र के लिए एक त्योहार से कम नहीं है।चुनाव लोकतांत्रिक प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से ही जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है, जो आगे चलकर शासन प्रणाली को सँभालते हैं। सभी प्रतिनिधि अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए चुनाव प्रचार को माध्यम बनाते हैं। चुनाव-प्रचार मतदाताओं को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाता है। चुनाव प्रचार में लाउडस्पीकर, पोस्टर, पैैंपलेट आदि अन्य प्रकार की सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। चुनाव प्रचार में प्रतिनिधि जोकि भिन्न-भिन्न पार्टियो के उम्मीदवार होते हैं, वह जनता के घर-घर जाकर अपने लिए स्वयं वोट माँगते हैं। चुनाव प्रचार की अनेक प्रक्रियाएँ होती हैं, सब के प्रचार के अपने अलग अलग ढंग होते हैं। अधिकांश लोग चुनाव प्रचार के दौरान नोटों की मदद से वोट खरीदते हैं,तो कुछ लोग ईमानदारी से चुनाव प्रचार करते हैं ,परंतु ईमानदारों की संख्या बहुत कम है। चुनाव प्रचार की प्रक्रिया चुनाव होने के दो दिन पहले ही बंद हो जाती है। सभी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्र मे नए-नए तौर तरीकों से जनता को लुभाने का कार्य करते हैं। चुनाव-प्रचार के दौरान बहुत से प्रत्याशी गलत व अनैतिकता का प्रयोग भी करते हैं। चुनाव प्रचार के समय प्रत्याशी अपना वोट पाने के लिए खरीद-फरोख़्त की राजनीति को भी जन्म देते हैं। चुनाव प्रचार के दो पक्ष हैं, जिसमे पहला यह है कि इसके माध्यम से उम्मीदवार स्वयं को मतदाताओं से परिचित करवाता है और अपने एजेंडा को उन मतदाताओं के सम्मुख प्रस्तुत करता है। कहा जाए तो इस सकारात्मक तरीके से वह मतदाताओं पर प्रभाव स्थापित कर अपना वोट पक्का करना चाहता है, परंतु इसका दूसरा तरीका अत्यंत बुरा है, जो समाज में कुप्रवृत्तियों को जन्म देता है तथा राजनीति को एक गंदा खेल बनाकर प्रस्तुत करता है। अंत में कहना चाहिए कि चुनाव प्रचार बहुत ही रोमांचकारी प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को सही रूप से प्रयोग में लाया जाए, तो हम सही प्रत्याशी को चुनकर देश के भविष्य को सुनिश्चित कर सकेंगे।
चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणचुनाव लोकतांत्रिक प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चुनाव के माध्यम से ही जनता अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है, जो आगे चलकर शासन प्रणाली को सँभालते हैं। आजकल चुनाव को लेकर लोगों की रुचि अत्यधिक बढ़ गई है। इस बढ़ती रुचि के कारण ही आज चुनाव से पहले सर्वेक्षण किये जाने लगे हैं, जिससे ये पता लग सके कि कौन जितने के कतार में सबसे आगे है। लोग राजनीतिक दलों एवं नेताओं की वास्तविकता जानने के लिए बहुत व्याकुल रहते हैं। ऐसे में मीडिया चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण करवाकर लोगों की इस मानसिकता का व्यावसायिक लाभ भी उठाती हैं, और एक जागरूक एवं सतर्क मीडिया की भूमिका भी निभाती है। लेकिन यह सवाल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है कि क्या चुनाव-पूर्व होने वाले ये सर्वेक्षण विश्वसनीय होते हैं? क्या जनता अपने द्वारा किए जाने वाले मतदान का पहले ही खुलासा कर देती है? बुद्धिजीवियों का एक वर्ग कहता है कि ऐसे सर्वेक्षण करके राजनीतिक दल जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता बरकरार नहीं रख पाते। जनता स्वयं इस दुविधा में पड़ जाती है कि किसके जीतने की संभावना सर्वाधिक है और वह अपना महत्त्वपूर्ण मत किसे दे? इस उधेड़बुन के कारण सामान्य मतदाता अपने मत का सही उपयोग नहीं कर पाता। बद्धिजीवियों का दूसरा वर्ग मानता है कि भारत की जनता को पिछले लगभग 66 वर्षों का अनुभव है। अतः ऐसे सर्वेक्षणों से वह प्रभावित नहीं होती और न ही वह अपने मत का दुरुपयोग करती है। वस्तुतः कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि हमारे देश में चुनाव पूर्व होने वाले सर्वेक्षण विश्वसनीय होते हैं। चुनाव से पूर्व उसके निर्णय का पता लगा पाना अत्यंत मुश्किल है। हाल ही में, एक स्टिंग ऑपरेशन में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में पाई गई गड़बड़ियों को देखते हुए इन पर रोक लगाने के लिए चुनाव आयोग ने कानून में संशोधन करने की सिफारिश की है।
जंक फूड की समस्याआधुनिक रहन-सहन और दौड़-धूप से भरी जिंदगी ने मनुष्य के जीवन में कई परिवर्तन किए हैं। आज लोगों के पास समय का अभाव है। इस व्यस्त जिंदगी में सब कुछ फास्ट हो गया है और इसी जल्दबाजी ने मनुष्य को भोजन की एक नई शैली के जाल में फँसा दिया है, जिसे फास्ट फूड या जंक फूड कहते हैं। जंक फूड उस प्रकार के खाने को कहते हैं, जो चंद मिनटों में बन कर तैयार हो जाता है, पर ये स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। जंक फूड़ के प्रति बच्चों के लगाव ने उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को एक चुनौती के रूप में लाकर देश के सामने खड़ा कर दिया है। देश में चिकित्सक, शिक्षाविद्, अभिभावक सभी चितिंत हैं क्योंकि जंक फूड के सेवन से बच्चे उन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, जो अधिक उम्र के लोगों में हुआ करती थीं। जंक फूड बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बुरी तरह से प्रभावित करता है, जिसके कारण उन्हें भविष्य में कई तरह की परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। जंक फूड के अंतर्गत आलू के चिप्स, स्नैक्स, इंस्टैंट नूडल्स, कॉबनेट-पेय पदार्थ, बर्गर, पिज्जा, मोमोज, फ्राइड चिकन आदि खाद्य पदार्थ शामिल किए जा सकते हैं। लगभग सभी प्रकार के जंक फूड में कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे अति पोषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिक कैलोरी के साथ-साथ जंक फूड में नमक, ट्रांस फैट, चीनी, परिरक्षक (प्रिजरवेटिव), वनस्पति घी, सोडा, कैफीन आदि भी अधिक मात्रा में होते हैं, जबकि फाइबर बहुत कम होता है। इन सभी से मोटापे का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है और मधुमेह, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, कब्ज, सिरदर्द, पेटदर्द आदि बीमारियाँ बच्चों को छोटी उम्र में ही घेर लेती हैं। जंक फूड के कारण बच्चों का बुद्धिलब्धि स्तर (आई क्यू) कमजोर होने लगता है, जिसका परिणाम मानसिक विकलांगता के रूप में भी सामने आ सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जंक फूड का प्रयोग बच्चों के सुनहरे भविष्य में बहुत बड़ी रुकावट बन सकता है। जंक फूड कम से कम अथवा नहीं खाना चाहिए, ये अनेक प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित करने का कार्य करता है।
जय सिंह ने किस राज्य का निर्माण करवाया उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर- जय सिंह ने जयपुर राज्य का निर्माण करवाया। इस राज्य की यह विशेषता थी कि इसका निर्माण विदेशी नक्शों के आधार पर किया गया था।
जयपुर को एक और नाम से जाना जाता है-गुलाबी शहर|
विद्वान एडम स्मिथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए क्या लिखा?
उत्तर- विद्वान एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘द वैल्थ ऑफ नेशंस’ में लिखा-‘एकमात्र व्यापारियों की कंपनी की सरकार किसी भी देश के लिए सबसे बुरी सरकार है।’
मुगल शासनकाल में साहित्य को भी बढ़ावा मिला था, स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- मुगलकाल में साहित्य को भी खूब बढ़ावा मिला। अनेक हिंदू साहित्यकारों ने दरबारी भाषा में पुस्तकें लिखीं। इसी समय विद्वान मुसलमानों ने संस्कृत की पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया। हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने ‘पद्मावत’ लिखा तथा अब्दुल रहीम खानखाना ने अनेक नीति भरे दोहों की रचना की।
भारत की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए अकबर ने क्या-क्या प्रयास किए ?
उत्तर- भारत की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए अकबर ने निम्नलिखित कार्य किए: (i) उसने स्वाभिमानी राजपूत सरदारों को अपनी ओर मिलाया। (ii) उसने अपनी तथा अपने बेटे की शादी राजपूत घराने में की। (iii) उसने विद्वान हिंदुओं को अपने दरबार में विशेष नौरत्नों में स्थान प्रदान किया। (ii) उसने ‘दीन-ए-इलाही’ नामक नया एवं सर्वमान्य धर्म चलाने का प्रयास किया।
बाबर कौन था, उसके व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए ?
उत्तर- बाबर भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। उसने 1526 ई० में दिल्ली की सल्तनत को जीता।वह आकर्षक व्यक्तित्व वाला एवं कला और साहित्य का शौकीन था। अपने चार साल के शासनकाल में उसने कई युद्ध किए तथा आगरा को अपनी राजधानी बनाया।
हिंदू-मुसलमानों के आपसी समन्वय से भारत की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- हिन्दू-मुसलमानों के आपसी समन्वय से दोनों को आदतें, रहन-सहन का ढंग, कलात्मक रुचियाँ एक सी हो गई। व्यापार प्रयोग भी एक से ही हो गए। हिन्दू मुसलमानों को भारत का ही अंग समझने लगे। एक-दूसरे के त्योहारों या जलसों में भी शरीक होते थे। एक ही भाषा बोलते थे क्योंकि इस समय बोलचाल की भाषा में हिंदी व फारसी के शब्द मिले-जुले हो गए थे। दोनों की आर्थिक समस्याएँ भी समान थीं। इतना सब होने पर भी आपसी वैवाहिक सबंध बहुत कम थे। खान-पान भी अलग-अलग तरह से था।
शेरशाह ने किसकी नींव डाली तथा शाहबुद्दीन गौरी कौन था? नयी समस्याएँ पाठ के आधार पर बताइए ।
उत्तर- शेरशाह ने मालगुजारी व्यवस्था की नींव डाली। शाहबुद्दीन गौरी एक अफगानी था। इसने महमूद गजनवी के गजनी पर आक्रमण किया और उसे हराकर वहाँ अपना शासन कायम किया। उसने गजनवी साम्राज्य का अंत कर दिया। आरंभ में शाहबुद्दीन गौरी ने लाहौर पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया। इसके बाद उसने दिल्ली पर आक्रमण किया और उसकी सल्तनत को भी हथिया लिया। उसने पृथ्वीराज चौहान को 1192 ई. में पराजित किया। इसके बाद वह स्वयं दिल्ली का शासक बन बैठा।
मंगलकारी = कल्याणकारीमनाना लिन्य = मनमुटावमहानुभाव = महाशयलब्ध-प्रतिष्ठ = यशस्वीलूट-मार = लोगों को शारीरिक यंत्रणा देकर उनका धन छीननावध = मार डालनावैमनस्य = द्वेषवैभव = शक्तिषडयंत्र = साजिशसंगम = संगतिसंग्रहणी = एक रोग जिस में खाद्य पदार्थ बिना पचे बराबर पाखाने के रास्ते निकल जाता है।संयम = रोक, दाबसमेटना = इकट्ठा करनासामरिक = युद्ध से संबंद्धित
अभ्यास
मौखिक:
मुगल राज्य वंश का परिचय दीजिये।
भारतीय इतिहास में मुगल राज्य-वंश का क्या महत्व है?
मुगल सम्राटों की नई नीति की मुख्य विशेषताएँ स्पष्ट कीजिये।
क्यों अकबर एक कुशल शासक समझा जाता है?
अकबर के धार्मिक विचारों के बारे में आप क्या जानते हैं?
अकबर के अंतिम दिन क्यों सुख से न बीते?
लिखित:
1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिख कर अपने वाक्यों में उनका प्रयोग कीजिये : पहेली, धमनी, लड़ाकू, प्रस्थान, कोरा
2. निम्नलिखित शब्दों के कुछ पर्यायवाची याद करके लिखिये।
संचालन
फहराना
उपेक्षा
सहिष्णु
3. आपके अनुसार क्यों अकबर को भारतीय इतिहास में मुख्य स्थान दिया जाता है?
4. नीचे लिखे शब्दों के पर्यायवाची शब्द पाठ में से चुनकर लिखिये:
पाठ का सारांश –‘नमक का दरोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है जो आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदहारण है | यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है | ‘धन’ और ‘धर्म’ को क्रमश: सद्वृत्ति और असद्द्वृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है | कहानी में इनका प्रतिनिधित्व क्रमशः पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है | ईमानदार कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते है, लेकिन अंत: सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है | वे सरकारी विभाग से बर्खास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते है और गहरे अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते है –
“परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे |”
नमक का विभाग बनने के बाद लोग नमक का व्यापार चोरी-छिपे करने लगे | इस काले व्यापार से भ्रष्टाचार बढ़ा | अधिकारीयों के पौ-बारह थे | लोग दरोगा के पद के लिए लालायित थे | मुंशी वंशीधर भी रोज़गार को प्रमुख मानकर इसे खोजने चले | इनके पिता अनुभवी थे | उन्होंने घर की दुर्दशा तथा अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर नौकरी में पद की और ध्यान न देकर ऊपरी आय वाली नौकरी को बेहतर बताया | वे कहते है कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है | ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है | आवश्यकता व अवसर देखकर विवेक से काम करो | वंशीधर ने पिता ने की बातें ध्यान से सुनीं ओर चल दिए | धैर्य, बुद्धि आत्मावलंबन वा भाग्य के कारण नमक विभाग के दरोगा पद पर प्रतिष्ठित हो गए | घर में खुशी छा गई |
सर्दी के मौसम की रात में नमक के सिपाही नशे में मस्त थे | वंशीधर ने छह महीने में ही अपनी कार्यकुशलता व उत्तम आचार से अफसरों का विश्वास जीत लिया था | यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज़ सुनकर वे उठ गए | उन्हें गोलमाल कि शंका थी | जाकर देखा तो गाडियों की कतार दिखाई दी | पूछताछ पर पता चला कि उसमें नमक है |
पंडित अलोपीदीन अपने सजीले रथ में ऊँघते हुए जा रहे थे तभी गाड़ी वालों ने गाड़ियाँ रोकने की खबर दी | पंडित सारे संसार में लक्ष्मी को प्रमुख मानते थे | न्याय, निति सब लक्ष्मी के खिलौने है | उसी घमंड में निश्चित होकर दरोगा के पास पहुँचे | उन्होंने कहा कि मेरी सरकार तो आप ही है | आपने व्यर्थ ही कष्ट उठाया | मैं सेवा में स्वयं आ ही रहा था | वंशीधर पर ईमानदारी का नशा था | उन्होंने कहा कि हम अपना ईमान नही बेचते | आपको गिरफ्तार किया जाता है |
यह आदेश सुनकर पंडित अलोपीदीन हैरान रह गए | यह उनके जीवन की पहली घटना थी | बदलू सिंह उसका हाथ पकड़ने से घबरा गया, फिर अलोपीदीन ने सोचा कि नया लड़का है | दीनभाव में बोले-आप ऐसा न करें | हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी | वंशीधर ने साफ़ मना कर दिया | अलोपीदीन ने चालीस हजार तक की रिश्वत देनी चाही, परंतु वंशीधर ने उनकी एक न सुनी | धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला |
सुबह तक हर जबान पर यही किस्सा था | पंडित के व्यवहार कि चारों तरफ निंदा हो रही थी | भ्रष्ट भी उसकी निंदा कर रहे थे | अगले दिन अदालत में भीड़ थी | अदालत में सभी पंडित अलोपीदीन के माल के गुलाम थे | वे उनके पकडे जाने आक्रमण को रोकने के लिए वकीलों की फ़ौज तैयार की गई | न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया | वंशीधर के पास सत्य था, गवाह लोभ से डाँवाडोल थे |
मुंशी जी को न्याय में पक्षपात होता दिख रहा था | यहाँ के कर्मचारी पक्षपात करने पर तुले हुए थे | मुक़दमा शीघ्र समाप्त हो गया | डिप्टी मजिस्ट्रेट ने लिखा कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध प्रमाण आधारहीन है | वे ऐसा कार्य नही कर सकते | दरोगा का दोष अधिक नही है, परन्तु एक भले आदमी को दिए कष्ट के कारण उन्हें भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी दी जाती है | इस फैसले से सबकी बाँछे खिल गई | खूब पैसा लुटाया गया जिसने अदालत की नींव तक हिला दी | वंशीधर बाहर निकले तो चारों तरफ से व्यंग्य की बातें सुनने को मिलीं | उन्हें न्याय, विद्वता, उपाधियाँ आदि सभी निरर्थक लगने लगे |
वंशीधर की बर्खास्तगी का पत्र एक सप्ताह में ही आ गया। उन्हें कर्त्तव्यपरायणता का दंड मिला। दुखी मन से वे घर चले। उनके पिता खूब बड़बड़ाए। यह अधिक ईमानदार बनता है। जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ। उन्हें अनेक कठोर बातें कहीं। माँ की तीर्थयात्रा की आशा मिट्टी में मिल गई। पत्नी कई दिन तक मुँह फुलाए रही।
एक सप्ताह के बाद अलोपीदीन सजे रथ में बैठकर मुंशी के घर पहुँचे। वृद्ध मुंशी उनकी चापलूसी करने लगे तथा अपने पुत्र को कोसने लगे। अलोपीदीन ने उन्हें ऐसा कहने से रोका और कहा कि कुलतिलक और पुरुषों की कीर्ति उज्ज्वल करने वाले संसार में ऐसे कितने धर्मपरायण मनुष्य हैं जो धर्म पर अपना सब कुछ अर्पण कर सकें। उन्होंने वंशीधर से कहा कि इसे खुशामद न समझिए। आपने मुझे परास्त कर दिया। वंशीधर ने सोचा कि वे उसे अपमानित करने आए हैं, परंतु पंडित की बातें सुनकर उनका संदेह दूर हो गया। उन्होंने कहा कि यह आपकी उदारता है। आज्ञा दीजिए।
अलोपीदीन ने कहा कि नदी तट पर आपने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी, अब स्वीकार करनी पड़ेगी। उसने एक स्टांप पत्र निकाला और पद स्वीकारने के लिए प्रार्थना की। वंशीधर ने पढ़ा। पंडित ने अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर छह हजार वार्षिक वेतन, रोजाना खर्च, सवारी, बंगले आदि के साथ नियत किया था। वंशीधर ने काँपते स्वर में कहा कि मैं इस उच्च पद के योग्य नहीं हूँ। ऐसे महान कार्य के लिए बड़े अनुभवी मनुष्य की जरूरत है।
अलोपीदीन ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा कि मुझे अनुभव, विद्वता, मर्मज्ञता, कार्यकुशलता की चाह नहीं। परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, कठोर, परंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे। वंशीधर की आँखें डबडबा आई। उन्होंने काँपते हुए हाथ से मैनेजरी के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए। अलोपीदीन ने उन्हें गले लगा लिया।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 को मंजूरी दे दी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है, जिसका उद्देश्य देश के विकास से जुड़े कई अनिवार्य मुद्दों को संबोधित करना है जो सतत विकास के 2030 के एजेंडे के अनुरूप हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020, सुलभ, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के मूलभूत स्तंभों पर बनाई गई है।
एनईपी 2020 स्कूली शिक्षा के लिए कई परिवर्तनकारी विचारों की सिफारिश करता है। नई शिक्षा नीति में चरणबद्ध तरीके से देश भर में उच्च गुणवत्ता वाले ईसीसीई तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया। विशेष रूप से सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित जिलों और स्थानों पर विशेष ध्यान और प्राथमिकता दी जाएगी।
बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास के चरणों पर आधारित 5 +3 +3 +4 पाठयक्रम और शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है:
मूलभूत चरण (आयु 3-8 वर्ष): 3 वर्ष पूर्व-प्राथमिक प्लस ग्रेड 1-2
प्रारंभिक चरण (8-11 वर्ष): ग्रेड 3-5
मध्य चरण (11-14 वर्ष): ग्रेड 6-8
माध्यमिक चरण (14-18 वर्ष): ग्रेड 9-12
इसके तहत मिशन मोड में मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान सुनिश्चित करने और स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में परिवर्तनों और कम पठन सामग्री भार के साथ-साथ छात्रों के समग्र विकास के लिए मूल्यांकन में सुधारों को भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। कला और विज्ञान के बीच, पाठयक्रम और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और अकादमिक विषयों आदि के बीच कोई सख्त अंतर नहीं होगा।
एनईपी 2020 सक्रिय शिक्षाशास्त्र, 21वीं सदी के कौशल, सभी चरणों में प्रायोगिक शिक्षा, कम हिस्सेदारी वाली बोर्ड परीक्षा, समग्र प्रगति कार्ड, छात्रों के बीच महत्वपूर्ण और उच्च स्तर की सोच को बढ़ावा देने के लिए मूल्यांकन में परिवर्तन, व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा में लाने और शिक्षक शिक्षा में सुधार सहित मुख्य क्षमताओं और जीवन कौशल के विकास को बढ़ावा देता है। एनईपी शिक्षकों के सशक्तिकरण और उनकी भर्ती, सेवा शर्तों, स्थानांतरण नीति और सभी स्तरों पर कैरियर प्रगति के अवसरों में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करता है। शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीएसटी) , शिक्षकों के विभिन्न स्तरों के लिए मानदंडों और मानकों को निर्दिष्ट करेगा। सामाजिक सामंजस्य व समुदाय के लिए सामाजिक, बौद्धिक और स्वयंसेवी गतिविधियों को बढ़ावा देने और स्कूल अवसंरचना के समुचित इस्तेमाल हेतु गैर-शिक्षण/स्कूली अवधि के दौरान स्कूलों का “सामाजिक चेतना केंद्र” के रूप में उपयोग करने की भी सिफारिश की गई है। एनईपी 2020, मातृभाषा/गृह भाषा/स्थानीय भाषा में, कम से कम ग्रेड 5 तक और बाद के चरणों में, जहां भी संभव हो, शिक्षण की सिफारिश करता है। नीतिगत हितों के टकराव को समाप्त करने के लिए विनियामक, प्रशासनिक और नीति निर्माण कार्यों को अलग करने की परिकल्पना की गई है और राज्य स्कूल मानक प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की गई है। शिक्षा, मूल्यांकन, योजना और प्रशासन सहित शिक्षा के विभिन्न पहलुओं में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी पर भी अधिक जोर दिया गया है।
About the Discussion / चर्चा के बारे में :
एनईपी शिक्षकों के महत्व को स्वीकार करता है और मानता है कि वास्तव में शिक्षक ही हमारे बच्चों के भविष्य को आकार देते हैं-और अपने राष्ट्र का भविष्य संवारते हैं। एनईपी के सफल कार्यान्वयन के लिए सभी चरणों में शिक्षकों की भागीदारी बेहद जरूरी है। इसलिए, शिक्षकों की महत्ता और महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने एनईपी की विभिन्न सिफारिशों को लागू करने पर प्रधानाचार्यों/प्रधान शिक्षकों/शिक्षकों के विचार/सुझाव/टिप्पणियां आमंत्रित करने का निर्णय लिया है। प्राप्त विचार/सुझाव/टिप्पणियां एनईपी-2020 की कार्यान्वयन योजना का अभिन्न अंग होंगी। यह सिस्टम में शिक्षकों के महत्व को रेखांकित करता है और उनसे 21 वीं सदी के कौशल और बच्चों को समग्र शिक्षा प्रदान करने में उनकी भूमिका की अपेक्षा की जाती है।
Participation Guidelines / भागीदारी दिशानिर्देश:
सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त/निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के सभी प्रधानाध्यापक/प्रधान शिक्षक/शिक्षक इस कार्य में भाग ले सकते हैं।
विभिन्न थीम/विषयों पर सुझाव दिए जा सकते हैं। इसे सरल बनाने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने एनईपी की महत्वपूर्ण सिफारिशों पर विषयवार प्रश्न तैयार किया है।
जमीनी स्तर से प्राप्त सुझावों/विचारों/टिप्पणियों से एनईपी 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन योजना बनाने में मदद मिलेगी।
प्रतिभागियों को एक साधारण रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरकर मंच पर अपना पंजीकरण कराना होगा।
Important Dates / महत्वपूर्ण तिथियां:
प्रारंभ तिथि: 24 अगस्त 2020
अंतिम तिथि: 31 अगस्त 2020 (5.30 PM)
NEP 2020 Themes
A. EARLY CHILDHOOD CARE AND EDUCATION: THE FOUNDATION OF LEARNING /
प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा : अधिगम की बुनियाद
B. FOUNDATIONAL LITERACY AND NUMERACY: AN URGENT & NECESSARY PREREQUISITE TO LEARNING /
बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान : अधिगम के लिए एक अत्यावश्यक और अनिवार्य पूर्वापेक्षा
C. CURTAILING DROPOUT RATES AND ENSURING UNIVERSAL ACCESS TO EDUCATION AT ALL LEVELS /
ड्रॉपआउट दर को कम करना और सभी स्तरों पर शिक्षा की सर्वसुलभ पहुँच सुनिश्चित करना
D. CURRICULUM AND PEDAGOGY IN SCHOOLS: LEARNING SHOULD BE HOLISTIC, INTEGRATED, ENJOYABLE AND ENGAGING
स्कूलों में पाठ्यचर्या और शिक्षाशास्त्र: अधिगम की प्रक्रिया सम्पूर्ण, एकीकृत, मनोरंजक और कारगर होनी चाहिए
E. TEACHERS /
शिक्षक
F. EQUITABLE AND INCLUSIVE EDUCA4TION: LEARNING FOR ALL /
समान और समावेशी शिक्षा- सभी के लिए अधिगम
G. EFFICIENT RESOURCING AND EFFECTIVE GOVERNANCE THROUGH SCHOOL COMPLEXES/CLUSTERS /
स्कूल परिसरों/क्लस्टर के माध्यम से प्रभावी संसाधन जुटाना और प्रभावी अभिशासन
H. STANDARD-SETTING AND ACCREDITATION FOR SCHOOL EDUCATION /
स्कूल शिक्षा के लिए मानक निर्धारण और प्रत्यायन
I. RE-IMAGINING VOCATIONAL EDUCATION /
व्यावसायिक शिक्षा की उपयोगिता को पुनः प्रतिपादित करना
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है आभूषण अर्थात गहना ।जिस प्रकार नारी अलंकार से युक्त होने पर सुंदर दिखती है उसी प्रकार काव्य होता है। महाकवि केशव ने अलंकारों को काव्य का अपेक्षित गुण माना है। उनके अनुसार “भूषण बिनु न विराजहि कविता,वनिता,मित्त।”उनकी दृष्टि में कविता तथा नारी भूषण के बिना शोभित नही होते हैं।
अलंकारों के प्रमुख दो भेद हैं-(1)शब्दालंकार,(2)अर्थालंकार।
(1)शब्दालंकार जब कुछ विशेष शब्दों के कारण काव्य में चमत्कार पैदा होता है वहाँ शब्दालंकार होता है। शब्दालंकार के अंतर्गत अनुप्रास,श्लेष,यमक तथा उसके भेद। (2)अर्थालंकार जो काव्य में अर्थगत चमत्कार होता है,वहाँ अर्थालंकार होता है।अर्थालंकार के अंतर्गत उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा,भ्रांतिमान,सन्देह,अतिशयोक्ति, अनंवय,प्रतीप,दृष्टांत आदि।
जहां एक या अनेक वर्णों की क्रमानुसार आवृत्ति केवल एक बार हो अर्थात एक या अनेक वर्णों का प्रयोग केवल दो बार हो, वहां छेकानुप्रास होता है। छेकानुप्रास का एक उदाहरण द्रष्टव्य है—
देखौ दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन।[4] मैन मनोहर बैन बजै सुसजै तन सोहत पीत पटा है।[5] उपर्युक्त पहली पंक्ति में ‘द’ और ‘क’ का तथा दूसरी पंक्ति में ‘म’ और ‘ब’ का प्रयोग दो बार हुआ है।
अपठित काव्यांश क्या है? वह काव्यांश, जिसका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है, अपठित काव्यांश कहलाता है। परीक्षा में इन काव्यांशों से विद्यार्थी की भावग्रहण-क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।
परीक्षा में प्रश्न का स्वरूप परीक्षा में विद्यार्थियों को अपठित काव्यांश दिया जाएगा। उस काव्यांश से संबंधित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा तथा कुल प्रश्न पाँच अंक के होंगे।
अपठित काव्यांश हल करने की विधि :
सर्वप्रथम काव्यांश का दो-तीन बार अध्ययन करें ताकि उसका अर्थ व भाव समझ में आ सके।
तत्पश्चात् काव्यांश से संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
प्रश्नों के पढ़ने के बाद काव्यांश का पुनः अध्ययन कीजिए ताकि प्रश्नों के उत्तर से संबंधित पंक्तियाँ पहचानी जा सकें।
प्रश्नों के उत्तर काव्यांश के आधार पर ही दीजिए।
प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
उत्तरों की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
गत वर्षों के पूछे गए प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए –
1. अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ। तूफानों-भूचालों की भयप्रद छाया में, मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता हूँ।
मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी इतनी व्यापक है, इसमें मुझ-से अगणित प्राणी आ जाते हैं। मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है। मैं खंडहर को फिर से महल बना सकता हूँ।
जब-जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं, प्रलय-मेघ भूचाल देख मुझको शरमाए। मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।
प्रश्न
(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में किसका महत्व प्रतिपादित किया गया है? (ख) स्वर्ग के प्रति मजदूर की विरक्ति का क्या कारण है?
(ग) किन कठिन परिस्थितियों में उसने अपनी निर्भयता प्रकट की है? (घ) मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी इतनी व्यापक है, इसमें मुझ-से अगणित प्राणी आ जाते हैं। उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट करके लिखिए। (ङ) अपनी शक्ति और क्षमता के प्रति उसने क्या कहकर अपना आत्म-विश्वास प्रकट किया है?
उत्तर-
(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में मजदूर की शक्ति का महत्व प्रतिपादित किया गया है। (ख) मज़दूर निर्माता है । वह अपनी शक्ति से धरती पर स्वर्ग के समान सुंदर बस्तियाँ बना सकता है। इस कारण उसे स्वर्ग से विरक्ति है। (ग) मज़दूर ने तूफानों व भूकंपों जैसी मुश्किल परिस्थितियों में भी घबराहट प्रकट नहीं की है। वह हर मुसीबत का सामना करने को तैयार रहता है। (घ)इसका अर्थ यह है कि ‘मैं’ सर्वनाम शब्द श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है। कवि कहना चाहता है कि मजदूर वर्ग में संसार के सभी क्रियाशील प्राणी आ जाते हैं। (ङ) मज़दूर ने कहा है कि वह खंडहर को भी आबाद कर सकता है। उसकी शक्ति के सामने भूचाल, प्रलय व बादल भी झुक जाते हैं।
2.
निर्भय स्वागत करो मृत्यु का, मृत्यु एक है विश्राम-स्थल। जीव जहाँ से फिर चलता है, धारण कर नव जीवन संबल । मृत्यु एक सरिता है, जिसमें श्रम से कातर जीव नहाकर
फिर नूतन धारण करता है, काया रूपी वस्त्र बहाकर। सच्चा प्रेम वही है जिसकी – तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर! त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर ।
प्रश्न
(क)कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है? (ख) मृत्यु को विश्राम-स्थल क्यों कहा गया है? (ग) कवि ने मृत्यु की तुलना किससे और क्यों की है? (घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव में क्या परिवर्तन आ जाता है? (ङ) सच्चे प्रेम की क्या विशेषता बताई गई है और उसे कब निष्प्राण कहा गया है?
उत्तर-
(क)मृत्यु के बाद मनुष्य फिर नया रूप लेकर कार्य करने लगता है, इसलिए कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय होने को कहा है। (ख) कवि ने मृत्यु को विश्राम-स्थल की संज्ञा दी है। कवि का कहना है कि जिस प्रकार मनुष्य चलते-चलते थक जाता है और विश्राम-स्थल पर रुककर पुन: ऊर्जा प्राप्त करता है, उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव नए जीवन का सहारा लेकर फिर से चलने लगता है। (ग) कवि ने मृत्यु की तुलना सरिता से की है, क्योंकि जिस तरह थका व्यक्ति नदी में स्नान करके अपने गीले वस्त्र त्यागकर सूखे वस्त्र पहनता है, उसी तरह मृत्यु के बाद मानव नया शरीर रूपी वस्त्र धारण करता है। (घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव नया शरीर धारण करता है तथा पुराने शरीर को त्याग देता है। (ङ) सच्चा प्रेम वह है, जो आत्मबलिदान देता है। जिस प्रेम में त्याग नहीं होता, वह निष्प्राण होता है।
3.
जीवन एक कुआँ है अथाह- अगम सबके लिए एक-सा वृत्ताकार ! जो भी पास जाता है, सहज ही तृप्ति, शांति, जीवन पाता ह ! मगर छिद्र होते हैं जिसके पात्र में, रस्सी-डोर रखने के बाद भी, हर प्रयत्न करने के बाद भी- वह यहाँ प्यासा-का-प्यासा रह जाता है। मेरे मन! तूने भी, बार-बार बड़ी-बड़ी रस्सियाँ बटीं रोज-रोज कुएँ पर गया
तरह-तरह घड़े को चमकाया, पानी में डुबाया, उतराया लेकिन तू सदा ही – प्यासा गया, प्यासा ही आया ! और दोष तूने दिया कभी तो कुएँ को कभी पानी को कभी सब को मगर कभी जाँचा नहीं खुद को परखा नहीं घड़े की तली को चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को और मूढ़! अब तो खुद को परख देख!
प्रश्न
(क) कविता में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है? कैसा व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है? (ख) कवि का मन सभी प्रकार के प्रयासों के उपरांत भी प्यासा क्यों रह जाता है? (ग) ‘और तूने दोष दिया ……… कभी सबको’ का आशय क्या है? (घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो रही हो तो उसे किन बातों की जाँच-परख करनी चाहिए? (ङ) ‘चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को ‘- यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से किस ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर-
(क)कवि ने जीवन को कुआँ कहा है, क्योंकि जीवन भी कुएँ की तरह अथाह व अगम है। दोषी व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है। (ख) कवि ने कभी अपना मूल्यांकन नहीं किया। वह अपनी कमियों को नहीं देखता। इस कारण वह सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद प्यासा रह जाता है। (ग) ‘और तूने दोष दिया ……… कभी सबको’ का आशय है कि हम अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं। (घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो तो उसे अपनी कमियों के बारे में जानना चाहए । उन्हें सुधार करके कार्य करने चाहिए। (ङ) यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से मनुष्य की कमियों की ओर संकेत किया गया है।
4. यह लघु सरिता का बहता जल कितना शीतल, कितना निर्मल हिमगिरि के हिम से निकल-निकल, यह विमल दूध-सा हिम का जल, कर-कर निनाद कल-कल, छल-छल,
तन का चंचल मन का विह्वल यह लघु सरिता का बहता जल।
ऊँचे शिखरों से उतर-उतर गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर, कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर दिनभर, रजनी-भर, जीवन-भर
धोता वसुधा का अंतस्तल यह लघु सरिता का बहता जल।
हिम के पत्थर वो पिघल-पिघल, बन गए धरा का वारि विमल, सुख पाता जिससे पथिक विकल पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल
नित जलकर भी कितना शीतल यह लघु सरिता का बहता जल।
कितना कोमल कितना वत्सल रे जननी का वह अंतस्तल, जिसका यह शीतल करुणाजल बहता रहता युग-युग अविरल
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल यह लघु सरिता का बहता जल।
प्रश्नः (क) वसुधा का अंतस्तल धोने में जल को क्या-क्या करना पडता है? (ख) जल की तुलना दूध से क्यों की गई है? (ग) आशय स्पष्ट कीजिए-‘तन का चंचल मन का विह्वल’ (घ) ‘रे जननी का वह अंतस्तल’ में जननी किसे कहा गया है? उत्तरः (क) वसुधा का अंतस्तल धोने के लिए जल ऊँचे पर्वतों से उतरकर पर्वतों की चट्टानों पर गिरकर कंकड़-कंकड़ों पर पैदल चलते हुए दिन-रात जीवन पर्यंत कार्य करता है।
(ख) हिम के पिघलने से जल बनता है जो शुद्ध व पवित्र होता है। दूध को भी पवित्र व शुद्ध माना जाता है। अतः जल की तुलना दूध से की गई है।
(ग) इसका मतलब है कि जिस प्रकार शरीर में मन चंचल अपने भावों के कारण हर वक्त गतिशील रहता है, उसी तरह छोटी नदी का जल भी हर समय गतिमान रहता है।
(घ) इसमें भारत माता को जननी कहा गया है।
5. यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है। सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे। किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे।
निर्झर में गति है जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है। धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता, बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है, तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।
निर्झर कहता है बढ़े चलो! देखो मत पीछे मुड़कर, यौवन कहता है बढ़े चलो! सोचो मत क्या होगा चल कर।
चलना है केवल चलना है! जीवन चलता ही रहता है, रुक जाना है मर जाना है, निर्झर यह झरकर कहता है।
प्रश्नः (क) जीवन की तुलना निर्झर से क्यों की गई है? (ख) जीवन और निर्झर में क्या समानता है ? (ग) जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए? (घ) ‘तब यौवन बढ़ता है आगे!’ से क्या आशय है? उत्तरः (क) जीवन व निर्झर में समानता है क्योंकि दोनों में मस्ती होती है तथा दोनों ही सुख-दुख के किनारों के बीच चलते हैं।
(ख) जीवन की तुलना निर्झर से की गई है क्योंकि जिस तरह निर्झर विभिन्न बाधाओं को पार करते हुए निरंतर आगे चलता रहता है, उसी प्रकार जीवन भी बाधाओं से लड़ते हुए आगे बढ़ता है।
(ग) जीवन का उद्देश्य सिर्फ चलना है। रुक जाना उसके लिए मृत्यु के समान है।
(घ) इसका आशय है कि जब जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो आम व्यक्ति रुक जाता है, परंतु युवा शक्ति आगे बढ़ती है। वह परिणाम की परवाह नहीं करती।
6. आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र कहाँ इस जग में? नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में। कुछ तनिक ध्यान से सोचो, धरती किसती हो पाई ? बोलो युग-युग तक किसने, किसकी विरुदावलि गाई ? मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है। जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है। सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है। पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल-पौरुष का संगम है। दुर्बल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता, वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता। फिर क्या विषाद, भय चिंता जो होगा सब सह लेंगे, परिवर्तन की लहरों में जैसे होगा बह लेंगे।
प्रश्नः (क) ‘रोने से दुर्भाग्य सौभाग्य में नहीं बदल जाता’ के भाव की पंक्तियाँ छाँटकर लिखिए। (ख) समय किसे नष्ट कर देता है और कैसे? (ग) इतिहास किसे याद रखता है और क्यों? (घ) ‘मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। उत्तरः (क) ये पंक्तिया हैं आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र, कहाँ इस जग में नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
(ख) समय हमेशा कमजोर व्यवस्था को चुपचाप नष्ट कर देता है। दुर्बल तब समय के अनुसार स्वयं को बदल नहीं पाता तथा प्रेरणापरक कार्य नहीं करता।
(ग) इतिहास उन्हें याद रखता है जो अपने बल व पुरुषार्थ के आधार पर समाज के लिए कार्य करते हैं। प्रेरक कार्य करने वालों को जनता याद रखती है।
(घ) इसका अर्थ है कि अच्छे दिन सदैव नहीं रहते। मानव के जीवन में पतझर जैसे दुख भी आते हैं।
7. तरुणाई है नाम सिंधु की उठती लहरों के गर्जन का, चट्टानों से टक्कर लेना लक्ष्य बने जिनके जीवन का। विफल प्रयासों से भी दूना वेग भुजाओं में भर जाता, जोड़ा करता जिनकी गति से नव उत्साह निरंतर नाता। पर्वत के विशाल शिखरों-सा यौवन उसका ही है अक्षय, जिनके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार साथ लय। अचल खड़े रहते जो ऊँचा, शीश उठाए तूफ़ानों में, सहनशीलता दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में। वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्झर, प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
प्रश्नः (क) कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों? (ख) तरुणाई की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है? (ग) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ते हैं और कैसे? (घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘जिनके चरणों पर सागर के होते अनगिन ज्वार साथ लय।’ उत्तरः (क) कवि ने युवाओं का आह्वान किया है क्योंकि उनमें उत्साह होता है और वे संघर्ष क्षमता से युक्त होते हैं।
(ख) तरुणाई की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है-उत्साह, कठिन परिस्थितियों का सामना करना, हार से निराश न होना, दृढ़ता, सहनशीलता आदि।
(ग) मार्ग की रुकावटों को युवा शक्ति तोड़ती है। जिस प्रकार झरने चट्टानों को तोड़ते हैं, उसी प्रकार युवा शक्ति अपने पंथ की रुकावटों को खत्म कर देती है।
(घ) इसका अर्थ है कि युवा शक्ति जनसामान्य में उत्साह का संचार कर देती है।
8. अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में, सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में। वही पंथ बाधा तो तोड़े बहते हैं जैसे हों निर्झर, प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर। आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई, नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई। आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना, नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना। उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण, जागो, देश के प्राण जगा दो नए प्रात का नया जागरण। आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी तरुणाई, नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली अंगड़ाई।
प्रश्नः (क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे? (ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं ? (ग) “विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है? (घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान क्यों कर रहा है? उत्तरः (क) मार्ग की रुकावटों को वीर तोड़ता है। वे अपने उत्साह, संघर्ष, सहनशीलता व वीरता से पथ की बाधाओं को दूर करते हैं।
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को दुर्गम रास्तों पर चलकर सार्थक करते हैं।
(ग) इसका आशय है कि पिछले कुछ समय से देश में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हो पा रहा है।
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आह्वान इसलिए कर रहा है क्योंकि उनमें नए, कार्य करने का उत्साह व क्षमता है। वे नए इतिहास को लिख सकते हैं। उन्हें देश में नया उत्साह जगाना है।
9. मैंने गढ़े ताकत और उत्साह से भरे-भरे कुछ शब्द जिन्हें छीन लिया मठाधीशों ने दे दिया उन्हें धर्म का झंडा उन्मादी हो गए मेरे शब्द तलवार लेकर बोऊँगी उन्हें मिटाने लगे अपना ही वजूद फिर रचे मैंने इंसानियत से लबरेज ढेर सारे शब्द नहीं छीन पाएगा उन्हें छीनने की कोशिश में भी गिर ही जाएँगे कुछ दाने और समय आने पर फिर उगेंगे वे अबकी उन्हें अगवा कर लिया सफ़ेदपोश लुटेरों ने और दबा दिया उन्हें कुर्सी के पाये तले असहनीय दर्द से चीख रहे हैं मेरे शब्द और वे कर रहे हैं अट्टहास अब मैं गर्दैगी निराई गुड़ाई और खाद-पानी से लहलहा उठेगी फ़सल तब कोई मठाधीश कोई लुटेरा एक बार दो बार बार-बार लगातार उगेंगे मेरे शब्द
प्रश्नः (क) ‘मठाधीशों’ ने उत्साह भरे शब्दों को क्यों छीना होगा? (ख) आशय समझाइए-कुर्सी के पाये तले दर्द से चीख रहे हैं (ग) कवयित्री किस उम्मीद से शब्दों को बो रही है? (घ) ‘और वे कर रहे हैं अट्टहास’ में ‘वे’ शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है? उत्तरः (क) मठाधीशों ने उत्साह भरे शब्दों को छीन लिया ताकि वे धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सके।
(ख) इसका आशय है कि सत्ता ने इंसानियत के शब्दों को कैद कर लिया। वे मुक्ति चाहते हैं, परंतु सत्ता उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करती है।
(ग) कवयित्री अपने शब्दों को बो रही है ताकि इन शब्दों को कोई लूट या कब्जा न कर सके। जब इनकी फ़सल उग जाएगी तो ये चिरस्थायी हो जाएँगे।
(घ) ‘वे’ शब्द सफ़ेदपोश लुटेरों के लिए है।
10. खुल कर चलते डर लगता है बातें करते डर लगता है क्योंकि शहर बेहद छोटा है। ऊँचे हैं, लेकिन खजूर से मुँह है इसीलिए कहते हैं, जहाँ बुराई फूले-पनपे- वहाँ तटस्थ बने रहते हैं, नियम और सिद्धांत बहुत दंगों से परिभाषित होते हैं- जो कहने की बात नहीं है, वही यहाँ दुहराई जाती, जिनके उजले हाथ नहीं हैं, उनकी महिमा गाई जाती यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर, अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है- सब अपने धंधे में रत हैं यहाँ न्याय की बात गलत है क्योंकि शहर बेहद छोटा है। बुद्धि यहाँ पानी भरती है, सीधापन भूखों मरता है- उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है, जो सारे काम गलत करता है। यहाँ मान के नाप-तौल की, इकाई कंचन है, धन है- कोई सच के नहीं साथ है यहाँ भलाई बुरी बात है। क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
प्रश्नः (क) कवि शहर को छोटा कहकर किस ‘छोटेपन’ को अभिव्यक्त करना चाहता है ? (ख) इस शहर के लोगों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ? (ग) आशय समझाइए ‘बुद्धि यहाँ पानी भरती है, सीधापन भूखों मरता है’ (घ) इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं ? उत्तरः (क) कवि ने शहर को छोटा कहा है क्योंकि यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। व्यक्तियों के स्वार्थ में डूबे होने के कारण हर जगह अन्याय स्थापित हो रहा है।
(ख) इस शहर के लोग संवेदनहीन, स्वार्थी, डरपोक, अन्यायी का गुणगान करने वाले व निरर्थक प्रलाप करने वाले हैं।
(ग) इस पंक्ति का आशय है कि यहाँ विद्वान व समझदार लोगों को महत्त्व नहीं दिया जाता। सरल स्वभाव का व्यक्ति अपना जीवन निर्वाह भी नहीं कर सकता।
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्व दंगों से अपना शासन स्थापित करते हैं तथा नियम बनाते हैं। धनिक अवैध कार्य करके धन कमाते हैं।
11. जाग रहे हम वीर जवान, जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर, वीर, गंभीर, अचल। हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं, हम हैं शांति-दूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं। वीरप्रसू माँ की आँखों के, हम नवीन उजियाले हैं, गंगा, यमुना, हिंद महासागर के हम ही रखवाले हैं। तन, मन, धन, तुम पर कुर्बान, जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान! हम सपूत उनके, जो नर थे, अनल और मधु के मिश्रण, जिनमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन। एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल, जितना कठिन खड्ग था कर में, उतना ही अंतर कोमल। थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर, स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर। हम उन वीरों की संतान, जियो, जियो ऐ हिंदुस्तान!
प्रश्नः (क) ‘नवीन भारत’ से क्या तात्पर्य है? (ख) उस पंक्ति को उद्धृत कीजिए जिसका आशय है कि भारतीय बाहर से चाहे कठोर दिखाई पड़ें, उनका हृदय कोमल होता है। (ग) ‘हम उन वीरों की संतान’-उन पूर्वज वीरों की कुछ विशेषताएँ लिखिए। (घ) ‘वीरप्रसू माँ’ किसे कहा गया है? क्यों? उत्तरः (क) ‘नवीन भारत’ से तात्पर्य है-आज़ादी के पश्चात् निरंतर विकसित होता भारत।
(ख) उक्त भाव को व्यक्त करने वाली पंक्ति है-जितना कठिन खड्ग था कर में, उतना ही अंतर कोमल।
(ग) कवि ने पूर्वज वीरों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं
इनकी वीरता से संसार भयभीत था।
वीरों में आग व मधु का मेल था।
वीरों में तेज था, परंतु वे कोमल भावनाओं से युक्त थे।
(घ) ‘वीरप्रसू माँ’ से तात्पर्य भारतमाता से है। भारतमाता ने देश का मान बढ़ाने वाले अनेक वीर दिए हैं।
12. देखो प्रिये, विशाल विश्व को आँख उठाकर देखो, अनुभव करो हृदय से यह अनुपम सुषमाकर देखो। यह सामने अथाह प्रेम का सागर लहराता है, कूद पड़ें, तैरूँ इसमें, ऐसा जी में आता है।
रत्नाकर गर्जन करता है मलयानिल बहता है, हरदम यह हौसला हृदय में प्रिय! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के, कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के॥ निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा, कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।
लाने को निज पुण्यभूमि पर लक्ष्मी की असवारी, रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी॥
प्रश्नः (क) कवि अपनी प्रेयसी से क्या देखने का अनुरोध कर रहा है और क्यों? (ख) समुद्र को ‘रत्नाकर’ क्यों कहा जाता है ? (ग) विशाल सागर को देखने पर कवि के मन में क्या इच्छाएँ जगती हैं ? (घ) काव्यांश के आधार पर सूर्योदय का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। उत्तरः (क) कवि अपनी प्रेयसी से विशाल विश्व को देखने का अनुरोध कर रहा है क्योंकि वह विश्व की सुंदरता का अनुभव उसे कराना चाहता है।
(ख) समुद्र को ‘रत्नाकर’ इसलिए कहा गया है क्योंकि इसके अंदर संसार के कीमती खनिज-पदार्थ, रत्न आदि मिलते हैं।
(ग) विशाल सागर को देखकर कवि के मन में इसमें कूदकर तैरने की इच्छा उत्पन्न होती है।
(घ) कवि कहता है कि समुद्र के तल पर सूर्य आधा निकला है जो लक्ष्मी के सोने के मंदिर का चमकता कंगूरा जैसा लगता है जैसे, लक्ष्मी की सवारी को लाने के लिए सागर ने सोने की सड़क बना दी हो।
13. तुम नहीं चाहते थे क्या फूल खिलें भौरे गूंजें तितलियाँ उड़ें? नहीं चाहते थे तुम शरदाकाश वसंत की हवा मंजरियों का महोत्सव कोकिल की कुहू, हिरनों की दौड़? तुम्हें तो पसंद थे भेड़िये भेड़ियों-से धीरे-धीरे जंगलाते आदमी समूची हरियाली को धुआँ बनाते विस्फोट! तुमने ही बना दिया है सबको अंधा-बहरा आकाशगामी हो गए सब कोलाहल में डूबे, वाणी-विहीन अब भी समय है बाकी है भविष्य अभी खड़े हो जाओ अँधेरों के खिलाफ वेद-मंत्रों से ध्याता, पहचानो अपनी धरती अपना आकाश!
प्रश्नः (क) आतंकी विस्फोटों के क्या-क्या परिणाम होते हैं ? (ख) आतंकवादियों को धरती के कौन-कौन से रूप नहीं लुभाते? (ग) आशय स्पष्ट कीजिए ‘तुम्हें तो पसंद थे भेडिये भेड़ियों से धीरे-धीरे जंगलाते आदमी’ (घ) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि क्या अपेक्षा करता है? उत्तरः (क) आतंकी विस्फोटों के निम्नलिखित परिणाम होते हैं-हरियाली का नष्ट होना, जीवधारियों की शांति भंग होना, विनाशक शकि तयों का प्रबल होना।
(ख) आतंकवादियों को-धरती पर फूल खिलना, भौरों का गुंजन, तितलियाँ उड़ना, वसंती हवा, मंजरियों का उत्सव, हिरनों की दौड़, कोयल का गाना आदि पसंद नहीं है।
(ग) इसका अर्थ है कि आतंकवादियों को धूर्त व हत्यारी प्रकृति के लोग पसंद होते हैं। ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या से जंगलीपन बढ़ता जाता है।
(घ) ‘अब भी समय है’ कहकर कवि यह अपेक्षा करता है कि आतंकी अपना बहुत कुछ खो चुके हैं, परंतु अभी सुधरने का समय है। वे इन प्रकृतियों के खिलाफ खड़े होकर समाज को बचा सकते हैं।
14. ‘सर! पहचाना मुझे ?’ बारिश में भीगता आया कोई कपड़े कीचड़-सने और बालों में पानी। बैठा। छन-भर सुस्ताया। बोला, नभ की ओर देख- ‘गंगा मैया पाहुन बनकर आई थीं’ झोंपड़ी में रहकर लौट गईं- नैहर आई बेटी की भाँति चार दीवारों में कुदकती-फुदकती रहीं खाली हाथ वापस कैसे जातीं! घरवाली तो बच गईं- दीवारें ढहीं, चूल्हा बुझा, बरतन-भाँडे- जो भी था सब चला गया। प्रसाद-रूप में बचा है नैनों में थोड़ा खारा पानी पत्नी को साथ ले, सर, अब लड़ रहा हूँ ढही दीवार खड़ी कर रहा हूँ कादा-कीचड़ निकाल फेंक रहा हूँ।’ मेरा हाथ जेब की ओर जाते देख वह उठा, बोला-‘सर पैसे नहीं चाहिए। जरा अकेलापन महसूस हुआ तो चला आया घर-गृहस्थी चौपट हो गई पर रीढ़ की हड्डी मज़बूत है सर! पीठ पर हाथ थपकी देखकर आशीर्वाद दीजिए- लड़ते रहो।’
प्रश्नः (क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से क्यों की गई है? (ख) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर क्यों गया होगा? (ग) आगंतुक ‘सर’ के घर क्यों आया था? (घ) कैसे कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है? उत्तरः (क) बाढ़ की तुलना मायके आई हुई बेटी से इसलिए की है क्योंकि शादी के बाद बेटी अचानक आकर मायके से बहुत कुछ सामान लेकर चली जाती है। इसी तरह बाढ़ भी अचानक आकर लोगों की जमापूँजी लेकर ही जाती है।
(ख) ‘सर’ का हाथ जेब की ओर इसलिए गया होगा ताकि वह बाढ़ में अपना सब कुछ गँवाए हुए व्यक्ति की कुछ आर्थिक सहायता कर सके।
(ग) आगंतुक ‘सर’ के घर आर्थिक मदद माँगने नहीं आया था। वह अपने अकेलेपन को दूर करने आया था। वह ‘सर’ से संघर्ष करने की क्षमता का आशीर्वाद लेने आया था।
(घ) आगंतुक के घर का सामान बाढ़ में बह गया। इसके बावजूद वह निराश नहीं था। उसने मकान दोबारा बनाना शुरू किया। उसने ‘सर’ से आर्थिक सहायता लेने के लिए भी इनकार कर दिया। अतः हम कह सकते हैं कि आगंतुक स्वाभिमानी और संघर्षशील व्यक्ति है।
15. स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती।
देह तुम्हारी लोहे की हो, स्नायु तुम्हारे हों इस्पाती, युवको, सुनो जवानी तुममें आए आँधी-सी अर्राती।
जब तुम चलो चलो ऐसे जैसे गति में तूफान समेटे। हो संकल्प तुम्हारे मन में। युग-युग के अरमान समेटे।
अंतर हिंद महासागर-सा, हिमगिरि जैसी चौड़ी छाती।
जग जीवन के आसमान में तुम मध्याह्न सूर्य-से चमको तुम अपने पावन चरित्र से उज्ज्व ल दर्पण जैसे दमको।
साँस-साँस हो झंझा जैसी रहे कर्म ज्वाला भड़काती।
जनमंगल की नई दिशा में ‘ तुम जीवन की धार मोड़ दो यदि व्यवधान चुनौती दे तो तुम उसकी गरदन मरोड़ दो।
प्रश्नः (क) युवकों के लिए फ़ौलादी शरीर की कामना क्यों की गई है? (ख) किसकी गरदन मरोड़ने को कहा गया है और क्यों? (ग) बलिष्ठ युवकों की चाल-ढाल के बारे में क्या कहा गया है? (घ) युवकों की तेजस्विता के बारे में क्या कल्पना की गई है? उत्तरः (क) युवकों के लिए फ़ौलादी शरीर की कामना इसलिए की गई है ताकि उनमें उत्साह का संचार रहे। उनकी गति में तूफान व संकल्पों में युग-युग के अरमान समा जाएँ।
(ख) कवि ने व्यवधान की गरदन मरोड़ने को कहा है क्योंकि उसे सबक सिखाने की ज़रूरत है। उसे ऐसे सबक को लंबे समय तक याद रखना होगा।
(ग) बलिष्ठ युवकों की चाल-ढाल के बारे में कवि कहता है कि उन्हें तूफान की गति के समान चलना चाहिए। उनका मन हिंद महासागर के समान गहरा व सीना हिमालय जैसा चौड़ा होना चाहिए।
(घ) युवकों की तेजस्विता के बारे में कवि कल्पना करता है कि वे संसार के आसमान में दोपहर के सूर्य के समान चमकें। वे अपने पवित्र चरित्र से उज्ज्वल दर्पण के समान दमकने चाहिए।
16. नए युग में विचारों की नई गंगा कहाओ तुम, कि सब कुछ जो बदल दे, ऐसे तूफ़ाँ में नहाओ तुम।
अगर तुम ठान लो तो आँधियों को मोड़ सकते हो अगर तुम ठान लो तारे गगन के तोड़ सकते हो, अगर तुम ठान लो तो विश्व के इतिहास में अपने- सुयश का एक नव अध्याय भी तुम जोड़ सकते हो,
तुम्हारे बाहुबल पर विश्व को भारी भरोसा है- उसी विश्वास को फिर आज जन-जन में जगाओ तुम।
पसीना तुम अगर इस भूमि में अपना मिला दोगे, करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन दिला दोगे। तुम्हारी देह के श्रम-सीकरों में शक्ति है इतनी- कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।
नया जीवन तुम्हारे हाथ का हल्का इशारा है इशारा कर वही इस देश को फिर लहलहाओ तुम।
प्रश्नः (क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें, तो क्या-क्या कर सकते हैं ? (ख) नवयुवकों से क्या-क्या करने का आग्रह किया जा रहा है? (ग) युवक यदि परिश्रम करें, तो क्या लाभ होगा? (घ) आशय स्पष्ट कीजिए ‘कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।’ उत्तरः (क) यदि भारतीय नवयुवक दृढ़ निश्चय कर लें तो वे विपदाओं का रास्ता बदल सकते हैं, वे विश्व के इतिहास को बदल सकते है, असंभव कार्य को संभव कर सकते हैं तथा अपने यश का नया अध्याय जोड़ सकते हैं।
(ख) कवि नवयुवकों से आग्रह करता है कि वे नए विचार अपनाकर जनता को जाग्रत कर तथा उनमें आत्मविश्वास का भाव जगाएँ।
(ग) युवक यदि परिश्रम करें तो करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन मिल सकता है।
(घ) इस पंक्ति का अर्थ है कि युवकों में इतनी कार्यक्षमता है कि वे कम साधनों के बावजद विकट स्थितियों में भी समाज को अधिक दे सकते हैं।
17. महाप्रलय की अग्नि साथ लेकर जो जग में आए विश्वबली शासन का भय जिनके आगे शरमाए चले गए जो शीश चढ़ाकर अर्घ्य दिया प्राणों का चलें मज़ारों पर हम उनकी, दीपक एक जलाएँ। टूट गईं बंधन की कड़ियाँ स्वतंत्रता की बेला लगता है मन आज हमें कितना अवसन्न अकेला। जीत गए हम, जीता विद्रोही अभिमान हमारा। प्राणदान से क्षुब्ध तरंगों को मिल गया किनारा। उदित हुआ रवि स्वतंत्रता का व्योम उगलता जीवन, आज़ादी की आग अमर है, घोषित करता कण-कण। कलियों के अधरों पर पलते रहे विलासी कायर, उधर मृत्यु पैरों से बाँधे, रहा जूझता यौवन। उस शहीद यौवन की सुधि हम क्षण भर को न बिसारें, उसके पग-चिहनों पर अपने मन में मोती वारें।
प्रश्नः (क) कवि किनकी मज़ारों पर दीपक जलाने का आह्वान कर रहा है और क्यों? (ख) ‘टूट गईं बंधन की कड़ियाँ’-कवि किस बंधन की बात कर रहा है? (ग) ‘विश्वबली शासन’ किसे कहा है? क्यों? (घ) शहीद किसे कहते हैं? शहीदों के बलिदान से हमें क्या प्राप्त हुआ? उत्तर (क) कवि शहीदों की मज़ारों पर दीपक जलाने का आह्वान कर रहा है क्योंकि उन शहीदों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था।
(ख) ‘टूट गई बंधन की कड़ियाँ’ पंक्ति में कवि ने पराधीनता के बंधन की बात कही है।
(ग) “विश्वबली शासन’ से तात्पर्य है- ब्रिटिश शासन। कवि ने विश्वबली शासन इसलिए कहा है क्योंकि उस समय दुनिया के बड़े हिस्से पर अंग्रेज़ों का शासन था।
(घ) शहीद वे हैं जो क्रांति की ज्वाला लेकर आते हैं तथा देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। वे मृत्यु से भी नहीं घबराते। शहीदों के बलिदान से हमें आज़ादी मिली।
18.
चिड़िया को लाख समझाओ कि पिंजड़े के बाहर धरती बड़ी है, निर्मम है, वहाँ हवा में उसे अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी। यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है, पर पानी के लिए भटकना है, यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है। बाहर दाने का टोटा है
यहाँ चुग्गा मोटा है। बाहर बहेलिये का डर है यहाँ निद्र्वद्व कंठ-स्वर है। फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी, मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी, हर सू जोर लगाएगी और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
प्रश्न
(क) पिंजड़े के बाहर का संसार निर्मम कैसे है? (ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं? (ग) कवि चिड़िया को स्वतंत्र जगत की किन वास्तविकताओं से अवगत कराना चाहता है? (घ) बाहर सुखों का अभाव और प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति ही क्यों चाहती है? (ङ) कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पिंजड़े के बाहर का संसार हमेशा कमजोर को सताने की कोशिश में रहता है। यहाँ कमजोर को सदैव संघर्ष करना पड़ता है। इस कारण वह निर्मम है। (ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है। (ग) कवि बताना चाहता है कि बाहर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भोजन, आवास व सुरक्षा के लिए हर समय मेहनत करनी होती है। (घ) बाहर सुखों का अभाव व प्राणों संकटहोने पर भी चिड़िया मुक्ति चाहती है, क्योंकि वह आज़ाद जीवन जीना पसंद करती है। (ङ) इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता के महत्त्व को समझाया है। मनष्य के व्यक्तित्व का विकास स्वतंत्र परिवेश में ही हो सकता है।
19.
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली। पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के। मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की। बरस बाद सुधि लीन्हीं- बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।
प्रश्न
(क) उपर्युक्त काव्यांश में ‘पाहुन’ किसे कहा गया है और क्यों? (ख) मेघ किस रूप में और कहाँ आए? (ग) मेघ के आने पर गाँव में क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देने लगे ? (घ) पीपल को किसके रूप में चित्रित किया गया है? उसने क्या किया? (ङ)‘लता’ कौन है? उसने क्या शिकायत की?
उत्तर-
(क) मेघ को ‘पाहुन’ कहा गया है, क्योंकि वे बहुत दिन बाद लौटे हैं और ससुराल में पाहुन की भाँति उनका स्वागत हो रहा है। (ख) मेघ मेहमान की तरह सज-सँवरकर गाँव में आए। (ग) मेघ के आने पर गाँव के घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खुलने लगीं। पेड़ झुकने लगे, आँधी चली और धूल ग्रामीण बाला की भाँति भागने लगी। (घ) पीपल को गाँव के बूढ़े व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उसने नवागंतुक का स्वागत किया। (ङ) ‘लता’ नवविवाहिता है, जो एक वर्ष से पति की प्रतीक्षा कर रही है। उसे शिकायत है कि वह (बादल) पूरे एक साल बाद लौटकर आया है।
20.
ले चल माँझी मझधार मुझे, दे-दे बस अब पतवार मुझे। इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे ॥ मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कैंटीली राह चला। पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं। मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलें। कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की, कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
फिर कहाँ डरा पाएगा यह, पगले जर्जर संसार मुझे। इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रहकर प्यार मुझे। मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ, उस पार चलूँ मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा, जी चाहे जीतें हार चलूँ।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे- राहों को समझा लेता हूँ, सब बात सदा अपने मन की इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे, इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।
प्रश्न
(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए। (ख) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है? (ग) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए। (घ) कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (ङ)आशय स्पष्ट कीजिए-“कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।”
उत्तर-
(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण निम्नलिखित हैं (1) कवि कहीं भी रहे उसे हार-जीत की परवाह नहीं रहती। (2) कवि को किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है। (ख) यह पंक्ति है– पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला। (ग) इस कविता में कवि जीवन-पथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने, आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रुकने के लिए कहता है। (घ) कवि का स्वभाव निभाँक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है। (ङ) इसका अर्थ यह है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।
21.
पथ बंद है पीछे अचल है पीठ पर धक्का प्रबल। मत सोच बढ़ चल तू अभय, प्ले बाहु में उत्साह-बल। जीवन-समर के सैनिको, संभव असंभव को करो पथ-पथ निमंत्रण दे रहा आगे कदम, आगे कदम।
ओ बैठने वाले तुझे देगा न कोई बैठने। पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्यान देगा लेटने । आराम संभव है नहीं, जीवन सतत संग्राम है बढ़ चल मुसाफ़िर धर कदम, आगे कदम, आगे कदम।
ऊँचे हिमानी श्रृंग पर, अंगार के भ्रू-भृग पर तीखे करारे खंग पर आरंभ कर अद्भुत सफ़र ओ नौजवाँ निर्माण के पथ मोड़ दे, पथ खोल दे जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम।
प्रश्न
(क) इस काव्यांश में कवि किसे क्या प्रेरणा दे रहा है? (ख) किस पंक्ति का आशय है-‘जीवन के युद्ध में सुख-सुविधाएँ चाहना ठीक नहीं’? (ग) अद्भुत सफ़र की अद्भुतता क्या है? (घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘ जीवन सतत संग्राम है।’ (ङ) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
उत्तर-
(क) इस काव्यांश में कवि मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है। (ख) उक्त आशय प्रकट करने वाली पंक्ति है- पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्या न देगा लेटने। (ग) कवि के अद्भुत सफ़र की अद्भुतता यह है कि यह सफ़र हिम से ढँकी ऊँची चोटियों पर, ज्वालामुखी के लावे पर तथा तीक्ष्ण तलवार की धार पर भी जारी रहता है। (घ) इसका आशय यह है कि जीवन युद्ध की तरह है, जो निरंतर चलता रहता है। मनुष्य सफलता पाने के लिए बाधाओं से निरंतर संघर्ष करता रहता है। (ङ) इस कविता में कवि ने जीवन को संघर्ष से युक्त बताया है। मनुष्य को बाधाओं से संघर्ष करते हुए जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
22.
रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी जमीन, जिसका श्रम है; अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है। आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का, आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का। गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल, सिमटी बाँहों को खोल गरुड़, उड़ने का अब अंदाज बदल। स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं; रोटी क्या ? ये अंबर वाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।
प्रश्न
(क) आजादी क्यों आवश्यक है? (ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर किसका अधिकार है ? (ग) कवि ने किन पंक्तियों में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है? (घ) कवि व्यक्ति को क्या परामर्श देता है? (ङ) आज़ाद व्यक्ति क्या कर सकता है?
उत्तर-
(क) परिश्रम का फल पाने तथा शोषण का विरोध करने के लिए आजादी आवश्यक है। (ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर उसका अधिकार है, जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है। (ग) कवि ने ” गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल।” पंक्ति में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है। (घ) कवि व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने और उसके बल पर सफलता पाने का परामर्श देता है। (ङ) आज़ाद व्यक्ति शोषण का विरोध कर सकता है, पहाड़ हिला सकता है तथा आकाश से तारे तोड़कर ला सकता है।
23.
खुलकर चलते डर लगता है बातें करते डर लगता है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
ऊँचे हैं, लेकिन खजूर से मुँह है इसीलिए कहते हैं, जहाँ बुराई फूले-पनपे- वहाँ तटस्थ बने रहते हैं, नियम और सिद्धांत बहुत दंगों से परिभाषित होते हैं- जो कहने की बात नहीं है, वही यहाँ दुहराई जाती, जिनके उजले हाथ नहीं हैं, उनकी महिमा गाई जाती यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है सब अपने धंधे में रत हैं यहाँ न्याय की बात गलत है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
बुद्धि यहाँ पानी भरती है, सीधापन भूखों मरता है– उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है, जो सारे काम गलत करता है। यहाँ मान के नाप-तौल की इकाई कंचन है, धन है कोई सच के नहीं साथ है यहाँ भलाई बुरी बात है
क्योंकि शहर बेहद छोटा है।
प्रश्न
(क) कवि शहर को छोटा कहकर किस ‘ छोटेपन ‘ को अभिव्यक्त करता चाहता है ? (ख) इस शहर के लोगों की विशेषताएँ क्या हैं ? (ग) आशय समझाइए : बुद्धि यहाँ पानी भरती है, सीधापन भूखों मरता है- (घ) इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं? (ङ) ‘जिनके उजले हाथ नहीं हैं”-कथन में ‘हाथ उजले न होना’ से कवि का क्या आशय है? [CBSE (Delhi), 2013]
उत्तर-
(क) कवि शहर को छोटा कहकर लोगों की संकीर्ण मानसिकता, उनके स्वार्थपूर्ण बात-व्यवहार, बुराई का प्रतिरोध न करने की भावना, अन्याय के प्रति तटस्थता जैसी बुराइयों में लिप्त रहने के कारण उनके छोटेपन को अभिव्यक्त करना चाहता है। (ख) इस शहर के लोग बुराई का विरोध न करके तटस्थ बने रहते हैं। अर्थात वे बुराई के फैलने का उचित वातावरण प्रदान करते हैं। (ग) इन पंक्तियों का आशय यह है कि बुद्धमान लोग धनिकों के गुलाम बनकर रह गए हैं। वे वही काम करते हैं जो सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति करवाना चाहते हैं। यहाँ सीधेपन का कोई महत्त्व नहीं है। यहाँ वही व्यक्ति सम्मानित होता है जो हिंसा, आतंक से भय का वातावरण बनाए रखता है। (घ) इस शहर में असामाजिक तत्त्व और धनिक प्रतिष्ठा तथा मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। (ङ) ‘ जिनके उजले हाथ नहीं हैं ‘ कथन में ‘हाथ उजले न होने’ का आशय है अनैतिक, अमर्यादित, अन्यायपूर्वक कार्य करना तथा गलत तरीके एवं बेईमानी से धन, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करके दूसरों का शोषण करने जैसे कार्यों में लिप्त रहना।
24.
अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में, सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में। वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निझर, प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर। आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई, नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई। आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना, नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना। उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण, जगो, देश के प्राण जगा दो नए प्राप्त का नया जागरण। आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी। तरुणाई, नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली ऑगड़ाई।
प्रश्न
(क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे? (ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं? (ग) ‘विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है? (घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान क्यों कर रहा है? (ङ) कविता का मूल संदेश अपने शब्दों में लिखिए। [CBSE (Delhi), 2014]
उत्तर-
(क) मार्ग की रुकावटों को वे तोड़ते हैं जो संकटों से घबराए बिना उनका सामना करते हैं। ऐसे लोग अपनी मूल रिदृढ़ता से जवना में आने वाले संक्टरूपा तुमानों का निहारता से मुकबल कते हैं और विजयी होते हैं। (ख) जिस प्रकार झरना अपने वेग से अपने रास्ते में आने वाली चट्टानों और पत्थरों को तोड़कर आगे निकल जाता है, उसी प्रकार नवयुवक भी बाधाओं को जीतकर आगे बढ़ते हैं और प्रगति के नाम को स्रार्थक करते हैं। (ग) ‘विगत युग के पतझर’ का आशय है-बीता हुआ वह समय जब देश के लोग विशेष सफलता और उपलब्धियाँ अर्जित नहीं कर पाए। (घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान इसलिए कर रहा है क्योंकि नवयुवक उत्साह, साहस, उमंग से भरे हैं। उनके स्वभाव में निडरता है। वे बाधाओं से हार नहीं मानते। उनका यौवन देश की आशा बना हुआ है। वे देश को प्रगति के पथ पर ले जाने में समर्थ हैं। (ङ) कवि नवयुवकों का आहवान कर रहा है कि वे देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए आगे आएँ। उनका यौवन दुर्गम पथ पर विपरीत परिस्थितियों में उन्हें विजयी बनाने में सक्षम है। देशवासी उन्हें आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं। अब समय आ गया है कि वे अपने यौवन की ताकत दुनिया को दिखा दें।
प्रस्तुति-गुलाब चंद जैसल, केंद्रीय विद्यालय हरसिंहपुरा
प्रतिपादय-कवित्त में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है। सार-कवित्त में कवि ने पेट की आग को सबसे बड़ा बताया है। मनुष्य सारे काम इसी आग को बुझाने के उद्देश्य से करते हैं चाहे वह व्यापार, खेती, नौकरी, नाच-गाना, चोरी, गुप्तचरी, सेवा-टहल, गुणगान, शिकार करना या जंगलों में घूमना हो। इस पेट की आग को बुझाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेचने के लिए विवश हो जाते हैं। यह पेट की आग समुद्र की बड़वानल से भी बड़ी है। अब केवल रामरूपी घनश्याम ही इस आग को बुझा सकते हैं।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।। ‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें, आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।। [CBSE 2011, 2013]
शब्दार्थ- किसबी-धंधा। कुल-परिवार। बनिक- व्यापारी। भाट-चारण, प्रशंसा करने वाला। चाकर-घरेलू नौकर। चपल-चंचल। चार-गुप्तचर, दूत। चेटकी- बाजीगर। गुनगढ़त- विभिन्न कलाएँ व विधाएँ सीखना। अटत-घूमता। अखेटकी- शिकार करना। गहन गन- घना जंगल। अहन- दिन। करम-कार्य। अधरम-पाप। बुझाई – बुझाना, शांत करना। घनश्याम- काला बादल। बड़वागितें-समुद्र की आग से। आग पेट की- भूख।
व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में मजदूर, किसान-वर्ग, व्यापारी, भिखारी, चारण, नौकर, चंचल नट, चोर, दूत, बाजीगर आदि पेट भरने के लिए अनेक काम करते हैं। कोई पढ़ता है, कोई अनेक तरह की कलाएँ सीखता है, कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई दिन भर गहन जंगल में शिकार की खोज में भटकता है। पेट भरने के लिए लोग छोटे-बड़े कार्य करते हैं तथा धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते। पेट के लिए वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हैं। तुलसीदास कहते हैं कि अब ऐसी आग भगवान राम रूपी बादल से ही बुझ सकती है, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र की आग से भी भयंकर है।
शिल्प सौंदर्य या विशेष-
(i) समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है। (ii) कवित्त छंद है। (iii) तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है। (iv) ब्रजभाषा लालित्य है। (v) ‘राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार तथा ‘आगि बड़वागितें..पेट की’ में व्यतिरेक अलंकार है। (vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है- ‘किसबी, किसान-कुल’, ‘भिखारी, भाट’, ‘चाकर, चपल’, ‘चोर, चार, चेटकी’, ‘गुन, गढ़त’, ‘गहन-गन’, ‘अहन अखेटकी ‘, ‘ बचत बेटा-बेटकी’, ‘ बड़वागितेंबड़ी ‘ (vii) अभिधा शब्द-शक्ति है।
काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
प्रश्न- (क)इन काव्य-पंक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर- इस समाज में जितने भी प्रकार के काम हैं, वे सभी पेट की आग से वशीभूत होकर किए जाते हैं।’पेट की आग’ विवेक नष्ट करने वाली है। ईश्वर की कृपा के अतिरिक्त कोई इस पर नियंत्रण नहीं पा सकता। प्रश्न- (ख)पेट की आग को कैसे शांति किया जा सकता है?
उत्तर– पेट की आग भगवान राम की कृपा के बिना नहीं बुझ सकती। अर्थात राम की कृपा ही वह जल है, जिससे इस आग का शमन हो सकता है।
प्रश्न- (ग)काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।[CBSE 2015]
उत्तर– • पेट की आग बुझाने के लिए मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों का प्रभावपूर्ण वर्णन है। • काव्यांश कवित्त छंद में रचित है। • ब्रजभाषा का माधुर्य घनीभूत है। • ‘राम घनश्याम’ में रूपक अलंकार है। ‘किसबी किसान-कुल’, ‘चाकर चपल’, ‘बेचत बेटा-बेटकी’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
अन्य हाल प्रश्न-
प्रश्न- (क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक कार्य करते हैं ?
उत्तर- पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते हैं ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ?
प्रश्न-(ख) कवि ने समाज के किन-किन लोगों का वर्णन किया है? उनकी क्या परेशानी है ?
उत्तर- कवि ने मज़दूर, किसान-कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चोर, दूत, जादूगर आदि वर्गों का वर्णन किया है। वे भूख व गरीबी से परेशान हैं। प्रश्न- (ग) कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है? यह आग कैसी है ?
उत्तर- कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है। प्रश्न- (घ) उन कामों का उल्लेख कीजिए, जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं?
उत्तर- कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।
प्रश्न– तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए। उत्तर-तुलसीदास के समय का समाज मध्ययुगीन विचारधारा का था। उस समय बेरोजगारी थी तथा आम व्यक्ति की हालत दयनीय थी। समाज में कोई नियम-कानून नहीं था। व्यक्ति अपनी भूख शांत करने के लिए गलत कार्य भी करते थे। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। जाति व संप्रदाय के बंधन कठोर थे। नारी की दशा हीन थी। उसकी हानि को विशेष नहीं माना जाता था।
प्रश्न- क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज में भी विद्यमान हैं? अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर-तुलसी ने लगभग 500 वर्ष पहले जो कुछ कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुरवस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन-निर्वाह के लिए गलत-सही कार्य करते हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम पर भेदभाव होता है। इसके विपरीत, कृषि, वाणिज्य, रोजगार की स्थिति आदि में बहुत बदलाव आया है। इसके बाद भी तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।
प्रश्न- ‘पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य हैं/ भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें। उत्तर- गरीबी के कारण तुलसीदास के युग में लोग अपने बेटा-बेटी को बेच देते थे। आज के युग में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती है। किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो कुछ लोग अपनी बेटियों को भी बेच देते हैं। अत्यधिक गरीब व पिछड़े क्षेत्रों में यह स्थिति आज भी यथावत है। तुलसी तथा आज के समय में अंतर यह है कि पहले आम व्यक्ति मुख्यतया कृषि पर निर्भर था, आज आजीविका के लिए अनेक रास्ते खुल गए हैं। आज गरीब उद्योग-धंधों में मजदूरी करके जीवन चला सकता है परंतु यह भी सत्य है कि तुलसी युग और वार्तमान में बहुत अंतर नहीं आया है।
प्रश्न- व्याख्या कीजिए-
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।
उत्तर- तुलसी के युग में लोग पैसे के लिए सभी तरह के कर्म किया करते थे। वे धर्म-अधर्म नहीं जानते थे केवल पेट भरने की सोचते। इसलिए कभी-कभी वे अपनी संतान को भी बेच देते थे।
उत्तर- समाचार का अंग्रेजी पर्याय (NEWS) चारो दिशाओं को सांकेतिक करता है। अपने आस-पास के समाज एवं देश-दुनिया की घटनाओं के विषय मे त्वरित एवं नवीन जानकारी, जो पक्षपात रहित एवं सत्य हो, समाचार कहलाता है।
प्रश्न-2 संवाददाता किसे कहते हैं?
उत्तर- समाचारों को संकलित करने वाले को संवाददाता कहा जाता है।
प्रश्न-3 समाचार लेखन की विलोमस्तूपी पद्धति क्या है?
उत्तर- समाचार लेखन की विलोमस्तूपी पद्धति अथवा उल्टा पिरामिड पद्धति में समाचार लिखते हुए उसका चरमोत्कर्ष प्रारंभ में दिया जाता है तथा घटनाक्रम की व्याख्या करते हुए अंत किया जाता है।
प्रश्न-4 अंशकालिक पत्रकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- अंशकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय के आधार पर काम करते है। ये एक से अधिक पत्रों के लिए भी काम करते हैं क्योंकि ये पूर्णकालिक पत्रकार नहीं होते हैं ।
प्रश्न-5 संपादक के दो दायित्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर– संपादककेदोदायित्वनिम्नलिखितहैं–
संवाददाताओं तथा रिपोर्टरों द्वारा प्राप्त लिखित सामग्री को शुद्ध कर प्रस्तुति के योग्य बनाना।
समाचार-पत्र की नीति, आचार-संहिता तथा जनकल्याण का ध्यान रखना।
प्रश्न-6 खोजपरक पत्रकारिता किसे कहा जाता है?
उत्तर- उत्तर- खोजपरक पत्रकारिता का अर्थ उस पत्रकारिता से है, जिसमें सूचनाओं को सामने लाने के लिए उन तथ्यों की गहराई से छानबीन की जाती है, जिन्हें संबंधित पक्ष द्वारा दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो।
प्रश्न-7 ऐडवोकेसी पत्रकारिता क्या है?
उत्तर- किसी खास विचारधारा या उद्देश्य को आगे बढ़ाने तथा उसके लिए जनमत तैयार करने वाली पत्रकारिता ‘एडवोकेसी पत्रकारिता’ कहलाती है। भारत में कुछ समाचार-पत्र या टेलीविजन चैनल कुछ खास मुद्दों को लेकर अभियान चलाते हैं। ‘जेसिका लाल हत्याकांड’ में न्याय के लिए चलाए गए सक्रिय अभियान को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है ।
प्रश्न-8 इंटरनेट पत्रकारिता क्या है?
उत्तर- इंटरनेट पर समाचारों का प्रकाशन अथवा आदान-प्रदान, इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है।
प्रश्न- 9 वायस ओवर क्या है?
उत्तर- किसी गतिमान/चलायमान दृश्य के पीछे से आ रही आवाज को ‘वायस ओवर’ कहते हैं।
प्रश्न-10 संपादन के दो सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर- संपादनकेदोसिद्धांतनिम्नलिखितहैं –
निष्पक्षता – संपादन में निष्पक्षता का तात्पर्य है बिना किसी का पक्ष लिए अपना कार्य करना।
वस्तुपरकता – संपादन में वस्तुपरकता का तात्पर्य है कि जो हम संपादित कर रहे हैं, वो विषय से जुड़ा है या नहीं ।
प्रश्न-11 संपादकीय का महत्त्व समझाइए।
उत्तर- एक अच्छा संपादकीय किसी विषय या मुद्दे पर संपादक द्वारा प्रस्तुत उसके विचारों की सजग एवं ईमानदार प्रस्तुति है। संक्षिप्तता, विश्वसनीयता, तथ्यपरकता, निष्पक्षता एवं रोचकता एक अच्छे संपादकीय का महत्त्व है।
प्रश्न-12 रेडियो की लोकप्रियता के क्या कारण हैं?
उत्तर- रेडियो के लोकप्रियता के कारण निम्नांकित हैं –
सस्ता व सुलभ साधन
अन्य कार्य करते हुए भी रेडियो का उपयोग संभव
व्यापक प्रसार और दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुँच
प्रश्न-13. प्रिंट मीडिया के प्रमुख तीन पहलू कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- प्रिंट मीडिया के तीन पहलू निम्नलिखित हैं-
समाचारों को संकलित करना
संपादन करना
मुद्रण तथा प्रसारण
प्रश्न-14 पीतपत्रकारिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- पीत पत्रकारिता (Yellow journalism) उस पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की उपेक्षा करके सनसनी फैलाने वाले या ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है. इसे समाचारपत्रों की बिक्री बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है. मूलतः अब इससे आशय अनैतिक और भ्रष्ट पत्रकारिता है. जिन दिनों यह शब्द चला था तब इसका मतलब लोकप्रिय पत्रकारिता था. इसका इस्तेमाल अमेरिका में 1890 के आसपास शुरू हुआ था. उन दिनों जोज़फ पुलिट्जर के अख़बार ‘न्यूयॉर्क वर्ल्ड’ और विलियम रैंडॉल्फ हर्स्ट के ‘न्यूयॉर्क जर्नल’ के बीच जबर्दस्त प्रतियोगिता चली थी. इस पत्रकारिता को यलो कहने के बीच प्रमुख रूप से पीले रंग का इस्तेमाल है, जो दोनों अखबारों के कार्टूनों का प्रभाव बढ़ाता था. दोनों अखबारों का हीरो पीले रंग का कुत्ता था. यलो जर्नलिज्म शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल उन्हीं दिनों न्यूयॉर्क प्रेस के सम्पादक एरविन वार्डमैन ने किया.
प्रश्न-15 वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं ?
उत्तर- मुख्य धारा के मीडिया के विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाकर उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। आम तौर पर इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ीपूँजी का समर्थन प्राप्त नहीं होता और न ही उसे बड़ी कंपनियों के विज्ञापन मिलते हैं।